सफला एकादशी का व्रत हिन्दू पंचांग के अनुसार हर साल माघ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है। इस व्रत को विशेष रूप से सुख-समृद्धि और इच्छाओं की पूर्ति के लिए किया जाता है। इस दिन भक्तगण व्रत रखते हुए भगवान श्री कृष्ण की पूजा-अर्चना करते हैं, ताकि उनका जीवन सुखमय और समृद्ध हो। वहीं सफला एकादशी पर व्रत कथा भी पढ़नी चाहिए।
सफला एकादशी की व्रत कथा
सफला एकादशी से जुड़ी एक प्रसिद्ध कथा है, जो हमें इस दिन के व्रत का महत्व समझाती है। एक समय की बात है, एक ब्राह्मण का नाम वर्धन था। वह बहुत ही धर्मात्मा और सत्यवादी था, लेकिन उसे कोई संतान नहीं थी। उसने कई वर्षों तक पितरों की पूजा की और तीर्थों में स्नान किया, लेकिन उसकी इच्छाएँ पूरी नहीं हो रही थीं।
एक दिन उसे किसी ज्ञानी संत से सफला एकादशी के व्रत के बारे में जानकारी मिली। संत ने कहा, "जो व्यक्ति इस दिन विशेष रूप से व्रत करेगा और भगवान श्री कृष्ण की पूजा करेगा, उसकी सभी मनोकामनाएँ पूरी होंगी।" वर्धन ने संत की बात मानी और सफला एकादशी का व्रत करने का निश्चय किया।
व्रत के दिन उसने पूरे मन और श्रद्धा से उपवासी रहते हुए भगवान श्री कृष्ण की पूजा की। रात्रि में भगवान की कथा का श्रवण किया और अगले दिन स्नान करके उपवास का समापन किया। कुछ समय बाद, भगवान श्री कृष्ण की कृपा से उसकी दुआ पूरी हुई और उसे एक पुत्र प्राप्त हुआ।
व्रत का महत्व
सफला एकादशी का व्रत करने से भक्त के जीवन में न केवल संतान सुख की प्राप्ति होती है, बल्कि सभी प्रकार की मनोकामनाएँ भी पूर्ण होती हैं। इस दिन विशेष रूप से भगवान श्री कृष्ण का ध्यान और पूजा करनी चाहिए। व्रति को इस दिन व्रत रखने के साथ-साथ सत्य बोलने और धर्म के मार्ग पर चलने का संकल्प भी लेना चाहिए।
जो लोग इस दिन विधिपूर्वक व्रत करते हैं, उनके जीवन में हर दिशा से सुख-शांति, समृद्धि और आशीर्वाद का वास होता है। साथ ही, यह व्रत उनके पापों का नाश करता है और पुण्य की प्राप्ति कराता है।