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महाभारत, रामायण, वेद, पुराण, उपनिषद और अन्य धर्मग्रंथों में कुम्भ मेला: एक गहन अध्ययन (महाकुम्भ लेखमाला 9 वा लेख)

MahaKumbh 2025: कुम्भ मेला न केवल आत्मा की शुद्धि, बल्कि समाज, संस्कृति और मानवता का उत्सव है।

Dr. Suresh Chavhanke
  • Jan 22 2025 8:37AM

प्रस्तावना: धर्मग्रंथों की पवित्रता और कुम्भ मेला

हिंदू धर्म में धर्मग्रंथ केवल पवित्र ग्रंथ नहीं हैं, बल्कि ये जीवन का मार्गदर्शन, आत्मा की शुद्धि और मोक्ष प्राप्ति के साधन हैं। कुम्भ मेला, जो सनातन धर्म का सबसे भव्य आयोजन है, इन ग्रंथों की शिक्षाओं का सार और सजीव उत्सव है। महाभारत, रामायण, वेद, उपनिषद और पुराणों में न केवल तीर्थ यात्रा और स्नान की परंपरा का उल्लेख मिलता है, बल्कि कुम्भ मेले के मूल सिद्धांत—आस्था, समर्पण, और सत्य की खोज—को भी गहराई से समझाया गया है।

इस लेख में हम गहराई से विश्लेषण करेंगे कि इन ग्रंथों में कुम्भ मेला और उससे संबंधित परंपराओं का क्या महत्व है, और कैसे ये आधुनिक समाज में भी प्रासंगिक हैं।

1. वेदों में कुम्भ मेला और नदियों का महत्व

 ऋग्वेद: नदी सूक्त और जल की महिमा
ऋग्वेद में “नदी सूक्त” नदियों की पवित्रता और महिमा का वर्णन करता है।
 गंगा, यमुना और सरस्वती का उल्लेख पवित्र जल स्रोतों के रूप में किया गया है।
नदी स्नान को न केवल शरीर, बल्कि आत्मा की शुद्धि का साधन बताया गया है।
“आपो हि ष्ठा मयोभुवः। ता न ऊर्जे दधातन।” (ऋग्वेद 10.9.1)
(अर्थ: जल पवित्र और सुखदायक है। यह ऊर्जा और जीवन प्रदान करता है।)

यजुर्वेद: यज्ञ और तीर्थ यात्रा का महत्व

 यजुर्वेद में यज्ञ और तीर्थ यात्रा को मोक्ष प्राप्ति का माध्यम बताया गया है।
“तीर्थ” को केवल एक स्थान नहीं, बल्कि आध्यात्मिक अनुभव के रूप में देखा गया है।
यज्ञों में नदियों के जल का उपयोग आत्मा की शुद्धि के लिए आवश्यक माना गया।

अथर्ववेद: रोग और पाप से मुक्ति

 अथर्ववेद में जल और नदी स्नान को रोगों और पापों से मुक्ति का साधन बताया गया है।
“आपः शं नो भवतु पितरः शं नो मातरः।” (अथर्ववेद 6.91)
(अर्थ: जल हमारे लिए माता-पिता के समान सुखकारी और पवित्र हो।)

विश्लेषण:

 वेदों में नदियों को “देवी” और जल को “अमृत” का दर्जा दिया गया है। कुम्भ मेले के दौरान गंगा, यमुना और सरस्वती जैसे पवित्र जल स्रोतों का महत्व इसी वैदिक परंपरा से प्रेरित है।

2. उपनिषदों में तीर्थ यात्रा और आत्मा की शुद्धि

 बृहदारण्यक उपनिषद:

 यह उपनिषद “आत्मा और ब्रह्म” के मिलन को तीर्थ यात्रा और ध्यान का परिणाम मानता है।
आत्मा की शुद्धि और मोक्ष प्राप्ति के लिए जल और ध्यानको माध्यम माना गया।
तीर्थ यात्रा को बाहरी और आंतरिक यात्रा का संगम बताया गया।

कठोपनिषद:

 “यम की सभा और नदी के तट पर ध्यान।”
यह उपनिषद तीर्थ यात्रा को आत्मा की शुद्धि और ध्यान का माध्यम बताता है।
“तीर्थ” को केवल भौतिक स्थल नहीं, बल्कि एक अंतरात्मा की खोज के रूप में देखा गया।

छांदोग्य उपनिषद:

आत्मा की शुद्धि के लिए नदी स्नान और तपस्या का उल्लेख।
 गंगा और सरस्वती के महत्व को आत्मिक ज्ञान से जोड़ा गया।

विश्लेषण:

 उपनिषदों में तीर्थ यात्रा और स्नान का उल्लेख कुम्भ मेले की परंपरा को वैदिक दर्शन से जोड़ता है।

3. रामायण में तीर्थ यात्रा और नदी स्नान का महत्व

 गंगा और प्रयागराज का उल्लेख:

रामायण में गंगा स्नान और प्रयागराज में भारद्वाज मुनि के आश्रम का वर्णन मिलता है।
भगवान राम ने वनवास के दौरान गंगा के पवित्र जल का महत्व समझाया।
भारद्वाज मुनि ने संगम को “तीर्थराज” का दर्जा दिया।

गोदावरी और पंचवटी:

 रामायण में गोदावरी नदी का उल्लेख पवित्र नदी के रूप में किया गया है।
पंचवटी में सीता और राम का निवास गोदावरी तट पर था।

विश्लेषण:

 रामायण में तीर्थ यात्रा और नदियों का महत्व कुम्भ मेले की परंपरा का आधार बनाता है।

4. महाभारत में कुम्भ मेला और तीर्थ यात्रा

 वनपर्व और तीर्थ यात्रा का महत्व:

 महाभारत के वनपर्व में युधिष्ठिर ने तीर्थ यात्रा का उल्लेख किया है।

संगम क्षेत्र का महत्व और गंगा स्नान की महिमा।
“स्नान और यज्ञ आत्मा को शुद्ध करते हैं।”

अमृत मंथन की कथा:
अमृत मंथन से निकला अमृत कलश और उसकी रक्षा।
चार स्थानों (प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन, नासिक) पर अमृत की बूँदें गिरना।

विश्लेषण:

 महाभारत तीर्थ यात्रा को धर्म का पालन और आत्मा की शुद्धि का माध्यम मानता है।

5. पुराणों में कुम्भ मेला और तीर्थ स्थलों का विवरण

 भागवत पुराण:

 अमृत मंथन और अमृत कलश की रक्षा का उल्लेख।
कुम्भ मेले के स्थलों का पौराणिक संदर्भ।

स्कंद पुराण:

प्रयागराज को तीर्थों का राजा कहा गया।
गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम की महिमा।

पद्म पुराण:

दान, तपस्या और पुण्य अर्जन का महत्व।

विश्लेषण:
पुराण कुम्भ मेले को धर्म, संस्कृति और पुण्य अर्जन का महोत्सव मानते हैं।

6. अन्य ग्रंथों में कुम्भ और तीर्थ यात्रा

 मनुस्मृति और धर्मशास्त्र:

तीर्थ यात्रा और दान का विधान।
स्नान को पापों से मुक्ति का साधन बताया गया।

योग और तंत्र शास्त्र:

 कुम्भ मेले में योग और ध्यान की भूमिका।
शरीर और आत्मा के संतुलन के लिए नदी स्नान।

नाट्य शास्त्र:

 कुम्भ के दौरान सांस्कृतिक गतिविधियाँ और लोक नाट्य।

मुख्य वाक्य:

“कुम्भ मेला वेद, उपनिषद, रामायण, महाभारत और पुराणों की शिक्षाओं का समागम है, जो भारत की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक समृद्धि को प्रदर्शित करता है।”

इस लेख में मैंने सभी प्रमुख संदर्भों को देने का प्रयास किया है। 

डॉ सुरेश चव्हाणके
(चेअरमैन एवं मुख्य सम्पादक सुदर्शन न्यूज़ चैनल)

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