पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अब नहीं हैं। जब हम बहुत छोटे थे तो उनके दस्तख्त नोट पर दिखते थे। घर के किसी बड़े ने बताया था कि जिसके दस्तख्त नोट पर होते हैं, वह बहत ‘बड़ा’ आदमी होता है। उसे ‘गवर्नर’ कहते हैं। हम बहुत खुश होते थे कि कभी हम भी ‘गवर्नर’ ही बनेंगे। फिर बैठकर सभी नोटों पर साइन किया करेंगे। खैर! यह बचपन की बात है। जब थोड़े बड़े हुए तो पता चला कि मनमोहन सिंह एक बेहतरीन अर्थशास्त्री हैं। बाद में एक बेहतरीन वित्त मंत्री बने। इंटरनेट पर घूम रहा उनका ‘बायोडाटा’ बताता है कि उनके जैसा आदमी न कभी हुआ है, और न होगा।
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अब नहीं हैं। लेकिन, कांग्रेसी बता रहे हैं कि वह ‘कमाल’ के प्रधानमंत्री भी थे। मौजूदा पीएम नरेंद्र मोदी ने बताया है कि वह गजब के सांसद थे, हर हाल में वह अपना वोट डालने संसद में आते थे। कुछ टीवी वाले बता रहे हैं कि वह ‘पहले’ सही थे, बाद में ‘बिगड़’ गए। विदेशी दौरों पर महज महंगी दारू के लिए उनके साथ बिना मतलब यात्रा करने वाले कुछ पत्रकार बता रहे हैं कि अब उनके जाने के बाद देश को ‘पता’ लगेगा कि वह क्या थे!
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अब नहीं हैं। लेकिन, जब वह पीएम बने तो हम पत्रकारिता में प्रवेश कर चुके थे। दफ्तरों में हमें बताया जाता था कि अटलजी के वश में बस इतना ही था, जितना वह कर चुके हैं। अब सर्वश्रेष्ठ अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह के हाथ में देश की बागडोर है। देश यहां से ऐसा भागेगा कि किसी के रोके रुक न सकेगा। शुरू में तो ऐसा ही लगा कि यह देश अब रुकने वाला नहीं है। लेकिन, फिर एक ऐसा दौर आया कि ऊपर वर्णित ये ही सब लोग कहने लगे कि देश में ‘पॉलिसी पैरालाइसिस’ हो गया है। देश ‘चल’ नहीं रहा है, बल्कि एक जगह पर जमकर ‘खड़ा’ हो गया है।
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अब नहीं हैं। हमारे समाज में मरने के बाद व्यक्ति की सभी बुराइयों को माफ कर देने का चलन है। केवल अच्छाइयों की ही चर्चा करनी होती है। घर का कोई बच्चा गलती से कोई बुराई कर भी जाए तो उसे घर के बड़े ‘समझा’ देते हैं कि सिर्फ अच्छाइयों को याद रखो। बाकी का सब मिटा दो। अब बड़ों का यही कहना है तो यह सही ही होगा। ‘सही’ और ‘गलत’ के लफड़ों में क्यों पड़ना। जो जिस जगह होता है, वहां की परिस्थितियों के अनुकूल काम करता है।
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अब नहीं हैं। लेकिन, जब पीछे मुड़कर उनकी स्थिति-परिस्थितियों पर नजर डालते हैं तो लगता है कि उनके लिए वाकई बहुत मुश्किल रहा होगा। अपने दल के अंदर, साथ के ही महत्वाकांक्षी कांग्रेसियों के साथ और दल के बाहर विपक्षियों के आक्रामक तंजों से मुकाबला आसान तो नहीं ही होता होगा। लेकिन, इसके बावजूद वह पूरे दो बार पीएम बने। जाहिर है कि अपनी प्रतिभा से अपने प्रतिद्वंद्वियों को परास्त तो करते ही रहे।
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अब नहीं हैं। लेकिन, लगता है कि देश को उनसे इससे ज्यादा की उम्मीदें थीं। आज उनके बाद, उनके ‘गुणों’ पर ‘दुर्गुणों’ को लेकर जो भी उनकी आलोचना या प्रशंसा कर रहे हैं, वे अपने-अपने स्वार्थों के साथ हमें फिर से एक बार उसी तरह भ्रमित करने का प्रयास कर रहे हैं, जैसे उन्हें लेकर बचपन में हमें हमारे आस-पास के लोग हमें किया करते थे।
अंतत: पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अब नहीं हैं तो हम भारत के लोगों को यह ध्यान में रखना चाहिए कि देश के एक बड़े संवैधानिक पद पर मौजूद हर व्यक्ति पर कई बड़े अलग-अलग तरह के दबाव होते ही हैं। उन्हीं दबावों के बीच बेहतर प्रदर्शन करने का एक और ‘दबाव’ होता है तो मन यह मान रहा है कि मनमोहन सिंह ने एक गवर्नर, वित्त मंत्री और प्रधानमंत्री के रूप में बेहतरीन पारी खेली। कभी खुद उन्होंने ही कहा था कि इतिहास बताएगा है कि उन्हें कैसे याद रखा जाना है...