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21 अक्टूबर : अंग्रेजों को धूल चटाने के लिए आज ही के दिन सुभाष चंद्र बोस जी ने बनाई थी ‘आजाद हिंद फौज’...कई देशों में थी इसकी मान्यता

'आज़ाद हिन्द फ़ौज' के प्रतीक चिह्न के लिए एक झंडे पर दहाड़ते हुए बाघ का चित्र बना होता था

Sumant Kashyap
  • Oct 21 2024 8:32AM
अंग्रेजों की गुलामी की बेड़ियों मे जकड़ी भारत मां के एक सच्चे और वीर सपूत के तौर पर नेताजी सुभाष च्रंद्र बोस जी को दर्जा हासिल है. 21 अक्टूबर 1943 के दिन सुभाष चंद्र बोस जी ने आजाद हिंद फौज के सर्वोच्च सेनापति के रूप में स्वतंत्र भारत की प्रांतीय सरकार बनाई थी. इसे आजाद हिंद सरकार के नाम से पुकारा जाता है. आजाद हिंद सरकार को जापान, जर्मनी, फिलिपींस, चीन, कोरिया, इटली, आयरलैंड समेत 9 देशों ने मान्यता दी थी. वहीं फौज को आधुनिक तरीके ये युद्ध करने के लिए जापान ने काफी सहायता की. अंडमान और निकोबार द्वीप जापान ने ही आज़ाद हिंद सरकार स्थापना की तथा 'आज़ाद हिन्द फ़ौज' का गठन किया. इस संगठन के प्रतीक चिह्न पर एक झंडे पर दहाड़ते हुए बाघ का चित्र बना होता था.

आज़ाद हिंद की प्रत्यक्ष उत्पत्ति को दक्षिण पूर्व एशिया के भारतीय प्रवासियों के दो सम्मेलनों से जोड़ा जा सकता है, जिनमें से पहला मार्च 1942 में टोक्यो में आयोजित किया गया था. इस सम्मेलन में, रासबिहारी बोस जी , जो कि एक भारतीय प्रवासी थे, ने बुलाया था. जापान, भारतीय स्वतंत्रता लीग की स्थापना राजनीतिक रूप से जापान के साम्राज्य के साथ जुड़े एक स्वतंत्र भारतीय राज्य की दिशा में पहले कदम के रूप में की गई थी. रैश एक प्रकार की स्वतंत्रता सेना बनाने के लिए भी आगे बढ़े जो अंग्रेजों को भारत से खदेड़ने में सहायता करेगी - यह बल बाद में भारतीय राष्ट्रीय सेना बन गया. उसी वर्ष बाद में बैंकॉक में आयोजित दूसरे सम्मेलन में सुभाष चंद्र बोस जी को लीग के नेतृत्व में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया. बोस जी उस समय जर्मनी में रह रहे थे और उन्होंने पनडुब्बी के माध्यम से जापान की यात्रा की. 

रासबिहारी बोस जी, जो लीग की स्थापना के समय पहले ही बूढ़े हो चुके थे, ने लीग को संगठित रखने के लिए संघर्ष किया और भारतीय राष्ट्रीय सेना की स्थापना के लिए संसाधनों को सुरक्षित करने में विफल रहे. उन्हें सुभाष चंद्र बोस जी द्वारा भारतीय स्वतंत्रता लीग के अध्यक्ष के रूप में प्रतिस्थापित किया गया था; इस बात पर कुछ विवाद है कि क्या उन्होंने अपनी इच्छा से पद छोड़ा या जापानियों के दबाव में, जिन्हें भारतीय राष्ट्रवादियों का नेतृत्व करने के लिए अधिक ऊर्जावान और केंद्रित उपस्थिति की आवश्यकता थी. 

सुभाष चंद्र बोस जी 13 जून 1943 को टोक्यो पहुंचे और अंग्रेजों को उपमहाद्वीप के नियंत्रण से बाहर करने के प्रयास में भारत के पूर्वी प्रांतों के खिलाफ हमला करने के अपने इरादे की घोषणा की. सुभाष चंद्र बोस जी 2 जुलाई को सिंगापुर पहुंचे, और अक्टूबर 1943 में कैथे सिनेमा हॉल में औपचारिक रूप से स्वतंत्र भारत की अनंतिम सरकार की स्थापना की घोषणा की. इस नए राजनीतिक प्रतिष्ठान के कार्यों को परिभाषित करते हुए,  सुभाष चंद्र बोस जी  ने घोषणा की: "यह अनंतिम सरकार का कार्य होगा कि वह संघर्ष शुरू करे और उसका संचालन करे जो ब्रिटिश और उनके सहयोगियों को भारत की धरती से निष्कासित कर देगा. सुभाष चंद्र बोस जी ने निराश और कमजोर भारतीय राष्ट्रीय सेना की औपचारिक कमान रैश बोस जी से लेते हुए जापानियों की मदद से इसे एक पेशेवर सेना में बदल दिया. उन्होंने दक्षिण-पूर्व एशिया के जापानी-कब्जे वाले क्षेत्रों में रहने वाले भारतीय नागरिकों की भर्ती की और सिंगापुर, मलाया और हांगकांग में ब्रिटिश सेनाओं से बड़ी संख्या में भारतीय युद्धबंदियों को आईएनए की ब्रिगेड में शामिल किया.

सामान्य धारणा यह है कि आज़ाद हिन्द फ़ौज और आज़ाद हिन्द सरकार की स्थापना नेताजी सुभाषचन्द्र बोस जी ने जापान में की थी; पर इससे पहले प्रथम विश्व युद्ध के बाद अफ़ग़ानिस्तान में महान् क्रान्तिकारी राजा महेन्द्र प्रताप जी ने आज़ाद हिन्द सरकार और फ़ौज बनायी थी. इसमें 6,000 सैनिक थे. जापान में रासबिहारी बोस जी ने भी आज़ाद हिन्द फ़ौज बनाकर उसका जनरल कैप्टेन मोहन सिंह जी को बनाया. भारत को अंग्रेज़ों के चंगुल से सैन्य बल द्वारा मुक्त कराना ही इस फ़ौज का उद्देश्य था.

नेताजी सुभाषचन्द्र बोस जी 5 दिसम्बर, 1940 को जेल से मुक्त हो गये. पर उन्हें कोलकाता में अपने घर पर ही नजरबन्द कर दिया गया. 18 जनवरी, 1941 को नेताजी गायब होकर काबुल होते हुए जर्मनी जा पहुँचे और हिटलर से भेंट की. वहीं, जर्मनी में बन्दी ब्रिटिश सेना के भारतीय सैनिकों से सुभाष बाबू ने भेंट की. जब उनके सामने ऐसी सेना की बात रखी गयी, तो उन सबने इस योजना का स्वागत किया.

जापान में रासबिहारी बोस द्वारा निर्मित ‘इण्डिया इण्डिपेण्डेस लीग’ (आजाद हिन्द संघ) का जून, 1942 में एक सम्मेलन हुआ, जिसमें अनेक देशों के प्रतिनिधि उपस्थित थे. इसके बाद रासबिहारी बोस जी ने जापान शासन की सहमति से नेताजी को आमन्त्रित किया. मई, 1943 में जापान आकर नेताजी ने प्रधानमंत्री जनरल तोजो से भेंट कर अंग्रेज़ों से युद्ध की अपनी योजना पर चर्चा की. 16 जून को जापानी संसद में नेताजी को सम्मानित किया गया. नेताजी 4 जुलाई, 1943 को आज़ाद हिन्द फ़ौज के प्रधान सेनापति बने.

9 जुलाई को नेताजी सुभाषचंद्र बोस जी ने एक समारोह में 60,000 लोगों को सम्बोधित करते हुए कहा- "यह सेना न केवल भारत को स्वतन्त्रता प्रदान करेगी, अपितु स्वतन्त्र भारत की सेना का भी निर्माण करेगी. हमारी विजय तब पूर्ण होगी, जब हम ब्रिटिश साम्राज्य को दिल्ली के लाल कोर्ट में दफना देंगे. आज से हमारा परस्पर अभिवादन जय हिन्द और हमारा नारा दिल्ली चलो होगा. सुभाषचंद्र बोस जी ने 4 जुलाई, 1943 को ही तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा का उद्घोष किया. उन्होंने 21 अक्टूबर, 1943 ई. को सिंगापुर में अस्थायी भारत सरकार 'आज़ाद हिन्द सरकार' की स्थापना की. सुभाषचन्द्र बोस जी इस सरकार के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री तथा सेनाध्यक्ष तीनों थे. वित्त विभाग एस. सी चटर्जी को, प्रचार विभाग एस. ए. अय्यर को तथा महिला संगठन लक्ष्मी स्वामीनाथन को सौंपा गया.

'आज़ाद हिन्द फ़ौज' के प्रतीक चिह्न के लिए एक झंडे पर दहाड़ते हुए बाघ का चित्र बना होता था. 'क़दम-क़दम बढाए जा, खुशी के गीत गाए जा'- इस संगठन का वह गीत था, जिसे गुनगुना कर संगठन के सेनानी जोश और उत्साह से भर उठते थे. जापानी सैनिकों के साथ आज़ाद हिन्द फ़ौज रंगून (यांगून) से होती हुई थलमार्ग से भारत की ओर बढ़ती हुई 18 मार्च सन 1944 ई. को कोहिमा और इम्फ़ाल के भारतीय मैदानी क्षेत्रों में पहुंच गई

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