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SC के निर्णय के बाद असम में उठी बांग्लादेशी घुसपैठियों की पहचान की मांग, विपक्ष ने कहा- अवैध अप्रवासियों को बाहर करे सरकार

अवैध प्रवासियों का निष्कासन के लिए सुदर्शन न्यूज की मुहिम जारी है।

Ravi Rohan
  • Oct 18 2024 8:34PM

सुप्रीम कोर्ट ने नागरिकता अधिनियम की धारा 6A को बरकरार रखते हुए अप्रवासी हिंदुओं को भारतीय नागरिकता देने के लिए 1971 की कट-ऑफ तारीख को मान्यता दी है। इस फैसले के बाद, असम में विभिन्न विपक्षी दलों और संगठनों ने सरकार से आग्रह किया है कि वह 24 मार्च, 1971 के बाद राज्य में प्रवेश करने वाले अवैध बांग्लादेशी प्रवासियों की पहचान कर उन्हें देश से निष्कासित करने की प्रक्रिया शुरू कर दे। यानी सीधा-सीधा वे NRC लागू करने की मांग कर रहे हैं।

मगर इसके साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि, 24 मार्च 1971 के बाद असम में आए सभी अप्रवासियों, चाहे वे किसी भी धर्म के हों, उन्हें वापस भेजने का फैसला करना होगा। तब ये प्रश्न उठता है की हिन्दू बाहुल राष्ट्र हिन्दुस्थान में ही अगर पड़ोसी देशों के शोषित पीड़ित अल्पसंख्यक हिंदुओं को हम जगह नहीं देंगे तो आखिर उनका अपना कौन देश होगा?

बात दें की भारत में अवैध तरीके से पड़ोसी मुल्क से आए घुसपैठियों, जिनकी संख्या करीब 10 करोड़ है, के खिलाफ NRC लागू कर के उन्हें देश से बाहर करने की बड़ी मुहीम सुदर्शन न्यूज के प्रधान संपादक श्री सुरेश चव्हाणके जी ने हाल ही में शुरू की है, जिसका पहला चरण महाराष्ट्र में चल रहा है। इस दौरान वर्तमान में घूसखोरों के आतंक से पीड़ित महाराष्ट्र में 'शिवप्रेरणा यात्रा' की शुरुआत करके लोगों को जनजागरूक किया जा रहा है।

सुप्रीम कोर्ट ने नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए को बरकरार रखते हुए 1971 की कट-ऑफ तारीख को मान्य किया। यह तारीख 1985 के असम समझौते से जुड़ी हुई है, जिसे तत्कालीन राजीव गांधी सरकार और ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू) के बीच लंबे असम आंदोलन के समापन पर हस्ताक्षरित किया गया था। इस समझौते में कहा गया है कि 24 मार्च, 1971 के बाद असम में आए अवैध प्रवासियों, चाहे उनका धर्म कोई भी हो, का पता लगाया जाना चाहिए और उन्हें बाहर निकाला जाना चाहिए।

CAA के दायरे से बाहर रहें असम 

 कुछ विपक्षी दलों ने यह मांग की है कि असम को नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (सीएए) के दायरे से बाहर रखा जाए, क्योंकि यह 1971 की कट-ऑफ तारीख के विपरीत है। सीएए के तहत, केंद्र ने बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से 31 दिसंबर, 2014 तक भारत में प्रवास करने वाले छह गैर-मुस्लिम समुदायों को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान किया है। समझौते के खंड 6 में स्पष्ट किया गया है कि असमिया लोगों की सांस्कृतिक, सामाजिक, और भाषाई पहचान के संरक्षण और संवर्धन के लिए उपयुक्त संवैधानिक, विधायी, और प्रशासनिक सुरक्षा उपायों का पालन किया जाएगा।

किसने क्या कहा

कांग्रेस, ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ), रायजोर दल, असम जातीय परिषद (एजेपी), एएएसयू और असम पब्लिक वर्क्स (एपीडब्ल्यू) ने सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले का स्वागत किया है। आसू के अध्यक्ष उत्पल सरमा ने कहा कि इस निर्णय के साथ अदालत ने विदेशी नागरिकों के पहचान और निष्कासन के आधार को लेकर चल रही बहस का समाधान कर दिया है। उन्होंने सरकार से अपील की कि वह 25 मार्च 1971 के बाद असम में प्रवेश करने वाले सभी अवैध प्रवासियों को निकालने की प्रक्रिया शुरू करे। 

रायजोर दल के प्रमुख अखिल गोगोई ने राज्यवासियों से अदालत के फैसले को स्वीकार करने की अपील की और कहा कि अब असम के लोगों को एकजुट होकर 24 मार्च, 1971 के बाद आए सभी अप्रवासियों को वापस भेजने का निर्णय लेना होगा, चाहे वे किसी भी धर्म के हों।

एजेपी के नेता लुरिनज्योति गोगोई ने कहा कि चूंकि अदालत ने 1971 को अवैध प्रवासियों के पहचान और निष्कासन का आधार मान लिया है, केंद्र सरकार को असम में नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (सीएए) को समाप्त करने और असम समझौते के खंड 6 को लागू करने की दिशा में कदम उठाने चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला

 सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने गुरुवार को नागरिकता कानून की धारा 6A पर एक महत्वपूर्ण सुनवाई की। इस सुनवाई में, पांच जजों की पीठ ने असम समझौते को मजबूत करने के लिए 1985 में किए गए संशोधन के तहत धारा 6A की संवैधानिक वैधता को बनाए रखा।

मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति सूर्यकांत, एमएम सुंदरेश, और मनोज मिश्रा ने इस मामले में बहुमत का फैसला सुनाया, जबकि न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला ने असहमति जताई। धारा 6A को 1985 में असम समझौते का हिस्सा बनाया गया था, ताकि 1 जनवरी 1966 से 25 मार्च 1971 के बीच असम में आए उन अवैध बांग्लादेशी प्रवासियों को नागरिकता का अधिकार दिया जा सके।

सुनवाई के दौरान मुख्य बिंदु 

मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने स्पष्ट किया कि बहुमत का निर्णय धारा 6A को संविधान के अनुरूप मानता है। न्यायमूर्ति पारदीवाला ने इसके संशोधन को अनुचित बताया। इस निर्णय का मतलब यह है कि 1 जनवरी 1966 से 24 मार्च 1971 के बीच असम में आए प्रवासियों की नागरिकता को कोई खतरा नहीं है। आंकड़ों के अनुसार, असम में लगभग 40 लाख अवैध प्रवासी हैं, जबकि पश्चिम बंगाल में यह संख्या 57 लाख है। असम की छोटी जनसंख्या को देखते हुए, अलग कट-ऑफ तिथि का निर्धारण आवश्यक था। मुख्य न्यायाधीश ने 25 मार्च 1971 की तिथि को सही ठहराया।

SC के निर्णय का सारांश

सरल शब्दों में, सुप्रीम कोर्ट ने 4:1 के बहुमत से 1985 के असम समझौते और नागरिकता कानून की धारा 6A को मान्यता दी है। इसका अर्थ है कि 1 जनवरी 1966 से 25 मार्च 1971 के बीच असम में आए लोगों की नागरिकता बनी रहेगी, जबकि उसके बाद आने वाले लोग अवैध नागरिक माने जाएंगे। कोर्ट ने कहा कि असम की छोटी जनसंख्या को ध्यान में रखते हुए यह कट-ऑफ तिथि उचित है।


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