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1 जुलाई : बलिदान दिवस बीरबल सिंह ढालिया जी... पहले लाठियां बरसाईं गई फिर 3 गोलियां मारी, लेकिन थामे रहे राष्ट्रध्वज और गाते रहे वंदेमातरम

आज उस महान राष्ट्रभक्त के बलिदान दिवस पर उन्हें शत शत नमन करते हुए उनकी गौरवगाथा को सदा सदा के लिए अमर रखने का संकल्प सुदर्शन परिवार लेता है.

Sumant Kashyap
  • Jul 1 2024 10:03AM

ये ऐसे महान योद्धा थे जिन्होंने कभी राष्ट्र की स्वतंत्रता के सपने सँजोये थे ..इतना तक उनकी तैयारी थी कि अपने प्राण भी देने पड़े तो दे देंगे ..अमर बलिदानी श्री बीरबल सिंह ढालिया गंगानगर जिले के रायसिंह नगर के निवासी थे. शिक्षा सामान्य, शरीर हष्ट-पुष्ट था. आप रूई की आढत का व्यवसाय करते थे. आपके पिता श्री सालगराम जी व भाई जवाहर लाल ,जगमल,व सीताराम थे. परिवार सहित फाजिल्का बंगले में रहते थे. आपके विचार राष्ट्रीयता से परिपूर्ण बीकानेर प्रजा परिषद के सदस्य थे. आपने सामान्ती अत्याचारों का विरोघ किया नागरिक अधिकारों की प्राप्ति के लिए हमेशा संघर्ष किया.

राज्य की ओर से प्रजा परिषद के अधिवेशन करने पर तो प्रतिबन्ध नहीं था किन्तु तिरंगा फहराने पर प्रतिबन्ध था. 30 जून 1946 को राज्यदेश की अवलहेलना कर निरंगा लेकर जुलूस निकाला गया. श्री बीरबल सिंह जी की बांई भुजा पर इतनी जोर की लाठियां पड़ी की भूजा से खून टपकटे लगा, किन्तु आजादी के दिवाने इससे नहीं रूके. भारतमाता की जय , इन्कलाब-जिन्दाबाद के नारे लगाते हुए जब रेस्ट हाउस की ओर बढे तो सेना के जवानों ने अंधाधुंध गोलियां चलानी शुरू कर दी.. ये वो सिपाही थे जो मात्र मेडल और वेतन के लालच में अपनों के ही खून से रंग रहे थे अपने ही हाथ. इसी समय बीरबल सिंह जी की जांघ में एक साथ तीन गोलियां लगी लेकिन वे रूके नहीं चलते रहे.

लोगों ने उन्हें कन्धे पर उठाया उन्हें पाण्डाल में ले गये. माहौल में ढिलाई होने पर चिकिस्तालय चारपायी समेत लेजाया गया। उनका खून काफी बह चुका था पर फिर भी हाथ में तिरंगा थामे थे. चिकिस्तक उनकी हिम्म्त देखकर स्तब्ध थे. उन्होंने अपने अन्तिम शब्दों में यही कहा " इस झण्डे की लाज अब मैं आपको सोंपे जा रहा हूं" और इसी के साथ 1 जुलाई, 1946 को हमेशा हमेशा के लिए अपनी आंखे मूंद ली. 1 जुलाई, 1946 को बलिदानी के पार्थिव शरीर का जुलूस निकाला गया, जिसमें आजाद हिंद फोज के कर्नल अमरसिंह तिरंगा झण्डा लिये सबसे आगे चल रहे थे. शव यात्रा का दृश्य अभूतपूर्व था. हजारों लोगों ने को पूष्पांजली दी. एक ओर चिता पर अमर बलिदानी की देह को अग्नि में समर्पित की जा रही थी तो दूसरी ओर उनकी पत्नी श्रीमती मूलीदेवी व चार वर्षीय पूत्री चम्पाकुमारी साहस पूर्वक उस यशस्वी को पंचभूत में विलिन होते देख रही थी.

रायसिंह नगर के रेस्ट हाउस के पास जहां इस महावीर को गोली लगी जनता ने संगमरमर की मूर्ति की स्थापनी की. 30 जून व 1 जुलाई को बलिदान मेला लगता है. लोग दूर दूर से श्रद्धाजंली भेंट करने सपरिवार आते हैं. गंगानगर के मुख्य चौक में बलिदान बीरबल सिंह की मूर्ति स्थापति कर चौक का नाम ' वीर बीरबल चौक' रखा तथा गंगानगर में बलिदानी के नाम से एक उद्यान भी है. राज्य सरकार ने राजस्थान नहर की एक वितरिका का नाम भी बीरबल सिंह वितरिका रखा है. आज उस महान राष्ट्रभक्त के बलिदान दिवस पर उन्हें शत शत नमन करते हुए उनकी गौरवगाथा को सदा सदा के लिए अमर रखने का संकल्प सुदर्शन परिवार लेता है.

 

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