आज़ादी के ठेकेदारों ने जिस वीर के बारें में नहीं बताया होगा, बिना खड्ग बिना ढाल के आज़ादी दिलाने की जिम्मेदारी लेने वालों ने जिसे हर पल छिपाने के साथ ही सदा के लिए मिटाने की कोशिश की ,, उन लाखों सशत्र क्रांतिवीरों में से एक थे महान स्वतंत्रता सेनानी देशबंधु चितरंजन दास जी . भारत के इतिहास को विकृत करने वाले चाटुकार इतिहासकार अगर देशबंधु चितरंजन दास जी का सच दिखाते तो आज इतिहास काली स्याही का नहीं बल्कि स्वर्णिम रंग में होता. आज महान स्वतंत्रता सेनानी देशबंधु चितरंजन दास जी के जन्मदिवस पर सुदर्शन परिवार उन्हें कोटि-कोटि नमन करता है और उनकी गौरव गाथा को समय-समय पर जनमानस के आगे लाते रहने का संकल्प भी दोहराता है.
चित्तरंजन दास जी का जन्म 5 नवंबर, 1870 को कोलकाता में हुआ था. उनका ताल्लुक ढाका के बिक्रमपुर के तेलिरबाग के प्रसिद्ध दास परिवार से था. उनके पिता भुबन मोहन दास जी कोलकाता उच्च न्यायालय में एक जाने माने वकील थे. देशबंधु जी अपनी तीक्ष्ण बुद्धि और पत्रकारीय दृष्टिकोण के लिए जाने जाते थे. चित्तरंजन दास जी कलकत्ता उच्च न्यायालय के विख्यात वक़ील थे, जिन्होंने अलीपुर बम केस में अरविन्द घोष की पैरवी की थी.
जानकारी के लिए बता दें कि चित्तरंजन दास जी ने अपनी चलती हुई वकालत छोड़कर गांधी के असहयोग आंदोलन में भाग लिया और पूर्णतया राजनीति में आ गए. उन्होंने विलासी जीवन व्यतीत करना छोड़ दिया और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सिद्धान्तों का प्रचार करते हुए सारे देश का भ्रमण किया. चित्तरंजन दास जी अपनी समस्त सम्पत्ति और विशाल प्रासाद राष्ट्रीय हित में समर्पण कर दिया. वे कलकत्ता के नगर प्रमुख निर्वाचित हुए. उनके साथ सुभाषचन्द्र बोस जी कलकत्ता निगम के मुख्य कार्याधिकारी नियुक्त हुए. इस प्रकार चित्तरंजन दास जी ने कलकत्ता निगम को यूरोपीय नियंत्रण से मुक्त किया.
चित्तरंजन दास जी का मानना था कि यदि अंग्रेजों को कमजोर करना है, तो भारतीयों को जनता द्वारा निर्वाचित होकर सरकार में शामिल होना होगा. ताकि वे दमनकारी नीतियों का बहिष्कार कर सकें और सरकार पर दवाब बढ़े. सामान्य शब्दों में, उन्होंने विधान परिषदों को अपना हथियार बनाया. लेकिन, कांग्रेस को उनकी यह रणनीति मंजूर नहीं थी. ऐसे में, दास जी मोतीलाल नेहरू और पार्टी के कुछ अन्य सहयोगियों के साथ अलग हो गए और 1 जनवरी 1923 को ‘कांग्रेस खिलाफत स्वराज पार्टी’ की शुरुआत की. वह पार्टी के अध्यक्ष और मोतीलाल नेहरू महासचिव थे.
बाद में, इसे स्वराज पार्टी नाम दिया गया. इसके तहत चित्तरंजन दास जी का लक्ष्य देश में स्वशासन, नागरिक स्वतंत्रता और स्थानीय उद्योगों को बढ़ावा देना था. फिर, सेंट्रल लेजिस्लेटिव असेंबली चुनाव में यह पार्टी बंगाल के कई प्रांतों में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी और 101 में से 42 सीटें अपने नाम की. इसके बाद, वह 1924-25 के दौरान कलकत्ता नगर महापालिका के प्रमुख के रूप में चुने गए और इसी चुनाव में सुभाष चंद्र बोस जी को मुख्य कार्यकारी अधिकारी नियुक्त किया गया.
चित्तरंजन दास जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे. वह जितने अच्छे नेता और वकील थे, उतने ही अच्छे लेखक भी. उन्होंने मासिक पत्रिका “नारायण” का लंबे समय तक संचालन किया और धार्मिक पुनर्जागरण को बढ़ावा दिया. जो उस समय आजादी के लिए काफी जरूरी था.
वह अंग्रेजी पत्र ‘वंदे मातरम’ के संस्थापक मंडल में रहने के साथ ही, उन्होंने बंगाल स्वराज दल के मुखपत्र ‘फॉरवर्ड’ की भी शुरुआत की. नेताजी सुभाष चंद्र बोस जी उनके अखबार के संपादक थे. आगे चलकर यह अखबार ‘लिबर्टी’ के नाम से मशहूर हुआ. वहीं, पत्रकारिता के अलावा उन्होंने सागरसंगीत, अंतर्यामी, किशोर जैसे कई काव्यग्रंथों की भी रचना की और उनका एक और ग्रंथ ‘इंडिया फॉर इंडियन’ खासा लोकप्रिय हुआ. उन्होंने अरबिंदो घोष के साथ मिलकर अपनी रचना सागरसंगीत का ‘सॉन्ग्स ऑफ द सी’नाम से अंग्रेजी में अनुवाद भी किया.
चित्तरंजन दास जी का राजनीतिक जीवन अपने चरम पर था. लेकिन काम के बोझ के तले उनकी तबियत खराब रहने लगी. साल 1925 में वह स्वास्थ्य लाभ लेने के लिए दार्जिलिंग गए. इस दौरान गांधी उनसे मिलने भी पहुंचे. लेकिन वह कभी उबर नहीं सके और 16 जून 1925 को देश के इस महान सपूत ने तेज बुखार के कारण दुनिया को अलविदा कह दिया.
आज महान स्वतंत्रता सेनानी देशबंधु चितरंजन दास जी के जन्मदिवस पर सुदर्शन परिवार उन्हें कोटि-कोटि नमन करता है और उनकी गौरव गाथा को समय-समय पर जनमानस के आगे लाते रहने का संकल्प भी दोहराता है.