26 मार्च 1971 को आज ही के दिन पाकिस्तानी कब्जे वाली सेना द्वारा पूर्वी पाकिस्तान के पुराने ढाका के शंखरीबाजार क्षेत्र में 212 से अधिक हिंदुओं का नरसंहार कर दिया था. बचे हुए लोग बुरीगंगा के दूसरी ओर के गांवों में भाग गए. जो उस क्षेत्र में है जिसे अब केरानीगंज के नाम से जाना जाता है. बताया जा रहा है कि जब यह नरसंहार हुआ था उस दौरान शंखरीबाजार वीरान हो गया और काफी देर तक लाशें सड़कों पर पड़ी रहीं थी.
जानकारी के लिए बता दें कि शंखरीबाजार पुराने ढाका के मध्य में एक हिंदू इलाका है. दरअसल, यह शहर शंखरियों द्वारा बसा हुआ है, एक बंगाली हिंदू जाति जो अभी भी शंख से शंख की चूड़ियां तैयार करने के अपने पारंपरिक व्यवसाय में लगी हुई है. बता दें कि पाकिस्तानी कब्जे वाली सेना ने शंखरीबाजार रोड के बहुत करीब, जगन्नाथ कॉलेज और ब्रह्म समाज में डेरा डाला था. ऑपरेशन सर्चलाइट के दौरान शंखरीबाजार पाकिस्तानी सेना का प्रमुख निशाना बन गया.
वहीं, 25 मार्च की शाम को पाकिस्तानी सेना सड़कों पर उतर आई. वे नवाबपुर रोड के किनारे सदर घाट की ओर बढ़े. बताया जा रहा है कि शंखरीबाजार रोड के चौराहे पर उन्होंने एक घर पर गोलाबारी की, जिससे घर का एक हिस्सा नष्ट हो गया. गोलाबारी में तीन लोगों की मौत हो गई और पांच से छह लोग घायल हो गए थे.
बता दें कि 26 मार्च की दोपहर को पाकिस्तानी सेना ने शंखरीबाजार पर हमला कर दिया था. वहीं, पाकिस्तानी सेना ने परिसर संख्या में प्रवेश करने के साथ 47 और परिवार के पिता और छोटे भाई को मार डाला था. बड़ा भाई अमर सूर, जो नरसंहार से बच गया, घर के पीछे की संकरी गली से भाग गया. पाकिस्तानी सेना ने निवासियों को अपने घरों से बाहर निकलने का आदेश दिया. फिर वे बाहर आए तो उन्हें गोली मार दी गई.
पाकिस्तानी सेना ने इलाके के परिसर में हत्या का सिलसिला जारी रखा और लगभग 50 हिंदुओं को मार डाला. साथ ही हमले में 200 से ज्यादा हिंदू घायल हो गए. घरों में आग लगा दी गई. बताया जा रहा है कि अकेले चंदन सूर के निवास में 31 हिंदू मारे गए थे. चंदन सूर इलाके के स्थापित और प्रभावशाली व्यक्तियों में से एक थे. कालिदास बैद्य के अनुसार, पड़ोस के 126 हिंदुओं को एक घर में घेर लिया गया और गोली मारकर हत्या कर दी गई.
दरअसल, इस घटना के बाद शंखरीबाजार एक वीरान इलाका बन गया. पाकिस्तानी कब्जे वाली सेना और उनके स्थानीय सहयोगियों ने घरों में सोना, आभूषण और फर्नीचर लूट लिया था. वहीं, मुसलमानों ने मकानों पर कब्ज़ा कर लिया और मोहल्ले में बस गए. वहीं, बांग्लादेश की मुक्ति के बाद बचे हुए हिंदुओं अपने इलाके में लौट आए. तब तक पूरा मुहल्ला तबाह हो चुका था. शंखारियों को जीवन का संघर्ष नए सिरे से शुरू करना पड़ा था.