हम सभी पंजाब के जलियांवाला बाग गोलीकांड की घटना को तो जानते हैं, लेकिन शायद ही किसी को पता हो भी या न हो कि स्वाधीनता की लड़ाई में बिहार के तारापुर का गोलीकांड कितनी महत्वपूर्ण घटना थी. स्वाधीनता आंदोलन के दौरान बिहार के मुंगेर तारापुर का क्षेत्र क्रांतिकारियों का गढ़ माना जाता था. संग्रामपुर प्रखंड के सुपौर जमुआ ग्राम स्थित श्री भवन से 15 फरवरी, 1932 को तारापुर थाना पर तिरंगा फहराने का निर्णय लिया गया.
वहीं, 1931 में गांधी-इरविन समझौता भंग होने के बाद कांग्रेस को अवैध संगठन घोषित कर अंग्रेजों ने सभी कांग्रेस कार्यालयों पर ब्रिटिश झंडा फहरा दिया था. गांधी, सरदार वल्लभ भाई पटेल जी, राजेंद्र प्रसाद जी जैसे महान क्रांतिकारियों की गिरफ्तारी भी हुई थी. इस घटना पर प्रतिक्रिया देने के लिए युद्धक समिति के प्रधान सरदार शार्दूल सिंह जी व कवीश्वर जी ने संकल्प पत्र जारी किया कि 15 फरवरी, 1932 को सभी सरकारी भवनों पर तिरंगा फहराया जाए. तिरंगा फहराने के लिए श्री भवन में बैठक की गई थी. सुपौर जमुआ के मदन गोपाल सिंह जी, त्रिपुरारी कुमार सिंह जी, महावीर प्रसाद सिंह जी, चनकी के कार्तिक मंडल जी सहित कई लोगों का धावक दल चयनित किया गया.
जानकारी के लिए बता दें कि उस वक्त मुंगेर के ब्रिटिश कलेक्टर ई.ओली और एसपी ए. डब्ल्यू. फ्लैग को इस योजना की भनक लग गई थी. 15 फरवरी की दोपहर मदन गोपाल सिंह जी ने थाने पर तिरंगा फहरा दिया. दूर खड़े क्रांतिकारियों का मनोबल बढ़ा रहे समर्थक धावक दल पर ब्रिटिश पुलिस की लाठियां बरसते देख क्रोधित हो गए. उन्होंने पुलिस बल पर पथराव शुरू कर दिया. कलेक्टर और एसपी जख्मी हो गए.
वहीं, तब उन्होंने पुलिस बल को निहत्थे प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाने का आदेश दिया. 34 से ज्यादा क्रांतिकारी बलिदान हुए, सैकड़ों घायल हुए. बलिदानियों में मुख्य रूप से विश्वनाथ सिंह जी, महिपाल सिंह जी, शुकुल सोनार जी, संता पासी जी, झूठी झा जी, सिंघेश्वर जी, राजहंस जी, बद्री मंडल जी, चंडी माता जी, शीतल जी, बसंत धानुक जी, रामेश्वर मंडल जी, देवी सिंह जी, अशर्फी मंडल जी की पहचान हुई. सरकार की ओर से इन बलिदानियों की याद में प्रत्येक वर्ष 15 फरवरी को तारापुर दिवस मनाया जाने लगा.
बता दें कि इस गोलीकांड की घटना के बाद अंग्रेजों ने बलिदानियों का शव वाहनों में लाद कर सुल्तानगंज की गंगा नदी में बहा दिया था. इस नरसंहार में बलिदानी हुए 34 सपूतों में से केवल 13 की ही पहचान हो पाई थी. 21 बलिदानियों के बारे में लोग आज भी अनजान हैं कि वे कौन थे और कहां के थे, लेकिन उनकी बलिदान की निशानी अभी भी तारापुर बलिदान स्मारक स्थल पर लगे शिलापट पर अंकित है.
वहीं, इस घटना को लेकर तत्कालीन बिहार, उड़ीसा विधान परिषद में 18 फरवरी 1932 को सच्चिदानंद सिन्हा ने अल्प सूचित प्रश्न पूछा था. मुख्य सचिव ने घटना को स्वीकार किया था. ब्रिटिश पार्लियामेंट में भारत के सचिव सर सैमुअल होर ने भी इस घटना की जानकारी दी थी. घटना के संबंध में अन्य प्रमाण के तौर पर पूर्व राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद थे. उन्होंने अपनी आत्मकथा पृष्ठ संख्या 366 पर इस घटना का उल्लेख किया है.