राष्ट्र निर्माण संस्था के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री सुरेश चव्हाणके जी ने 2019 में देश में एकतरफा बढ़ रही आबादी के नियंत्रण हेतु भारत बचाओ यात्रा निकाली थी जिसमे उन्होंने पूरे देश में घूम घूम कर बढ़ रही आबादी और उसके चलते आने वाले समय में होने वाली दिक्कतों पर प्रकाश डाला था. तमाम बुनियादी समस्या के साथ ही राष्ट्रीय अस्मिता को भी खतरा है जिसे सिर्फ और सिर्फ इसी यात्रा में बताया गया था .. उसी यात्रा के बाद न सिर्फ आम जनता को हर बात समझ में आई अपितु उसके बाद ही देश के सत्ताधीशो को भी ये लगा की यदि ऐसा न हुआ तो देश को आने वाले समय में अखंडता का खतरा झेलना पड़ सकता है .. उसके बाद ही लोकसभा और राज्यसभा में आवाजें उठने लगी और श्री सुरेश चव्हाणके जी द्वारा उठाई ये मुहीम धीरे धीरे आन्दोलन का रूप लेने लगी है जिसमे अभी और तेजी आना बाकी है.
आज चर्चा हो रही है उस महाशक्ति की जो दुनिया की सबसे बड़ी शक्ति होने के साथ साथ दुनिया के सबसे ताकतवर व्यक्ति व्लादिमीर पुतिन द्वारा संचालित था और है भी .. इतना ही नही , विशाल और ऐसी ताकतवर सेना का मालिक जो किसी भी देश को पल भर में खत्म कर सकती थी .. लेकिन उसके बाद भी उनके देश के एक बड़े भूखंड को तोड़ लिया गया और कहा गया की वो रूसियो के साथ नहीं रह सकते . उन्होंने तेजी से अपनी संख्या बढाई और कहा की उन्हें उनका नया देश चाहिए . इस से पहले उन्होंने जितना हो सकता था उतना उन रूसियो को बदनाम किया जो हमेशा उनके साथ मिल कर चलने के पक्षधर थे . उन्होंने उन्हें हत्यारा और खुद पर अत्याचार करने वाला घोषित कर दिया था . इतने के बाद भी रूसियो ने कभी उद्दंडता नहीं दिखाई थी .. उसके बाद भी आज रूस में लाखों मुस्लिम हैं क्योकि रूसियों ने कभी भी मज़हबी आधार पर कार्य नहीं किया न ही व्यवहार .. मॉस्को में आजकल 20 लाख से अधिक मुसलमान रहते और काम करते हैं. यह अब यूरोप में मुस्लिम लोगों के सबसे बड़े शहरों में से एक हो गया है और कुछ मस्जिदें इतनी बड़ी आबादी के लिए काफी नहीं है.
अगर इतिहास में देखा जाय तो , ऐतिहासिक तौर पर चेचन्या पिछले लगभग 200 साल से रूस के लिए मुश्किल बना हुआ है. रूस ने लंबे और रक्तरंजित अभियान के बाद 1858 में चेचन्या में इमाम शमील के विद्रोह को कुचला. रूसी लेखक लेव तोल्स्तोय और लर्मोंतौफ़ 19वीं शताब्दी के उन लेखकों में आते हैं जिन्होंने अपनी कृतियों में इस विद्रोह की चर्चा की है. पहले विद्रोह की आग के ठंढी पड़ने के लगभग 60 साल बाद जब रूस में क्रांति हुई तो मुस्लिम बहुल चेचन मौक़ा देख कर फिर रूस से अलग हो गए. पर ये आज़ादी कुछ ही समय तक बनी रही और 1922 में रूस ने अपनी सैन्य शक्ति के दम पर भले ही फिर चेचन्या पर अधिकार कर लिया हो लेकिन उसमे उसको अपने कई जांबाज़ सैनिक खोने पड़े थे . दूसरे महायुद्ध के वक़्त जब रूसी सेनाएं व्यस्त थी तमाम अन्य दुश्मन देशो से लड़ने में तब इसको एक मौक़ा मान कर मुस्लिम बहुल चेचन फिर रूस से अलग हो गए. रूस ने भी संयम रखा और लड़ाई तक थमने का इंतजार किया और विश्व युद्ध की लड़ाई थमते ही रूसी नेता स्टालिन ने बार बार गद्दारी कर रहे उन चेचन अलगाववादियों पर दुश्मनों से सहयोग का आरोप लगाकर उन्हें साइबेरिया और मध्य एशियाई क्षेत्रों में निर्वासित कर दिया.
1994 में रूस ने वहाँ सेना भेजी मगर मुस्लिम बहुल चेचन में वहां उन्हें गोलियों से प्रतिरोध किया गया .. उनके मन में एक अलग देश की चाहत इतनी पैदा हो चुकी थी की वो सीधे रूस की फ़ौज से भिड गये और तमाम रूसी सैनिको को मौत के घाट उतार दिया हालत तो यहाँ तक पहुचे की ढेर सारे रूसी सैनिकों की मौत होने के बाद सरकार पर दबाव बढ़ा और उन्हें 1996 में विद्रोहियों के साथ शांति समझौता करना पड़ा. इसको रूस की हार कहा गया जिसने बड़े बड़े देशो को घुटने के बल बिठा दिया उसने इस्लामिक मुल्क की मांग कर रहे चेचन विद्रोहियों के आगे घुटने टेक दिए . . समझौते के तहत चेचन्या को स्वायत्तता दी गई मगर पूरी आज़ादी नहीं मिली. 1997 में चेचन सेना के प्रमुख जनरल अस्लान मस्खादौफ़ को राष्ट्रपति चुना गया. मगर मस्खादौफ़ चेचन्या के बर्बर सरदारों को नियंत्रित नहीं कर सके और वहाँ अपराध और अपहरण बढ़ता गया.
अगस्त 1999 में चेचन विद्रोही पड़ोसी रूसी गणराज्य दागेस्तान चले गए और वहाँ एक मुस्लिम गुट के अलग राष्ट्र की घोषणा का समर्थन कर दिया जो कि चेचन्या और दागेस्तान के कुछ क्षेत्रों को मिलाकर बनाया जा रहा था. लेकिन तब तक रूस में व्लादीमिर पुतिन प्रधानमंत्री बन चुके थे और उनकी सरकार ने सख़्ती दिखानी शुरू कर दी. इतना ही नही रूस के संविधान और सत्ता को चुनौती देते हुए इन सभी ने अख़मद कदिरौफ़ 2003 में विवादास्पद चुनाव के बाद राष्ट्रपति घोषित कर डाला था .. इसके बाद पुतिन सरकार ने मार्च 2003 में एक विवादास्पद जनमत संग्रह करवाया. इसके तहत चेचन्या के लिए नए संविधान को मंज़ूरी दी गई और चेचन्या को और स्वायत्तता दी गई. मगर ये स्पष्ट कर दिया गया कि चेचन्या रूस का हिस्सा है.
इस समय तमाम इस्लामिक देशों ने रूस की खुली खिलाफत की लेकिन रूस के आक्रामक अंदाज़ में आते ही वो केवल जुबानी विरोध तक सीमित रह गये थे .. यकीनन अगर रूसी फ़ौज इतनी मजबूत न होती तो रूस पर तमाम मुस्लिम देशो का सामूहिक हमला तय था . वो दिन आज ही था अर्थात १० अगस्त सन 1999 जब संसार की सबसे बड़ी शक्ति को चुनौती देते हुए अलग देश लेने का एलान कर दिया था .. इतना ही नहीं वो जंग आज भी जारी है जहाँ रूस अपने सैनिको को आये दिन खो रहा है .. वजह केवल वही जो कई देश झेल रहे हैं .. यकीनन इस से तमाम अन्य देशो और देश से ऊपर बाकी तमाम चीजो को रखने वालों को सबक लेने की जरूरत है.