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16 जून : बलिदान दिवस नलिनीकांत बागची जी... शरीर में फैल चुका था जहर और सामने थे सैकड़ों अंग्रेज लेकिन तब तक गोलियां चालते रहे, जब तक नहीं हुई थी मौत

शौर्य गाथा ऐसे वीर की जिनके इतिहास को वामपन्थी साजिश ने दबा दिया..

Sumant Kashyap
  • Jun 16 2024 10:06AM

भारत के सच्चे और अच्छे इतिहास के विरुद्ध किस प्रकार से साजिश रची गई इसको समझना है तो आपको सबसे पहले आज बलिदान होने वाले नलिनी कांत बागची जी को जानना होगा। यकीनन यह नाम आपको अनसुना सा जरूर लगेगा ।

यद्यपि सुनेंगे भी कैसे क्योंकि वामपंथी कलमकार व्यस्त थे आक्रांता और लुटेरों के महिमामंडन में हो नलिनी कांत का नाम लेने के बाद उन्हें यह शक था कि या देश लेनिन और मार्क्स के बजाए भारत के क्रांतिकारियों को सर झुकायेगा..

जरा कल्पना करें उस महावीर की जो शरीर में फैलते जहर की चिंता किए बिना अंग्रेजों से अथाह नफरत लेकर लगातार गोलियां बरसाता हुआ उन्हें अंतिम सांस तक भारत छोड़ देने की चेतावनी देता रहा हो।

भारतीय स्वतन्त्रता के इतिहास में यद्यपि क्रान्तिकारियों की चर्चा कम ही हुई है; पर सच यह है कि उनका योगदान अहिंसक आन्दोलन से बहुत अधिक था। 

बंगाल क्रान्तिकारियों का गढ़ था। इसी से घबराकर अंग्रेजों ने राजधानी कोलकाता से हटाकर दिल्ली में स्थापित की थी। इन्हीं क्रान्तिकारियों में एक थे नलिनीकान्त बागची, जो सदा अपनी जान हथेली पर लिये रहते थे।

एक बार बागची अपने साथियों के साथ गुवाहाटी के एक मकान में रह रहे थे। सब लोग सारी रात बारी-बारी जागते थे; क्योंकि पुलिस उनके पीछे पड़ी थी।

एक बार रात में पुलिस ने मकान को घेर लिया। जो क्रान्तिकारी जाग रहा था, उसने सबको जगाकर सावधान कर दिया। सबने निश्चय किया कि पुलिस के मोर्चा सँभालने से पहले ही उन पर हमला कर दिया जाये।

निश्चय करते ही सब गोलीवर्षा करते हुए पुलिस पर टूट पड़े। इससे पुलिस वाले हक्के बक्के रह गये। वे अपनी जान बचाने के लिए छिपने लगे। इसका लाभ उठाकर क्रान्तिकारी वहाँ से भाग गये और जंगल में जा पहुँचे। 

वहाँ भूखे प्यासे कई दिन तक वे छिपे रहे; पर पुलिस उनके पीछा करती रही। जैसे तैसे तीन दिन बाद उन्होंने भोजन का प्रबन्ध किया। वे भोजन करने बैठे ही थे कि पहले से बहुत अधिक संख्या में पुलिस बल ने उन्हें घेर लिया।

वे समझ गये कि भोजन आज भी उनके भाग्य में नहीं है। अतः सब भोजन को छोड़कर फिर भागे; पर पुलिस इस बार अधिक तैयारी से थी। अतः मुठभेड़ चालू हो गयी। तीन क्रान्तिकारी वहीं मारे गये। तीन बच कर भाग निकले। 

उनमें नलिनीकान्त बागची भी थे। भूख के मारे उनकी हालत खराब थी। फिर भी वे तीन दिन तक जंगल में ही भागते रहे। इस दौरान एक जंगली कीड़ा उनके शरीर से चिपक गया। उसका जहर भी उनके शरीर में फैलने लगा। फिर भी वे किसी तरह हावड़ा पहुँच गये।

हावड़ा स्टेशन के बाहर एक पेड़ के नीचे वे बेहोश होकर गिर पड़े। सौभाग्यवश नलिनीकान्त का एक पुराना मित्र उधर से निकल रहा था। वह उन्हें उठाकर अपने घर ले गया। 

कुछ दिन में नलिनी ठीक हो गये। ठीक होने पर नलिनी मित्र से विदा लेकर कुछ समय अपना हुलिया बदलकर बिहार में छिपे रहे; पर चुप बैठना उनके स्वभाव में नहीं थी। अतः वे अपने साथी तारिणी प्रसन्न मजूमदार के पास ढाका आ गये।

लेकिन ब्रिटिश पुलिस जिसमें निचले स्तर पर सिर्फ वेतन और मेडल के लालच में लड़ने वाले तथाकथित भारतीय भरे पड़े थे, वह पुलिस तो उनके पीछे पड़ी ही थी। 

15 जून को हिंदुस्तानी सिपाहियों से भरी ब्रिटिश पुलिस ने उस मकान को भी घेर लिया, जहाँ से वे अपनी राष्ट्रहित की गतिविधियाँ चला रहे थे। उस समय तीन क्रान्तिकारी वहाँ थे। 

दोनों ओर से गोलीबारी शुरू हो गयी। पास के मकान से दो पुलिस वालों ने इधर घुसने का प्रयास किया; पर क्रान्तिवीरों की गोली से दोनों घायल हो गये। क्रान्तिकारियों के पास सामग्री बहुत कम थी, अतः तीनों दरवाजा खोलकर गोली चलाते हुए बाहर भागे। नलिनी की गोली से पुलिस अधिकारी का टोप उड़ गया..

पर उनकी संख्या बहुत अधिक थी। अन्ततः नलिनी गोली से घायल होकर गिर पड़े। असल में वीर की आंखें नहीं बंद हो रही थी बल्कि इस देश की क्रांति की मशाल की लौ बुझती हुई प्रतीत हो रही थी। 

ब्रिटिश पुलिस वाले उन्हें बग्घी में डालकर अस्पताल ले गये, जहाँ अगले दिन 16 जून, 1918 को नलिनीकान्त बागची ने भारत माँ को स्वतन्त्र कराने की अधूरी कामना मन में लिये ही शरीर त्याग दिया।

आज वीरता, शौर्य और बलिदान के उस शक्तिपुंज को उनके बलिदान दिवस पर सुदर्शन न्यूज़ बारंबार नमन करते हुए उनकी यश गाथा को सदा - सदा के लिए अमर रखने का संकल्प लेता है। नलिनी कांत बागची जी अमर रहें...

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