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गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम: प्राकृतिक और आध्यात्मिक दृष्टि”(महाकुम्भ लेखमाला 5)

पवित्र माँ गंगा, यमुना और सरस्वती जी का संगम प्रयागराज में स्थित है, जिसे त्रिवेणी संगम के नाम से जाना जाता है। यह स्थान केवल भौगोलिक महत्व का नहीं, बल्कि इसका पौराणिक, आध्यात्मिक, भौगोलिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक महत्व भी अतुलनीय है। हिंदू धर्म के अनुसार, यह संगम मोक्ष का द्वार है और पवित्र स्नान से सभी पापों का नाश होता है।

  • Jan 17 2025 1:52PM

पवित्र माँ गंगा, यमुना और सरस्वती जी का संगम प्रयागराज में स्थित है, जिसे त्रिवेणी संगम के नाम से जाना जाता है। यह स्थान केवल भौगोलिक महत्व का नहीं, बल्कि इसका पौराणिक, आध्यात्मिक, भौगोलिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक महत्व भी अतुलनीय है। हिंदू धर्म के अनुसार, यह संगम मोक्ष का द्वार है और पवित्र स्नान से सभी पापों का नाश होता है।

इसके प्राकृतिक स्वरूप और आध्यात्मिक गहराई का यह लेख अध्ययन करता है, साथ ही इसके संरक्षण की आवश्यकता पर भी प्रकाश डालता है।

गंगा, यमुना और सरस्वती: तीन पवित्र नदियों का परिचय

 1.गंगा: मोक्षदायिनी नदी

  •गंगा को सनातन धर्म में मोक्षदायिनी माना गया है।

 •यह हिमालय से निकलकर भारत के कई पवित्र स्थलों से गुजरती है और प्रयागराज में यमुना और सरस्वती से मिलती है।

 •इसका पौराणिक महत्व: गंगा भगवान विष्णु के चरणों से उत्पन्न मानी जाती है और भगवान शिव की जटाओं में स्थित है।

 2.यमुना: प्रेम और समर्पण की नदी

•यमुना का उद्गम यमुनोत्री से है और यह भगवान कृष्ण की लीलाओं से जुड़ी हुई है।

•यह गंगा के साथ संगम करके धर्म और भक्ति का संदेश देती है।

3.सरस्वती: ज्ञान की अदृश्य नदी

•सरस्वती नदी पौराणिक कथा के अनुसार, वैदिक काल में विद्या और ज्ञान का स्रोत थी।

•आज यह नदी भौतिक रूप से अदृश्य मानी जाती है, परंतु इसे आध्यात्मिक और पौराणिक दृष्टि से संगम पर अनुभव किया जा सकता है।

त्रिवेणी संगम का पौराणिक महत्व

 1.सृष्टि का आरंभ:

•त्रिवेणी संगम वह स्थान है जहाँ भगवान ब्रह्मा ने सृष्टि रचना के लिए यज्ञ किया था।
•यह स्थान आदिकाल से तीर्थराज के रूप में प्रसिद्ध है।

2.पौराणिक कथाएँ:

 •समुद्र मंथन के दौरान अमृत की कुछ बूंदें यहाँ गिरी थीं, जिसके कारण यह स्थान मोक्षदायिनी कहलाया।
•महाभारत में वर्णित है कि पांडवों ने यहाँ पापों से मुक्ति के लिए यज्ञ किया था।

3.प्रयागराज का महत्व:

 •इसे “तीर्थराज” कहा गया है, जिसका अर्थ है सभी तीर्थों का राजा।
•गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम जीवन, भक्ति और ज्ञान का प्रतीक है।

प्राकृतिक महत्व

1.नदियों का संगम:

 •गंगा और यमुना नदियों का संगम स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।

•गंगा की धारा स्वच्छ और तेज़ है, जबकि यमुना का प्रवाह शांत और गहरा।

2.पवित्र जल:

•संगम का जल जीवनदायिनी और औषधीय गुणों से भरपूर माना जाता है।

•वैज्ञानिक दृष्टि से भी गंगा और यमुना के जल में बैक्टीरियोफेज़ जैसे तत्व पाए गए हैं, जो जल को स्वच्छ रखते हैं।


3.पर्यावरणीय दृष्टि:
•यह संगम क्षेत्र केवल धार्मिक नहीं, बल्कि जैव-विविधता का भी केंद्र है।
•यहाँ की नदियाँ भारत के लाखों लोगों के जीवन का आधार हैं।

आध्यात्मिक दृष्टि

1.मोक्ष का द्वार:

•त्रिवेणी संगम पर स्नान को आत्मा की शुद्धि और मोक्ष प्राप्ति का मार्ग माना गया है।

•यह स्थान व्यक्ति को सांसारिक बंधनों से मुक्त कर आध्यात्मिकता की ओर प्रेरित करता है।

2.प्रत्येक तीर्थ का समागम:

•यह स्थान हिंदू धर्म के सभी तीर्थ स्थलों का केंद्र है।

•यहाँ आने वाले श्रद्धालु आत्मिक शांति और ज्ञान प्राप्त करते हैं।

3.कुम्भ मेला का केंद्र:

•कुम्भ मेले के दौरान संगम पर स्नान का महत्व बढ़ जाता है।

•लाखों लोग यहाँ स्नान कर अपनी आत्मा को शुद्ध करने का प्रयास करते हैं।

भविष्य की चुनौतियाँ और समाधान

1. संगम क्षेत्र के सामने पर्यावरणीय चुनौतियाँ

 •नदियों का प्रदूषण:

 •गंगा और यमुना नदियाँ तेजी से प्रदूषण का शिकार हो रही हैं।

•संगम क्षेत्र के जल की शुद्धता को बनाए रखना एक बड़ी चुनौती है।

 अवैध निर्माण और शहरीकरण:

•संगम के पास बढ़ते अवैध निर्माण से इसका प्राकृतिक स्वरूप और आध्यात्मिकता प्रभावित हो रही है।

2. धार्मिक पहचान का क्षरण

 •धार्मिक असंतुलन:

•संगम क्षेत्र में हिंदू जनसंख्या घट रही है, जिससे इसकी सांस्कृतिक पहचान को खतरा हो सकता है।

समाधान:

1.नदियों की सफाई और पुनर्जीवन:

•गंगा और यमुना की सफाई के लिए कठोर नियम लागू किए जाएँ।
•संगम क्षेत्र को प्रदूषण मुक्त बनाने के लिए स्थानीय समुदाय और सरकार को मिलकर काम करना चाहिए।

2.धार्मिक और सांस्कृतिक संरक्षण:

 •संगम क्षेत्र को “धार्मिक धरोहर” घोषित किया जाए।
•यहाँ धार्मिक आयोजनों को बढ़ावा दिया जाए और गैर-धार्मिक गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाया जाए।


3.हिंदू संस्कृति का जागरण:

 •संगम क्षेत्र में हिंदू धार्मिक और सांस्कृतिक शिक्षा के केंद्र स्थापित किए जाएँ।
•युवाओं को इन स्थलों की महत्ता से अवगत कराया जाए।

निष्कर्ष

गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम न केवल एक भौगोलिक स्थल है, बल्कि यह भारत की धार्मिक और आध्यात्मिक धरोहर का प्रतीक है।
•त्रिवेणी संगम जीवन, ज्ञान और भक्ति का संगम है।
•इसके संरक्षण और महत्ता को बनाए रखने के लिए सामूहिक प्रयास आवश्यक हैं।

यह स्थान हमें यह सिखाता है कि प्रकृति और आध्यात्मिकता का मेल मानव जीवन को पूर्णता की ओर ले जा सकता है।
संगम केवल जल का संगम नहीं, बल्कि यह हमारी आत्मा और ब्रह्मांड के बीच का संबंध है।

डॉ. सुरेश चव्हाणके
मुख्य संपादक, सुदर्शन न्यूज़ चैनल

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