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कुम्भ मेला: सिख, जैन, बौद्ध जैसे सनातन हिंदू पंथों का संगम

इस्लामी आततायी और ईसाई अंग्रेजों ने हमको तोड़ने के कई षड्यंत्र किये पर सनातन परंपरा का महा प्रतीक कुम्भ मेला हमे जोड़े रखता हैं।

Dr. Suresh Chavhanke
  • Jan 22 2025 5:30PM

कुम्भ मेला भारतीय संस्कृति का सबसे भव्य धार्मिक और आध्यात्मिक आयोजन है। यह  हिंदू धर्म के सभी पंथों का भी उत्सव है, बल्कि यह सिख, जैन, और बौद्ध जैसे सनातन पंथों की गहरी परंपराओं, उनकी शिक्षाओं और सेवा के आदर्शों का भी प्रतिनिधित्व करता है।

इन पंथों के संस्थापक, धर्मग्रंथ, और दार्शनिक परंपराएँ आत्मा की शुद्धि, सत्य की खोज, और सेवा की भावना पर जोर देते हैं। कुम्भ मेला उनकी साझा परंपराओं और अद्वितीय शिक्षाओं का मंच है। इस लेख में हम सिख, जैन, और बौद्ध पंथों की ग्रंथीय शिक्षाओं, उनके संस्थापकों की कुम्भ में सहभागिता, और तीर्थ स्थलों के प्रति उनके दृष्टिकोण को गहराई से समझेंगे।

1. सिख दर्शन : तीर्थ यात्रा, सेवा, और जल के प्रति श्रद्धा

1.1 गुरु ग्रंथ साहिब में तीर्थ यात्रा और संगम का महत्व

सिखो के पवित्र ग्रंथ गुरु ग्रंथ साहिब में तीर्थ यात्रा और जल का गहरा महत्व बताया गया है। जल को आत्मा की शुद्धि और जीवन का आधार माना गया है।

1. जल के प्रति श्रद्धा:

गुरु ग्रंथ साहिब कहता है:

“पवन गुरु, पानी पिता, माता धरत महत।” (गुरु ग्रंथ साहिब, राग आसा)
(अर्थ: वायु गुरु है, जल पिता है, और धरती माता है। ये तीनों जीवन का आधार हैं।)

जल को न केवल भौतिक, बल्कि आध्यात्मिक शुद्धि का माध्यम माना गया है।

2. संगम और तीर्थ यात्रा:

तीर्थ स्थलों की यात्रा का महत्व गुरु ग्रंथ साहिब में इस प्रकार वर्णित है:

“हरि दरसन को मेरा मन लोचै, बल बल जाऊं साध संग।” (गुरु ग्रंथ साहिब)
(अर्थ: मेरी आत्मा प्रभु के दर्शन के लिए लालायित है, और यह साध संगत के माध्यम से संभव है।)

यह दर्शन सिखो में तीर्थ स्थलों की यात्रा को सेवा और ध्यान के साथ जोड़ता है।

1.2 गुरु नानक देव जी और हरिद्वार का कुम्भ मेला

गुरु नानक देव जी ने 1504-1507 के बीच हरिद्वार कुम्भ मेले में सहभागिता की।

कुम्भ मेला और गुरु नानक की कथा:
गुरु नानक ने देखा कि श्रद्धालु गंगा में जल चढ़ा रहे थे। उन्होंने पूछा कि ऐसा क्यों कर रहे हैं।
लोगों ने उत्तर दिया कि वे अपने पूर्वजों को जल चढ़ा रहे हैं।

गुरु नानक ने प्रतीकात्मक रूप से पश्चिम की ओर जल फेंककर सिखाया कि जल को धरती पर उपयोग करना चाहिए, न कि आडंबर में व्यर्थ करना।

“गुरु नानक ने कुम्भ में सत्य और सच्चे कर्म की शिक्षा दी।”

1.3 अन्य सिख गुरुओं की तीर्थ यात्रा

गुरु हरगोबिंद साहिब:
गुरु हरगोबिंद ने प्रयागराज में संगम का दौरा किया और वहां श्रद्धालुओं को सेवा और संगत के महत्व पर शिक्षित किया।

गुरु तेग बहादुर:
गुरु तेग बहादुर ने गंगा तट पर ध्यान और संगम स्नान के महत्व को बताया।

1.4 ऐतिहासिक सहभागिता और सेवा परंपरा

सिख संगतों ने हरिद्वार और प्रयागराज कुम्भ मेले में लंगर सेवा आयोजित की।

2010 हरिद्वार कुम्भ:
सिख संगतों ने 50,000 से अधिक श्रद्धालुओं को भोजन कराया।

2019 प्रयागराज कुम्भ:
सिख समाज ने कई स्थानों पर लंगर सेवा प्रदान की।

2. जैन पंथ: तपस्या, तीर्थ यात्रा, और संगम का महत्व

2.1 जैन ग्रंथों में तीर्थ और जल की महिमा

जैन दर्शन के ग्रंथों में तीर्थ यात्रा को “आत्मा के शुद्धिकरण” का साधन माना गया है।

1. कल्पसूत्र:

तीर्थ स्थलों को “पवित्र ऊर्जा के केंद्र” कहा गया है।

“दान, तप, और ध्यान तीर्थ यात्रा को पूर्णता प्रदान करते हैं।”

2. भगवती सूत्र:

“संगम और जल स्नान से आत्मा के बंधनों का शमन होता है।”

2.2 महावीर स्वामी की तीर्थ यात्रा और कुम्भ का संदर्भ

महावीर स्वामी ने अपने प्रवचनों में तीर्थ स्थलों के महत्व को बताया।

महावीर स्वामी का दर्शन:

“तप और त्याग ही आत्मा की शुद्धि का मार्ग हैं। तीर्थ वह स्थान है, जहाँ तपस्या के माध्यम से आत्मा शुद्ध होती है।”

गंगा और संगम को जैन ग्रंथों में मोक्ष प्राप्ति के साधन के रूप में बताया गया है।

2.3 जैन मुनियों की कुम्भ में ऐतिहासिक सहभागिता

उज्जैन कुम्भ (2016):

जैन मुनियों ने “अहिंसा और तपस्या” पर प्रवचन दिए।

हरिद्वार कुम्भ (2010):

जैन समाज ने संगम क्षेत्र में तपस्या और साधना शिविर आयोजित किए।

3. बौद्ध : ध्यान, शांति, और तीर्थ यात्रा

3.1 त्रिपिटक और धम्मपद में तीर्थ यात्रा का संदर्भ

बौद्ध दर्शन में तीर्थ यात्रा और जल का गहरा महत्व है।

1. त्रिपिटक:
“तीर्थ केवल स्थान नहीं, यह आत्मा और सत्य की खोज का माध्यम है।”

2. धम्मपद:
“ध्यान आत्मा को प्रवाहित करता है, जैसे जल धारा को।”

3.2 गौतम बुद्ध और संगम क्षेत्र

गौतम बुद्ध ने गंगा के तट पर ध्यान और प्रवचन दिए।

उन्होंने संगम को “आध्यात्मिक शांति का स्रोत” बताया।

धम्मपद में उद्धरण:
“जैसे गंगा की धारा अविरल बहती है, वैसे ही ध्यान आत्मा को शुद्ध करता है।”

3.3 सम्राट अशोक और कुम्भ मेला

सम्राट अशोक ने प्रयागराज को “धम्म यात्रा” का हिस्सा बनाया।

अशोक ने संगम क्षेत्र में बौद्ध स्तूपों का निर्माण कराया।

4. पंथों के ग्रंथीय और ऐतिहासिक संदर्भ का विश्लेषण

वेद और पुराण:
“संगम की भूमि पर स्नान करने से जीवन के बंधन समाप्त होते हैं।” (ऋग्वेद)

गुरु ग्रंथ साहिब:
“सच्चे कर्म ही तीर्थ हैं।”

जैन भगवती सूत्र:
“संगम आत्मा के शुद्धिकरण का माध्यम है।”

धम्मपद:
“ध्यान आत्मा को गंगा की धारा की तरह शुद्ध करता है।”

मुख्य वाक्य:

“कुम्भ मेला सनातन हिंदू धर्म के भीतर सह-अस्तित्व और विविधता का सजीव प्रमाण है।”

डॉ सुरेश चव्हाणके 
(चेयरमैन एवं मुख्य संपादक, सुदर्शन न्यूज़ चैनल)


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