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30 दिसंबर : बलिदान दिवस स्वतंत्रता सेनानी उक्यांग नागवा जी...अंग्रेजों ने जिन्हें तालिबानी अंदाज में दी थी फांसी

आज स्वतंत्रता सेनानी उक्यांग नागवा जी के बलिदान पर सुदर्शन परिवार उन्हें कोटि-कोटि नमन करता है

Sumant Kashyap
  • Dec 30 2024 7:52AM

हमारे देश में ऐसे अनेकों महान महापुरुषों ने जन्म लिया है, जिनका नाम इतिहास के पन्नों में कहीं गुम हो गया है. हमारे देश में कई ऐसे लोग थे जिन्होंने इस देश में रह कर भी भारत के इतिहास से इन वीरों को मिटाने की कई कोशिशें की. इन लोगों ने उन सभी क्रांतिकारियों और महापुरुषों के नाम को छिपाने और सदा के लिए मिटाने की कोशिश की. उन लाखों महान क्रांतिकारियों में से एक थे स्वतंत्रता सेनानी उक्यांग नागवा जी. वहीं, आज स्वतंत्रता सेनानी उक्यांग नागवा जी के बलिदान पर सुदर्शन परिवार उन्हें कोटि-कोटि नमन करता है और उनकी गौरव गाथा को समय-समय पर जनमानस के आगे लाते रहने का संकल्प भी दोहराता है. 

उक्यांग नागवा जी मेघालय का एक वीर क्रांतिकारी युवक था. 18वीं शताब्दी में मेघालय की पर्वतमालाओं में ब्रिटिश शासन नहीं था बल्कि इसके 3,500 वर्गमील में खासी और जयंतिया जनजातियां स्वतंत्र रूप से रहती थीं. इस क्षेत्र में आज के बांग्लादेश और सिल्चर के 30 छोटे-छोटे राज्य थे, जो आपस में तालमेल रखते थे. उन 30 राज्यों में एक राज्य था जयंतियापुर. उसकी एक मंत्रिपरिषद् थी. उवीरेन्द्र का ज्येष्ठ पुत्र उस समय जयंतिया समाज का राजा था, लेकिन ब्रिटिश शासन ने आक्रमण करके उसके दो भाग कर दिए-एक समतल क्षेत्र दूसरा पर्वतीय.

उक्यांग नागवा जी शक्तिशाली एवं बलिष्ठ था. उसे बांसुरी से बहुत प्रेम था. जब जयंतियापुर के मैदानी क्षेत्र में अंग्रेजों का अधिकार हो गया, तब उन्होंने पर्वतमालाओं के ऊपर अंग्रेजी सत्ता का शासन स्थापित करने के लिए जोनाई की तरफ बढ़ना शुरू कर दिया. जोनाई राज्य में जब अंग्रेज़ हार गए, तब उन्होंने कूटनीति से लोगों को ईसाई बनाना शुरू कर दिया. इस पर उक्यांग नागवा जी ने अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी थी.

अंग्रेजों ने 1860 में 2 रुपए प्रतिवर्ष गृह-कर लगाया था जिसका अनेक स्थानों पर जयंतिया समाज ने विरोध किया. ऐसे समय में उक्यांग नागवा जी जनता से बंसी की धुन में कहता था, वीर जवानो उठो! जाग्रत हो जाओ और जयंतिया समाज के लोगो अपने भोलेपन को त्यागकर अपने धनुष-बाण, तलवार युद्ध करने के लिए उठा लो.' उक्यांग जी द्वारा बंसी के माध्यम से किया जा रहा जनजागरण अंग्रेजों की समझ नहीं आ सका. पर उसके कारण पूरा जयंतिया समाज उठ खड़ा हुआ और उसने अंग्रेजों को चुनौती देनी शुरू कर दी.

बता दें कि तब अंग्रेजों ने सबक सिखने के लिए लेवी-कर अदा करने का सम्मन जारी किया. ‘हम अंग्रेजी सरकार को कोई कर नहीं देंगे'- उक्यांग जी ने घोषणा कर दी. तब जोनाई के भोले-भाले समाज को अंग्रेजी सरकार का अत्याचार सहना पड़ा. अंग्रेजों ने जयंतिया समाज के लोगों को जेलों में भर दिया, लेकिन उक्यांग नागवा जी उनके हाथ नहीं लगा.

उसने धीरे-धीरे एक सेना गठित की और न केवल जोनाई, बल्कि 7 स्थानों पर योजनाबद्ध ढंग से आक्रमण किया और विजय प्राप्त की. अंग्रेज उसकी गुरिल्ला युद्धविद्या देखकर अचंभित रह गए और उसका लोहा मानने लगे. अब अंग्रेज़ सरकार उक्यांग नागवा जी से बहुत भयभीत हो गई. उक्यांग नागवा जी के नेतृत्व में जयंतियापुर के सैनिकों ने 20 माह तक युद्ध किया. अंग्रेज़ हारते रहे तो उन्होंने उक्यांग नागवा जी को ही गिरफ्तार करने की योजना बनाई.

नागवा जी का एक प्रमुख साथी दुर्भाग्य से अंग्रेजी सत्ता के प्रभाव में आकर उनसे मिल गया. उधर उक्यांग जी युद्ध में लगे जख्मों के कारण अस्वस्थ हो गया था. फिर भी अपने साथियों के साथ डटा रहा. अंतिम युद्ध में उक्यांग नागवा जी के वीर सैनिक घायल अवस्था में इसको उठाकर ले गए और मुंशी गांव में सुरक्षित रखा. लेकिन धोखा देकर गुप्तचर उदोलोई तेरकर ने ब्रिटिश साइमन को इसकी सूचना भेज दी. अब साइमन के ब्रिटिश सैनिकों ने आनन-फानन में मुंशी ग्राम को चारों ओर से घेर लिया.

अपने नेता की अनुपस्थिति में जयंतिया वीरों ने युद्ध किया किन्तु अंग्रेजों के आगे नहीं टिक सके. आखिरकार बीमार उक्यांग जी को गिरफ्तार कर लिया गया. पर जनता और सैनिकों ने आत्मसमर्पण न कर बलिदान देना ही श्रेयस्कर समझा. साइमन ने उक्यांग जी के समक्ष शर्त रखी कि यदि तुम्हारे सैनिक आत्मसमर्पण करेंगे तो तुमको मुक्ति मिल जाएगी. पर उक्यांग जी ने वह सन्धि-पत्र फाड़कर फेंक दिया. अब उस पर अमानीय अत्याचार होने लगे. लेकिन अंग्रेज़ सरकार किसी भी प्रकार से उसे संधि के लिए विवश न कर सकी.

अंत में उक्यांग नागवा जी को कार्बा-आंग्लांग जिले के पास जोनाई नामक स्थान पर सार्वजनिक रूप से 30 दिसंबर 1862 को फांसी दे दी थी. वहीं, आज स्वतंत्रता सेनानी उक्यांग नागवा जी के बलिदान पर सुदर्शन परिवार उन्हें कोटि-कोटि नमन करता है और उनकी गौरव गाथा को समय-समय पर जनमानस के आगे लाते रहने का संकल्प भी दोहराता है.

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