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9 सितंबर: जन्मदिवस पर नमन है कारगिल के महायोद्धा कैप्टन विक्रम बत्रा.. इस्लामिक आतंक से लड़ते इस परमवीर के अंतिम शब्द थे "जय माता दी"

आज शौर्य की उस महान हुंकार को उनके जन्मदिवस पर बारम्बार नमन करते हुए भारतीय सेना के इस परमवीर की गौरवगाथा को सदा सदा के लिए गाते रहने का संकल्प सुदर्शन परिवार लेता है.

Sumant Kashyap
  • Sep 9 2024 8:42AM
मैं या तो जीत का भारतीय तिरंगा लहराकर लौटूँगा या उसमें लिपटा हुआ आऊँगा, पर इतना निश्चित है कि मैं आऊँगा जरूर. कैप्टन बत्रा ने अपने साथी को यह कहकर किनारे धकेल दिया कि तुम्हें अपने परिवार की देखभाल करनी है और अपने सीने पर गोलियाँ झेल गए. कैप्टन बत्रा आज ही के दिन अर्थात 7 जुलाई, 1999 को कारगिल युद्ध में अपने देश के लिए लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए. बेहद कठिन चुनौतियों और दुर्गम इलाके के बावजूद, विक्रम ने असाधारण व्यक्तिगत वीरता तथा नेतृत्व का परिचय देते हुए पॉइंट 5140 और 4875 पर फिर से कब्जा जमाया। हिमालय की बर्फीली चोटियों पर लड़ी गयी दहकती कारगिल जंग के नामी योद्धा और आज राष्ट्रभक्त युवाओं के हीरो बलिदानी कैप्टन विक्रम बत्रा का आज अर्थात 9 सितंबर को जन्मदिवस है.

इस परमवीर का जन्म 9 सितंबर 1974 को देवभूमि हिमाचल प्रदेश के पालमपुर में हुआ था. कारगिल विजय के हीरो कैप्टन विक्रम बत्रा की जांबाजी के किस्से तो आपने खूब सुने होंगे. हम सभी देश के लिए अपनी जान न्यौछावर करने वाले उस हीरो की जिंदगी से जुड़े तमाम पहलुओं को जानना चाहते हैं. 1997 में विक्रम बत्रा को मर्चेंट नेवी से नौकरी की कॉल आई लेकिन उन्होंने यह नौकरी छोड़ लेफ्टिनेंट की नौकरी को चुना. पालमपुर में जी.एल. बत्रा और कमलकांता बत्रा के घर 9 सितंबर 1974 को दो बेटियों के बाद दो जुड़वां बच्चों का जन्म दिया. उन्होंने दोनों का नाम लव-कुश रखा. लव यानी विक्रम और कुश यानी विशाल.

विक्रम का एडमिशन पहले डीएवी स्कूल, फिर सेंट्रल स्कूल पालमपुर में करवाया. पर सेना छावनी में स्कूल होने से सेना के अनुशासन को देख और पिता से देश प्रेम की कहानियां सुनने पर विक्रम में स्कूल के समय से ही देश प्रेम जाग उठा. विज्ञान विषय में स्नातक करने के बाद विक्रम का चयन सीडीएस के जरिए सेना में हो गया. जुलाई, 1996 में उन्होंने भारतीय सेना अकादमी देहरादून में प्रवेश लिया. दिसंबर 1997 में शिक्षा समाप्त होने पर उन्हें 6 दिसंबर 1997 को जम्मू के सोपोर नामक स्थान पर सेना की 13 जम्मू-कश्मीर राइफल्स में लेफ्टिनेंट के पद पर नियुक्ति मिली. उन्होंने 1999 में कमांडो ट्रेनिंग के साथ कई प्रशिक्षण भी लिए. 1 जून, 1999 को उनकी टुकड़ी को कारगिल युद्ध में भेजा गया. हम्प व राकी नाब स्थानों को जीतने के बाद उसी समय विक्रम को कैप्टन बना दिया गया.

इसके बाद श्रीनगर-लेह मार्ग के ठीक ऊपर सबसे महत्त्वपूर्ण 5140 चोटी को पाक सेना से मुक्त करवाने का जिम्मा भी कैप्टन विक्रम बत्रा को दिया गया. बेहद दुर्गम क्षेत्र होने के बावजूद विक्रम बत्रा ने अपने साथियों के साथ 20 जून, 1999 को सुबह तीन बजकर 30 मिनट पर इस चोटी को अपने कब्जे में ले लिया. कारगिल वॉर में 13 जेएके राइफल्‍स के ऑफिसर कैप्‍टन विक्रम बत्रा के साथियों की मानें तो कैप्‍टन बत्रा युद्ध मैदान में रणनीति का एक ऐसा योद्धा था जो अपने दुश्‍मनों को अपनी चाल से मात दे सकता था. यह कैप्‍टन बत्रा की अगुवाई में उनकी डेल्‍टा कंपनी ने कारगिल वॉर के समय प्‍वाइंट 5140, प्‍वाइंट 4750 और प्‍वाइंट 4875 को दुश्‍मन के कब्‍जे से छुड़ाने में अहम भूमिका अदा की थी.

बत्रा 7 जुलाई 1999 को इस मिशन के शुरुआती घंटों में दुश्मन के जवाबी हमले के दौरान घायल हुए एक अधिकारी को बचाने के प्रयास में भारतीय सेना की एक टुकड़ी का कमान संभाले हुए थे. ऐसा कहा जाता है कि इस बचाव कार्य के दौरान उन्होंने घायल अधिकारी को सुरक्षित पोज़िशन पर धकेलते हुए यह कहा था कि "तुम्हारे बच्चे हैं, तुम एक तरफ हट जाओ". कैप्टन बत्रा को अपने मिशन को सफलतापूर्वक अंजाम देने के लिए तो जाना ही जाता है. साथ ही युद्ध के दौरान उनके द्वारा दिया गया नारा "ये दिल मांगे मोर" काफ़ी लोकप्रिय हुआ था. 19 जून, 1999 को कैप्टन विक्रम बत्रा के नेतृत्व में भारतीय सेना ने दुश्मन के नाक के नीचे से 5140 प्वाइंट पर क़ब्ज़ा कायम करने में सफल हुई थी. 5140 प्वाइंट पर क़ब्ज़ा करने के बाद कैप्टन बत्रा ने स्वेच्छा से अगले मिशन के रूप में 4875 प्वाइंट पर भी क़ब्ज़ा करने निर्णय लिया था.

यह प्वाइंट समुद्र स्तर से 17,000 फुट की उँचाई पर और 80 डिग्री सीधी खड़ी चोटी पर है. आज ही के दिन अर्थात सात जुलाई 1999 को प्‍वाइंट 4875 पर मौजूद दुश्‍मनों को कैप्‍टन बत्रा ने मार गिराया लेकिन इसके साथ ही तड़के अपने घायल साथियों को इलाज़ के लिए ले जाते समय दुश्मन की एक गोली इस वीर को लगी और ये सदा सदा के लिए अमर हो गये. बलिदान के उपरान्त इन्हें योद्धा के सर्वोच्च मेडल परमवीर चक्र दिया गया. आज शौर्य की उस महान हुंकार को उनके जन्मदिवस पर बारम्बार नमन करते हुए भारतीय सेना के इस परमवीर की गौरवगाथा को सदा सदा के लिए गाते रहने का संकल्प सुदर्शन परिवार लेता है. विक्रम बत्रा अमर रहें. जय हिन्द की सेना.

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