यदि आप समझते हैं कि सैनिको को पत्थर मार मार कर उनकी जान ले लेने वाले कुख्यात पत्थरबाजों को मासूम बच्चे बोलने की प्रथा, हाथों में बंदूकें ले कर गोलियां बरसाते हुए निर्दोषों की जान लेने वाले दुर्दांत आतंकियों के लिए खुल कर दया मांगने की परंपरा नई चली है तो आप यकीनन गलत हैं..
ये बहुत पुरानी परंपरा है जिसका आज के समय के लोग महज निर्वहन कर रहे हैं ..कभी धर्मरक्षक व धर्मजागृति के लिए पूरे भारत मे सबसे आगे रहे स्वामी श्रद्धानंद जी के हत्यारे के साथ जो रहम अपनाया गया था आज कमोबेश उसी परंपरा का निर्वहन करते तमाम उसी मानसिकता के लोग दिख जाएंगे..
यद्द्पि खुशी की बात ये रही कि कानून ने अक्सर अपना काम किया लेकिन उन घटनाओं ने कई चेहरे उजागर कर डाले. ज्ञात हो कि भगवा वस्त्र की महिमा को सार्थक करने वाले, अनगिनत बिछड़ों भूले भटकों को सत्य की राह दिखाने वाले महान ऋषि स्वामी श्रद्धानंद जी का आज बलिदान दिवस है..
आज ही के दिन अर्थात 23 दिसंबर को तथाकथित अल्पसंख्यक व नसरुद्दीन शाह के हिसाब से डरे हुए अब्दुल रशीद जैसे एक उन्मादी ने बीच जनता के स्वामी जी के धर्म कार्यो से द्वेष रखते हुए स्वामी जी की हत्या कर डाली थी..नाथूराम गोडसे के नाम को आज तक रटने वालों ने कभी अब्दुल रशीद का नाम भी नही लिया क्योंकि उसका नाम लेने से वो सच बाहर आता है जो उनके स्वरचित धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों में फिट नहीं बैठता है ..
श्रद्धानंद का जन्म 22 फरवरी सन् 1856 (फाल्गुन कृष्ण त्रयोदशी, विक्रम संवत् 1913) को पंजाब प्रान्त के जालंधर जिले के पास बहने वाली सतलुज नदी के किनारे बसे प्राकृतिक सम्पदा से सुसज्ज्ति तलवन नगरी में हुआ था। उनके पिता, लाला नानक चन्द, ईस्ट ईण्डिया कम्पनी द्वारा शासित यूनाइटेड प्रोविन्स (वर्तमान उत्तर प्रदेश) में पुलिस अधिकारी थे।
उनके बचपन का नाम वृहस्पति और मुंशीराम था, किन्तु मुन्शीराम सरल होने के कारण अधिक प्रचलित हुआ। मुंशी राम से स्वामी श्रद्धानंद बनाने तक का उनका सफ़र पूरे विश्व के लिए प्रेरणादायी है। स्वामी दयानंद सरस्वती से हुई एक भेंट और पत्नी शिवादेवी के पतिव्रत धर्म तथा निश्छल निष्कपट प्रेम व सेवा भाव ने उनके जीवन को क्या से क्या बना दिया।
वकालत के साथ आर्य समाज के जालंधर जिला अध्यक्ष के पद से उनका सार्बजनिक जीवन प्रारम्भ हुया| महर्षि दयानंद के महाप्रयाण के बाद उन्होने स्वयं को स्वदेश, स्व-संस्कृति, स्व-समाज, स्व-भाषा, स्व-शिक्षा, नारी कल्याण, दलितोत्थान, स्वदेशी प्रचार, वेदोत्थान, पाखंड खडंन, अंधविश्वास उन्मूलन और धर्मोत्थान के कार्यों को आगे बढ़ाने मे पूर्णत समर्पित कर दिया।
गुरुकुल कांगड़ी की स्थापना, अछूतोद्धार, शुद्धि, सद्धर्म प्रचार पत्रिका द्वारा धर्म प्रचार, सत्य धर्म के आधार पर साहित्य रचना, वेद पढने व पढ़ाने की ब्यवस्था करना, धर्म के पथ पर अडिग रहना, आर्य भाषा के प्रचार तथा उसे जीवीकोपार्जन की भाषा बनाने का सफल प्रयास, आर्य जाति के उन्नति के लिए हर प्रकार से प्रयास करना आदि ऐसे कार्य हैं जिनके फलस्वरुप स्वामी श्रद्धानंद अनंत काल के लिए अमर हो गए..
23 दिसंबर, 1926 को अब्दुल रशीद नामक एक उन्मादी युवक ने धोखे से गोली चलाकर स्वामी जी की हत्या कर दी. यह युवक स्वामी जी से मिलकर इस्लाम पर चर्चा करने के लिए एक आगंतुक के रूप में नया बाज़ार, दिल्ली स्थित उनके निवास गया था.
आज 23 दिसंबर को धर्मरक्षक, महान विभूति स्वामी श्रद्धानंद जी के बलिदान दिवस पर उनको बारंबार नमन करते हुए उनकी यशगाथा को सदा सदा के लिए अमर रखने के संकल्प के साथ क्रूर, हत्यारे अब्दुल रशीद व उनके पैरोकारों के कर्म को भी जनमानस को सदा याद दिलाने का संकल्प सुदर्शन परिवार लेता है..