गुलामी के काले दिनों में अंग्रेजों ने भारतवर्ष के धर्म, संस्कृति, शिक्षा आदि समस्त अस्मिता सूचक महान संदर्भों के विरुद्ध षड्यन्त्रपूर्वक विष उगलना प्रारम्भ किया था. उनके इसी विष को यहां के कम्युनिस्टों ने शिक्षा, साहित्य और कला के धरातल पर स्वतंत्र भारत में निरंतर फैलाया. लेकिन उस वक्त भी भारतीय सनातन संस्कृति को बचाने के लिए अपना सर्वस्व दान कर दिया था. जिन्होंने हिंदू तीर्थों की दशा सुधारने के लिए 'धर्म संरक्षण सभा' बनाई. जन्मजयंती पर सुब्रह्मण्य अय्यर जी को शत शत नमन
सुब्रह्मण्य अय्यर जी का जन्म 1 अक्टूबर, 1842 को मदुरा जिले के मद्रास राज्य जो वर्तमान में तमिल नाडु में हुआ था. शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने वकालत शुरू की और 1885 में मद्रास आ गए. उनकी प्रतिभा देखकर 1888 में उन्हें सरकारी वकील बना दिया गया. 1895 में वह मद्रास हाईकोर्ट के जज नियुक्त किए गए. इस पद पर वे 1907 तक रहे. साल 1884 में पत्नी का देहांत हो जाने के बाद से सुब्रह्मण्य धर्म और दर्शन की ओर आकृष्ट हुए और थियोसोफ़िकल सोसाइटी से उनका सम्पर्क हुआ जो जीवन-भर बना रहा. वे अनेक वर्षों तक थियोसोफ़िकल सोसाइटी के उपाध्यक्ष भी रहे.
राजनीतिक कार्यक्रम को आगे बढ़ाने के लिए मद्रास में जो 'महाजन सभा' स्थापित हुई, सुब्रह्मण्य उसके प्रमुख व्यक्तियों में थे. 1885 में मुम्बई में हुए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की प्रथम स्थापना अधिवेशन में मद्रास प्रान्त के प्रतिनिधियों का उन्होंने ही नेतृत्व किया था. एनी बेसेंट ने जब होमरूल लीग की स्थापना की तो वे इस संस्था के मानद अध्यक्ष बनाए गए. होमरूल लीग की गतिविधियों के कारण जब एनी बीसेंट मद्रास में नज़रबंद कर ली गईं तो सुब्रह्मण्य ने उनकी रिहाई में मदद करने के लिए अमेरिका के राष्ट्रपति विल्सन को पत्र लिखा था. इस पर वायसराय चेम्सफोर्ड ने जब उनकी आलोचना की तो अय्यर ने ब्रिटिश सरकार की दी हुई 'सर' की उपाधि लौटा दी थी.
सुब्रह्मण्य अय्यर जी कुछ समय तक मद्रास विश्वविद्यालय के कुलपति रहे. उन्होंने एनी बीसेंट को वाराणसी में सेंट्रल हिंदू स्कूल की स्थापना में भी सहायता पहुंचाई. सुब्रह्मण्य जी संस्कृत की शिक्षा पर जोर देते थे. हिंदू तीर्थों की दशा सुधारने के लिए उन्होंने 'धर्म संरक्षण सभा' बनाई और धार्मिक साहित्य प्रकाशित करने के लिए 'शुद्ध धर्म मंडली' की स्थापना की. 5 दिसंबर, 1924 को सुब्रह्मण्य अय्यर जी का देहांत हो गया. सुदर्शन परिवार धार्मिक साहित्य प्रकाशित करने वाले सुब्रह्मण्य अय्यर जी के जन्मजयंती पर बारम्बार नमन ,वंदन और अभिनन्दन करता है और उनकी यशगाथा को सदा सदा के लिए अमर रखने का संकल्प लेता है.