ये वो पावन धुन है जिसको गाते हुए आज़ादी की सशत्र क्रांति की गयी थी. इसी धुन में कई वो अंग्रेज पिस गये थे जो नापाक नजर को ले कर हमारे राष्ट्र को कब्ज़ा करने आये थे. उस धुन के रचियता का आज जन्म दिवस है.. वो महान धुन जिसके लिए कोई गद्दार कहता है कि उसकी गर्दन पर चाकू रखने के बाद भी वो वन्देमातरम नहीं गायेगा. वन्देमातरम के रचयिता श्री बंकिम चंद्र चटर्जी जी या बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय जी की आज जन्मजयंती है. भारत माता के इस महान सपूत का जन्म आज के ही दिन अर्थात 27 जून 1838 को पश्चिम बंगाल के 24 परगना जिले के कांठल पाड़ा नामक गांव में हुआ था.
मेदिनीपुर में अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद बंकिम चंद्र चटर्जी जी ने हुगली के मोहसीन कॉलेज में दाखिला लिया. बंकिम चंद्र चटर्जी जी एक बहुत ही उपयोगी पाठक थे और संस्कृत साहित्य में बहुत रुचि रखते थे. वर्ष 1856 में उन्होंने कलकत्ता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में दाखिला लिया. बंकिम चंद्र चटर्जी जी अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद, सरकारी सेवा में शामिल हो गए और 1891 में सेवानिवृत्त हुए. उनके पिता श्री यादवचन्द्र चट्टोपाध्याय जी बंगाल के मेदिनापुर जिले के डिप्टी कलेक्टर थे. अत: बंकिम की प्रारम्भिक शिक्षा वहीं पर हुई. बचपन से ही उनकी रुचि संस्कृत के प्रति थी. अंग्रेजी के प्रति उनकी रुचि तब समाप्त हो गयी, जब उनके अंग्रेजी अध्यापक ने उन्हें बुरी तरह से डांटा था.
पढ़ाई से अधिक खेलकूद में उनकी विशेष रुचि थी. वे एक मेधावी व मेहनती छात्र थे. 1858 में कॉलेज की परीक्षा पूर्ण कर ली. बी०ए० की परीक्षा में वे प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुए. पिता की आज्ञा का पालन करते हुए उन्होंने 1858 में ही डिप्टी मजिस्ट्रेट का पदभार संभाला. सरकारी नौकरी में रहते हुए उन्होंने 1857 का गदर देखा था, जिसमें शासन प्रणाली में आकस्मिक परिवर्तन हुआ. शासन भार ईस्ट इण्डिया कम्पनी के हाथों में न रहकर महारानी विक्टोरिया के हाथों में आ गया था. सरकारी नौकरी में होने के कारण वे किसी सार्वजनिक आन्दोलन में प्रत्यक्ष भाग नहीं ले सकते थे. अत: उन्होंने साहित्य के माध्यम से स्वतन्त्रता आन्दोलन के लिए जागृति का संकल्प लिया.
बंकिम चंद्र चटर्जी जी कविता और उपन्यास दोनों में माहिर थे. वर्ष 1865 में, उनकी प्रथम प्रकाशित रचना बांग्ला कृति ‘दुर्गेशनंदिनी’ प्रकाशित हुई थी. फिर उनकी अगली रचनाएं – 1866 में कपालकुंडला, 1869 में मृणालिनी, 1873 में विषवृक्ष, 1877 में चंद्रशेखर, 1877 में रजनी, 1881 में राजसिंह और 1884 में देवी चौधुरानी थीं. बंकिम चंद्र चटर्जी ने 1872 में मासिक पत्रिका ‘वंगदर्शन’ का भी प्रकाशन किया. “आनंदमठ” उनका सबसे प्रसिद्ध उपन्यास था, जो 1882 में प्रकाशित हुआ, जिससे प्रसिद्ध गीत ‘वंदे मातरम्’ लिया गया है. आनंदमठ में ईस्ट इंडिया कंपनी के वेतन के लिए लड़ने वाले भारतीय योद्धाओं का वर्णन किया गया है. यह किताब राष्ट्रीय एकता का आह्वान करती है. इस प्रसिद्ध गीत वंदे मातरम् को किसी और ने नहीं बल्कि रवीन्द्रनाथ टैगोर जी द्वारा संगीतबद्ध किया गया था.
बंकिम चन्द्र की शादी महज ग्यारह वर्ष आयु में ही हो गई थी. अपनी पहली पत्नी की मृत्यु के बाद, उन्होंने पुनर्विवाह किया. बंकिमचन्द्र एक महान् साहित्यकार ही नहीं, वरन् एक देशभक्त भी थे. देशभक्ति एवं मातृभूमि के प्रति उनकी सेवा भावना ने ही उनके साहित्यकार व्यक्तित्व को पूर्णता दी. आनन्दमठ के माध्यम से देश के कोने-कोने में देशभक्ति व वन्देमातरम् का जयघोष करने वाले बंकिम एक महान देशभक्त थे. उनकी देशभक्ति एवं स्वाभिमान का उदाहरण कर्नल डफिन पर काले भारतीय का अपमान करने के एवज में दावा ठोकना था. उस अधिकारी को उन्होंने माफी मांगने पर मजबूर कर दिया था. सरकारी नौकरी पर रहते हुए बंकिम ने बड़खोली गांव पर धावा बोलने वाले अंग्रेज लुटेरों का दमन किया. उनमें से 25 को काला पानी, एक को फांसी की सजा तक सुनायी.
इसके एवज में मिलने वाली जान से मारने की धमकी से वे जरा भी भयभीत नहीं हुए. अपनी योग्यता और सूझबूझ से वे हमेशा अंग्रेजों का विरोध करते हुए देशभक्ति के लिए समर्पित रहे. निश्चित रूप से यह कहना होगा कि बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय ने वन्देमातरम् के माध्यम से राष्ट्रीयता के जो जागृति भरे संस्कार गुलाम भारतीयों को दिये, उनके लिए भारतवासी उनके सदा ऋणी रहेंगे. ऐसे साहित्यसेवी, देशसेवी, सच्चे भारतीय का देहावसान सन् 1894 को एक लम्बी बीमारी से हुआ. आज 27 जून को उस महान रचयिता के जन्म दिवस पर उनको बारम्बार नमन करते हुए सुदर्शन परिवार उनकी गौरवगाथा को सदा सदा के लिए अमर रखने का संकल्प लेता है.