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Sambhal:'रानी की बावड़ी' बनाने वाले राजपरिवार का बाबर से कनेक्शन, सामने आए कई ऐतिहासिक रहस्य

UP: चंदौसी में खुदाई से मिली 150 साल पुरानी बावड़ी से जुड़ी नई जानकारी आयी सामने।

Ravi Rohan
  • Dec 26 2024 5:40PM

संभल जिले के चंदौसी शहर के लक्ष्मणपुर मोहल्ले में एक पुरानी बावड़ी का पता चला है, जो पिछले कुछ दिनों से चर्चा का विषय बनी हुई है। यह मोहल्ला मुस्लिम बहुल है और बावड़ी एक ऐसे स्थान पर स्थित है, जहां चारों ओर मकान बने हुए हैं।

बावड़ी के आसपास का क्षेत्र कचरे से भरा हुआ था, और इस क्षेत्र में खुदाई की शुरुआत कौशल किशोर नामक एक हिंदूवादी कार्यकर्ता की शिकायत पर की गई थी। उन्होंने अधिकारियों को बताया कि यह बावड़ी लगभग 150 साल पुरानी हो सकती है, जिसके बाद प्रशासन ने खुदाई के लिए टीम भेजी। 

बावड़ी का आकार और संरचना

चंदौसी की यह बावड़ी लगभग 30 फीट गहरी बताई जा रही है। अब तक की खुदाई में इसके 14-15 फीट तक खुदाई की गई है। यह बावड़ी तीन मंजिलों वाली है, जिनमें से दो मंजिल ईंटों से बनी हैं और एक पत्थर से। इस बावड़ी के ऊपरी दो मंजिलों में कमरे बने हुए हैं, जबकि सबसे निचली मंजिल पानी से जुड़ी हुई थी। यहां सीढ़ियां भी पक्के लाल पत्थरों से बनी हैं, जिनसे नीचे उतरने का रास्ता मिलता है। बावड़ी में कुल पांच गलियारे भी पाए गए हैं, जो चारों दिशाओं में फैले हुए हैं।

अंदर क्या मिला?

बावड़ी के सबसे निचले तल पर एक कुआं भी पाया गया है। एक कमरे में एक सुरंग का भी पता चला है, जो एक राधाकृष्ण मंदिर तक जाती है, इस बारे में स्थानीय लोगों का दावा है। बताया जाता है कि बावड़ी का उपयोग सैनिकों, आसपास के निवासियों और कृषि कार्यों के लिए किया जाता था। कई दशकों पहले तक यह पूरी तरह से भूमि में दबा हुआ नहीं था, लोग इस स्थान पर घूमने-फिरने आते थे।

किसने बनाई और इसके मालिक कौन हैं?

यह बावड़ी सहसपुर के राजपरिवार द्वारा बनवाई गई थी। यह राजपरिवार मुरादाबाद, बिजनौर, संभल और बदायूं जैसे क्षेत्रों में विस्तृत क्षेत्र पर राज करता था। इस राजपरिवार के राजा ने बाबर के खिलाफ युद्ध लड़ा था, हालांकि युद्ध में हार के बाद वह पंजाब चले गए थे। बाद में, औरंगजेब के समय वे लौटे और अपने राज्य को पुनः स्थापित किया। 

बावड़ी बनाने वाले राजा संभवतः प्रद्युमन कृष्ण सिंह थे, जिन्होंने 1857 के संघर्ष में अंग्रेजों की मदद की थी। उनके द्वारा किए गए योगदान के कारण उन्हें इनाम मिला। उनके ही शासनकाल में यह बावड़ी बनवाए जाने की संभावना है। राजा प्रद्युमन कृष्ण सिंह के बाद उनके वंशजों ने इस बावड़ी और अन्य संपत्तियों का मालिकाना हक रखा। 

पुरातत्व सर्वेक्षण और प्रशासन की पहल

इस बावड़ी की खुदाई के दौरान भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की टीम भी पहुंची और बावड़ी का निरीक्षण किया। इस टीम ने बावड़ी के फोटो और वीडियो भी बनाए हैं, जिससे इस ऐतिहासिक स्थल के महत्व को और समझने में मदद मिलेगी। स्थानीय प्रशासन ने इसे सावधानीपूर्वक खुदवाने के लिए नगर पालिका के मजदूरों को लगाया है, जो मशीनों की बजाय हाथों से काम कर रहे हैं। खुदाई का काम जारी है, और प्रशासन इस बावड़ी के रहस्यों को उजागर करने के लिए पूरी तरह से जुटा हुआ है।

चंदौसी की यह बावड़ी न केवल ऐतिहासिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसके माध्यम से हम उस समय के राजपरिवार और उनके कनेक्शनों को भी समझ सकते हैं। यह खुदाई और सर्वेक्षण इतिहासकारों और पुरातत्वविदों के लिए एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है, जिससे इस क्षेत्र की इतिहासिक धरोहर को बचाया जा सके।

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