कुम्भ मेला और सनातन में महिलाओं का स्थान: अर्धनारीश्वर की परंपरा और उनकी बिना भेदभाव सहभागिता।(12)
प्रस्तावना: सनातन धर्म में महिलाओं की विशिष्ट भूमिका
सनातन धर्म में महिलाओं को देवी के रूप में पूजने की परंपरा सबसे प्राचीन और गहन है। यहाँ स्त्री को केवल मातृत्व तक सीमित नहीं किया गया, बल्कि उसे शक्ति, ज्ञान, और भक्ति का प्रतीक माना गया।
अर्धनारीश्वर की परिकल्पना में शिव और शक्ति के समान स्थान को दर्शाया गया है, जो यह सिद्ध करता है कि पुरुष और महिला एक-दूसरे के पूरक हैं।
कुम्भ मेला इस दर्शन का सबसे बड़ा जीवंत उदाहरण है, जहाँ महिलाओं को धर्म, समाज और साधना में समान अधिकार दिए गए हैं।
इसके विपरीत, इस्लाम और ईसाइयत जैसी अब्राहमिक परंपराएँ महिलाओं को दोयम दर्जा देती हैं। उनके धर्मशास्त्रों में महिला को अधिकतर पुरुष के अधीन माना गया है, जो उनके दार्शनिक और सामाजिक ढांचे की सीमितता को उजागर करता है।
1. सनातन धर्म में महिलाओं का स्थान: दार्शनिक और धार्मिक दृष्टि
1.1 अर्धनारीश्वर: समता और पूरकता का प्रतीक
• अर्धनारीश्वर की अवधारणा यह दर्शाती है कि शिव और शक्ति, पुरुष और महिला, एक-दूसरे के बिना अधूरे हैं।
“स्त्री और पुरुष सृष्टि के आधार हैं। उनकी समानता और सह-अस्तित्व ही ब्रह्मांड को संतुलन देता है।”
• अर्धनारीश्वर यह सिद्ध करता है कि धर्म और अध्यात्म में महिलाओं की भूमिका न केवल आवश्यक है, बल्कि वह पुरुषों के बराबर है।
1.2 वैदिक परंपरा में महिलाओं का स्थान
• वैदिक काल में महिलाएँ ऋषिकाएँ थीं। उन्होंने वेदों और उपनिषदों की रचना में भाग लिया।
• गार्गी ने याज्ञवल्क्य के साथ ब्रह्म के गूढ़ रहस्यों पर वाद-विवाद किया।
• मैत्रेयी ने आत्मा और मोक्ष के सिद्धांत पर गहन चिंतन किया।
• अपाला और लोपामुद्रा जैसी ऋषिकाओं ने ऋग्वेद के महत्वपूर्ण सूक्तों की रचना की।
• ये उदाहरण बताते हैं कि सनातन धर्म ने महिलाओं को ज्ञान, दर्शन, और साधना में पूर्ण स्वतंत्रता दी।
2. कुम्भ मेला और महिलाओं की बिना भेदभाव सहभागिता
2.1 कुम्भ मेले में महिला साध्वियों का स्थान
• कुम्भ मेला महिलाओं के लिए आध्यात्मिक समानता और स्वतंत्रता का प्रतीक है।
• महिला साध्वियाँ संगम स्नान, प्रवचन, और साधना में समान रूप से भाग लेती हैं।
• यहाँ न तो जाति का भेद है, न लिंग का। संगम पर सभी को समान अवसर और महत्व मिलता है।
2.2 महिला साध्वियों का नेतृत्व और योगदान
• महिला साध्वियाँ कुम्भ मेले में ध्यान, योग, और साधना शिविरों का संचालन करती हैं।
• वे प्रवचन और सत्संग के माध्यम से धर्म और समाज को जागरूक करती हैं।
3. ईसाइयत और इस्लाम में महिलाओं की स्थिति
3.1 इस्लाम में महिलाओं की स्थिति
• इस्लामिक दर्शन महिलाओं को पुरुषों के बराबर नहीं मानता।
• कुरान में महिलाओं को घर की चारदीवारी तक सीमित रहने का निर्देश है।
• सार्वजनिक जीवन में उनकी भूमिका सीमित है।
• मस्जिदों और हज के दौरान भी महिलाओं की भूमिका पुरुषों से अलग और सीमित है।
3.2 ईसाइयत में महिलाओं की भूमिका
• ईसाइयत में महिला को अक्सर “पाप का कारण” माना गया।
• बाइबल में आदम और हव्वा की कथा में महिला को पाप की उत्पत्ति से जोड़ा गया है।
• चर्च में महिलाओं को नेतृत्व का अधिकार नहीं है।
3.3 सनातन धर्म की तुलना में सीमित सोच
• इस्लाम और ईसाइयत महिलाओं को पुरुषों के बराबर अधिकार नहीं देते।
• इसके विपरीत, सनातन धर्म में महिलाएँ देवी, ऋषिका, और आध्यात्मिक गुरु तक हो सकती हैं।
4. प्राचीन और मध्यकालीन भारत में महिला संतों का योगदान
4.1 भक्ति आंदोलन और महिला संत
• मीराबाई:
• मीराबाई ने अपनी भक्ति और काव्य के माध्यम से कृष्ण के प्रति प्रेम का आदर्श प्रस्तुत किया।
• अक्का महादेवी:
• उन्होंने शिव भक्ति और त्याग का संदेश दिया।
• संत जनाबाई:
• वे नामदेव की शिष्या थीं और समाज को भक्ति और सेवा का संदेश देती थीं।
4.2 कुम्भ मेला और महिला संतों की परंपरा
• कुम्भ मेला महिला संतों और साध्वियों की आध्यात्मिक साधना और नेतृत्व को उजागर करता है।
• ये संत महिलाएँ समाज को सहिष्णुता, भक्ति, और सेवा का मार्ग दिखाती हैं।
5. कुम्भ मेला: दार्शनिक और सामाजिक समानता का मंच
5.1 वसुधैव कुटुंबकम् का आदर्श
• कुम्भ मेला “वसुधैव कुटुंबकम्” (संपूर्ण विश्व एक परिवार है) के आदर्श को साकार करता है।
• यहाँ सभी को, चाहे वे पुरुष हों या महिला, जाति और धर्म से परे समान स्थान मिलता है।
5.2 महिला साध्वियों का संगम स्नान में महत्व
• महिला साध्वियाँ संगम स्नान में भाग लेकर आध्यात्मिक समानता का संदेश देती हैं।
• उनके नेतृत्व में लोग धर्म और समाज में महिलाओं की भूमिका को समझते हैं।
6. कुम्भ मेला में महिलाओं का आधुनिक योगदान
6.1 पर्यावरण संरक्षण और महिला साध्वियाँ
• महिला साध्वियाँ कुम्भ मेले में पर्यावरण संरक्षण अभियानों का नेतृत्व करती हैं।
• वे नदियों की सफाई और हरित कुम्भ के संदेश को फैलाती हैं।
6.2 शिक्षा और सेवा
• महिला साध्वियाँ शिक्षा और समाज सेवा के माध्यम से समाज को सशक्त करती हैं।
मुख्य वाक्य:
“कुम्भ मेला न केवल सनातन धर्म की महानता का उत्सव है, बल्कि यह महिला साध्वियों की अद्वितीय भूमिका और समानता का प्रतीक भी है।”
डॉ सुरेश चव्हाणके
(चेयरमैन एवं मुख्य संपादक, सुदर्शन न्यूज। अध्यक्ष हिंदू समन्वय परिषद)