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सनातन धर्म में साधु-साध्वी परंपरा: आत्मज्ञान और त्याग का महानतम मार्ग

महाकुंभ पर डॉ सुरेश चव्हाणके जी के लेखमाला का लेख

Dr. Suresh Chavhanke
  • Feb 12 2025 7:39AM

सनातन धर्म में साधु-साध्वी परंपरा: आत्मज्ञान और त्याग का महानतम मार्ग

 

महा कुंभ लेखमाला – लेख क्रमांक 34

 

लेखक:

डॉ. सुरेश चव्हाणके (चेयरमैन एवं मुख्य संपादक, सुदर्शन न्यूज़ चैनल)

 

प्रस्तावना: सनातन धर्म में संन्यास की परंपरा

 

सनातन धर्म में साधु और संन्यासियों की परंपरा केवल तपस्या और साधना तक सीमित नहीं है, बल्कि यह आत्मज्ञान, समाज सेवा, युद्ध, आध्यात्मिक उत्थान और धर्म रक्षा का भी प्रतीक रही है।

👉 क्यों केवल हिंदू धर्म में संन्यास इतना विकसित हुआ, जबकि इस्लाम और ईसाईयत में यह नगण्य है?

👉 साधु और संन्यासी केवल कुंभ के स्नान के लिए नहीं आते, बल्कि उनका योगदान भारत की आध्यात्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक उन्नति में रहा है।

👉 क्या यह परंपरा केवल साधु पुरुषों तक सीमित है, या हिंदू परंपरा में साध्वी माताओं का भी उतना ही महत्व है?

 

🚩 इस लेख में हम समझेंगे कि सनातन धर्म में संन्यास की परंपरा क्यों सर्वोच्च मानी गई, और कैसे यह युगों-युगों से सनातन धर्म की आत्मा बनी हुई है।

 

1. साधु और संन्यास की परंपरा – आत्मत्याग से आत्मसाक्षात्कार तक का मार्ग

 

संन्यास केवल संन्यास आश्रम का पालन नहीं है, बल्कि यह आत्मत्याग और आत्मज्ञान का सर्वोच्च मार्ग है।

सनातन धर्म में यह चार आश्रमों में से अंतिम और सर्वोच्च आश्रम माना गया है –

1. ब्रह्मचर्य आश्रम – शिक्षा और विद्या प्राप्ति का काल।

2. गृहस्थ आश्रम – परिवार और समाज की सेवा का काल।

3. वानप्रस्थ आश्रम – गृहस्थ जीवन के उत्तरार्ध में सांसारिक मोह से मुक्ति।

4. संन्यास आश्रम – सभी सांसारिक बंधनों को त्यागकर ईश्वर की खोज में लीन होना।

 

संन्यास का मूल उद्देश्य आध्यात्मिक साधना और मोक्ष की प्राप्ति है, लेकिन इसका धार्मिक, सामाजिक और राजनैतिक पक्ष भी उतना ही महत्वपूर्ण रहा है।

 

2. साधुओं के प्रकार और उनके संप्रदाय

 

सनातन धर्म में विभिन्न पंथों और उपासना पद्धतियों के अनुसार साधुओं की कई श्रेणियाँ हैं।

प्रमुख संप्रदाय और उनकी विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –

 

(क) शैव संप्रदाय के साधु

 

1. नागा साधु – ये नंगे शरीर रहते हैं, कुंभ मेले के प्रमुख आकर्षण होते हैं, और शस्त्र धारण करते हैं।

2. अवधूत साधु – ये सांसारिक नियमों से परे रहते हैं और समाज से बिल्कुल अलग जीवन जीते हैं।

3. कापालिक साधु – ये तंत्र साधना में लीन होते हैं और शव-साधना करते हैं।

4. नाथ योगी – गुरु गोरखनाथ की परंपरा से जुड़े, योग और हठ योग के सिद्धहस्त साधु।

 

(ख) वैष्णव संप्रदाय के साधु

 

5. बैरागी साधु – श्रीराम और श्रीकृष्ण के भक्त, साधारण वेशभूषा धारण करते हैं।

6. गोस्वामी साधु – श्रीरामानुजाचार्य परंपरा के वैष्णव संन्यासी।

7. मध्व संप्रदाय के संन्यासी – मध्वाचार्य द्वारा स्थापित द्वैत वेदांत परंपरा के अनुयायी।

 

(ग) शाक्त संप्रदाय के साधु

 

8. अघोरी साधु – श्मशान में तपस्या करने वाले साधु, तंत्र साधना में निपुण।

9. शक्ति साधक – देवी उपासना और तंत्र-मार्ग में संलग्न साधु।

 

(घ) तांत्रिक और योगी परंपरा के साधु

 

10. सिद्ध योगी – कुण्डलिनी जागरण और हठ योग के माध्यम से शक्ति प्राप्त करने वाले साधु।

11. परमहंस संन्यासी – उच्च स्तर के योगी जो समाज से कटकर ध्यान और साधना में लीन रहते हैं।

 

(ङ) अन्य भारतीय पंथों के साधु

 

12. निहंग संन्यासी (सिख) – ये योद्धा संन्यासी होते हैं, नीली वेशभूषा और शस्त्र धारण करते हैं।

13. दिगंबर जैन मुनि (जैन) – पूर्णतः वस्त्र त्यागकर आत्म संयम और तपस्या में लीन रहते हैं।

14. बौद्ध भिक्षु (बौद्ध) – ध्यान, ज्ञान और करुणा के मार्ग पर चलने वाले संन्यासी।

 

👉 सनातन धर्म की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें सभी प्रकार के साधुओं को स्थान दिया गया है।

 

3. साध्वी परंपरा – भारतीय संस्कृति में स्त्री संन्यास की महिमा

 

भारत एकमात्र ऐसा देश है जहाँ महिलाओं के लिए भी संन्यास का मार्ग प्रशस्त किया गया।

संन्यास की इस परंपरा में कुछ प्रमुख साध्वी संप्रदाय इस प्रकार हैं –

 

1. आर्यिका (जैन साध्वी) – श्वेत वस्त्र धारण करने वाली जैन साध्वी।

2. भिक्षुणी (बौद्ध साध्वी) – बुद्ध धर्म की महिला संन्यासिन।

3. वैष्णवी साध्वी – श्रीकृष्ण और श्रीराम की उपासक साध्वी।

4. शाक्त संप्रदाय की साध्वी – माँ काली, तारा और दुर्गा की साधिकाएँ।

5. माताजी और महंताएँ – अखाड़ों और आश्रमों में गुरु पद पर आसीन महिला संन्यासिन।

 

👉 सनातन धर्म में साध्वी परंपरा को उतना ही महत्व दिया गया है, जितना पुरुष संन्यासियों को।

 

4. संन्यास और अन्य धर्मों की तुलना

 

सनातन धर्म में संन्यास की परंपरा जितनी विकसित हुई, उतनी अन्य किसी भी धर्म में नहीं हुई।

इस्लाम और ईसाईयत में संन्यास लगभग नगण्य है।

 

ईसाई धर्म – यहाँ केवल चर्च के पादरियों को ही आधिकारिक संन्यासी माना जाता है, लेकिन उनमें गृहस्थ जीवन वर्जित नहीं।

इस्लाम – इस्लाम में साधु या संन्यासी जैसी कोई परंपरा नहीं है। सूफी परंपरा में फकीर होते हैं, लेकिन वे पूर्ण संन्यासी नहीं होते।

 

👉 सनातन धर्म की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें संन्यास एक धार्मिक कर्तव्य माना गया है।

 

निष्कर्ष – साधु-संन्यासियों का योगदान और महिमा

 

संन्यास केवल मोक्ष प्राप्ति का मार्ग नहीं, बल्कि धर्म रक्षा का भी माध्यम रहा है।

नागा साधु, निहंग संन्यासी और अन्य योद्धा संतों ने धर्म की रक्षा के लिए बलिदान दिए हैं।

 

आज भी सनातन धर्म में संन्यास की परंपरा उतनी ही सजीव और प्रभावशाली है।

 

सनातन धर्म में साधु-संन्यासियों की परंपरा अनंत है, असीम है और शाश्वत है।

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