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9 फरवरी: हमारे तीर तलवार, टांगी और पत्थर तुम्हारे "कागज" के लूट के राज का जवाब है... जन्मजयंती पर नमन अत्याचारी अंग्रेजों के दांत खट्टे करने वाले वीर सपूत तेलंगा खड़िया जी को

तेलंगा खड़िया जी की जन्मजयंती पर सुदर्शन परिवार उन्हें कोटि-कोटि नमन करता है और उनकी गौरव गाथा को समय-समय पर जनमानस के आगे लाते रहने का संकल्प भी दोहराता है.

Sumant Kashyap
  • Feb 9 2025 9:17AM

आज जिस महान क्रांतिकारी की जन्मजयंती है उनका नाम भी आपके लिए नया होगा.. खैर बताएगा भी कौन ?? वो तो कदापि नहीं जिन्होंने इस बात पर अपनी मुहर लगा रखी है कि भारत की स्वतंत्रता बिना खड्ग बिना ढाल मिली है और 2 या 4 लोगों ने ही भारत को स्वतंत्रता करवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.. उन्हीं 2 या 4 लोगों को इतना चमकाया गया कि अंत में वही भारत के भाग्य विधाता बन बैठे और बाकी सब के सब कर दिए गए विस्मृत.. 

उन्हीं विस्मृत किए गए लोगों में से एक हैं आज ही जन्म लेने वाले वीर सपूत तेलंगा खड़िया जी. जिन्होंने भारत माता को अपना सब कुछ दे दिया और बदले में कुछ नहीं मांगा. तेलंगा खड़िया जी की जन्मजयंती पर सुदर्शन परिवार उन्हें कोटि-कोटि नमन करता है और उनकी गौरव गाथा को समय-समय पर जनमानस के आगे लाते रहने का संकल्प भी दोहराता है.

तेलंगा खाड़िया जी का जन्म 9 फरवरी सन् 1806 को झारखंड के गुमला के मुरगु गांव में एक साधारण गरीब किसान परिवार में हुआ था. तेलंगा खाड़िया जी के पिता का नाम ठुईया खड़िया और माता का नाम पेती खड़िया था. तेलंगा खाड़िया जी बचपन से ही बहादुर और ईमानदार स्वभाव के थे. तेलंगा खाड़िया जी क्रांतिकारी विचारों, तर्क कौशल और समाज सेवा के प्रति समर्पित थे. उन्होंने सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों में गहरी रुचि विकसित की थी. 

1850 के अंत तक छोटानागपुर क्षेत्र में अंग्रेज़ों का शासन स्थापित हो गया था. सदियों से वहां के आदिवासियों का पारंपरिक स्वायत्त शासन "परहा प्रणाली" किसी भी प्रकार के बाहरी हस्तक्षेप से लगभग मुक्त था. लेकिन ब्रिटिशों ने नए नियमों को लगाकर इस स्वायत्त स्वशासन नियम को नष्ट कर दिया था. ब्रिटिशों के नियमों के बाद आदिवासियों को अपनी ही जमीन पर राजस्व (मालगुजारी) देनी पड़ती थी. इतना ही नहीं  भू-राजस्व का भुगतान करने में विफल होने पर जमींदारों और अंग्रेजों को उन्हीं की जमीन से वंचित कर दिया जाता था. 

आदिवासी खेतिहर मजदूर की तरह जीवन बिताने को विवश हो गए थे. वहां के लोगों के हालात बहुत दयनीय हो गए थे. तेलंगा खाड़िया जी अपने लोगों के साथ हो रहे इन अत्याचारों को सहन नहीं कर सके और उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ लड़ाई शुरू कर दी. तेलंगा खाड़िया जी ने लोगों को संगठित और जागरूक करना शुरू कर दिया. उन्होंने लोगों को जागरूक करने के लिए कई गांवों में जूरी पंचायत की स्थापना की. 

यह पंचायत ब्रिटिश शासन के समानांतर स्वशासन शासन के रूप में काम करती थी. तेलंगा खाड़िया जी ने 13 पंचायतें का गठन किया था जो सिसई, गुमला, बसिया, सिमडेगा, कुम्हारी, कोलेबिरा, चैनपुर, महाबुआंग और बानो क्षेत्र में फैली हुई थीं. इसके साथ ही तेलंगा खाड़िया जी ने "अखाड़ा" बनाया, जिसमें वो अपने अनुयायियों को हथियार चलाने का प्रशिक्षण देते थे. उन्होंने लगभग 900 से 1500 पुरुषों को प्रशिक्षित करके एक सेना को खड़ा कर लिया था.  

तेलंगा खाड़िया जी और उनके अनुयायियों ने अंग्रेजों, उनके बिचौलियों और ब्रिटिश राज के हर दूसरे प्रतिष्ठानों पर हमला किया था. इतना ही नहीं उन लोगों ने अंग्रेजों की कई बैंकों और खजाने को भी लूटा था. 1850 से 1860 तक की अवधि में तेलंगा खाड़िया जी के नेतृत्व में छोटानागपुर क्षेत्र में ब्रिटिश राज के खिलाफ विद्रोह अपने चरम पर था. 

ब्रिटिश सरकार तेलंगा खारिया जी से छुटकारा पाना चाहती थी. एक बार तेलंगा खारिया जी एक गांव की पंचायत बैठक में होने की जानकारी एक देशद्रोही ने अंग्रेजों को दे दी. जिसके बाद अंग्रेजों ने उन्हें घेर लिया और फिर उन्हें गिरफ्तार कर लिया. तेलंगा खारिया जी को पहले लोहरदगा जेल और उसके बाद कलकत्ता जेल भेज दिया गया. जहां उन्हें 18 साल की सजा सुनाई गई. 

जब तेलंगा खारिया जी अपनी कैद पूरी करके कलकत्ता जेल से रिहा हुए तो उन्होंने  आंदोलन को पुनर्जीवित करना शुरू कर दिया. लेकिन उनकी गतिविधियों की सूचना एक बार फिर अंग्रेजों तक पहुंच गई. जिसके बाद अंग्रेजों ने तेलंगा खारिया जी को मारने की योजनाएं बनानी शुरू कर दीं. 23 अप्रैल 1880 को, जब तेलंगा खारिया जी प्रशिक्षण सत्र शुरू करने जा रहे थे तभी एक ब्रिटिश एजेंट ने घात लगाकर उन पर गोलियां चला दीं. 

गोली लगने के बाद तेलंगा खारिया जी वहीं गिर गए. लेकिन उनके अनुयायी तुरंत उनके शव को लेकर जंगल की ओर चले गए, ताकि अंग्रेजों को उनका शव न मिल सके. तेलंगा खारिया जी के अनुयायियों ने उनके शव को कोयल नदी पार करने के बाद गुमला जिले के सोसो नीम टोली गांव में दफना दिया. उस स्थान को अब 'तेलंगा टोपा टांड' के नाम से जाना जाता है. तेलंगा खड़िया जी की जन्मजयंती पर सुदर्शन परिवार उन्हें कोटि-कोटि नमन करता है और उनकी गौरव गाथा को समय-समय पर जनमानस के आगे लाते रहने का संकल्प भी दोहराता है.

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