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महा कुंभ में दान का महत्व: पुण्य, परंपरा और आध्यात्मिक उत्थान। महा कुंभ लेखमाला – 35

धर्म योद्धा डॉ सुरेश चव्हाणके जी द्वारा लिखित महा कुंभ लेख माला 35

Dr suresh chavhanke
  • Feb 13 2025 12:46PM

महा कुंभ में दान का महत्व: पुण्य, परंपरा और आध्यात्मिक उत्थान

 

महा कुंभ लेखमाला – लेख क्रमांक 35

 

लेखक:

डॉ. सुरेश चव्हाणके (चेयरमैन एवं मुख्य संपादक, सुदर्शन न्यूज़ चैनल)

 

प्रस्तावना: कुंभ में दान क्यों महत्वपूर्ण है?

 

सनातन धर्म में दान का विशेष महत्व है, लेकिन महा कुंभ में किया गया दान अति विशेष माना जाता है।

क्यों महा कुंभ में दान करने से उसका पुण्य कई गुना बढ़ जाता है?

क्या यह केवल धार्मिक कर्मकांड है, या इसका गहरा आध्यात्मिक और सामाजिक महत्व भी है?

दान करने की परंपरा कब और कैसे शुरू हुई, और कौन-कौन से दान सबसे पुण्यकारी माने जाते हैं?

 

इस लेख में हम समझेंगे कि महा कुंभ में दान का महत्व केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सामाजिक, ऐतिहासिक और आध्यात्मिक भी है।

 

1. सनातन धर्म में दान की परंपरा और महत्त्व

 

दान का उल्लेख सबसे पहले वेदों और उपनिषदों में मिलता है।

ऋग्वेद में कहा गया है –

“अस्माकं मित्र मह्यम ददातु धनं दात्रे” – यानी जो दाता है, वही सच्चा मित्र होता है।

 

भगवद गीता (17.20) में कहा गया है –

“दातव्यमिति यद्दानं दीयतेऽनुपकारिणे।

देशे काले च पात्रे च तद्दानं सात्त्विकं स्मृतम्।।”

अर्थात – सही समय, सही स्थान और योग्य पात्र को बिना किसी अपेक्षा के दिया गया दान सबसे श्रेष्ठ होता है।

 

कुंभ मेला इसी सिद्धांत पर आधारित है, जहां साधु-संतों और जरूरतमंदों को दान देना सबसे पुण्यकारी कार्य माना जाता है।

 

2. कुंभ में दान क्यों विशेष है?

 

कुंभ के दौरान किया गया दान हजारों गुना फल देता है, क्योंकि:

यह अमृत से जुड़े एक दिव्य अवसर पर किया जाता है।

यह करोड़ों साधु-संतों की ऊर्जा से जुड़े वातावरण में किया जाता है।

कुंभ में दान करने से पापों से मुक्ति और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

 

ब्रह्मवैवर्त पुराण में कहा गया है –

“कुंभे स्नात्वा च दत्त्वा च मुक्तिमाप्नोति मानवः।”

अर्थात – कुंभ में स्नान और दान करने वाला व्यक्ति मुक्ति प्राप्त करता है।

 

स्कंद पुराण में वर्णन है कि कुंभ में एक गुड़ का दान हजार यज्ञों के बराबर पुण्य प्रदान करता है।

 

3. कुंभ में कौन-कौन से दान सबसे महत्वपूर्ण हैं?

 

सनातन धर्म में दान के कई प्रकार हैं, लेकिन कुंभ में कुछ विशेष दान अत्यधिक पुण्यदायी माने जाते हैं।

 

(क) गो-दान (गाय का दान)

यह सबसे श्रेष्ठ दान माना जाता है।

महाभारत में कहा गया है कि गो-दान से व्यक्ति को स्वर्ग की प्राप्ति होती है।

 

(ख) अन्न-दान (भोजन दान)

संतों, साधुओं और जरूरतमंदों को भोजन कराने से अनंत पुण्य मिलता है।

यह दान सर्वोत्तम सात्त्विक दान में आता है।

 

(ग) वस्त्र-दान

ब्रह्मांड पुराण के अनुसार, कुंभ में वस्त्र दान करने से गरीबी समाप्त होती है।

यह विशेषकर साधु-संतों और जरूरतमंदों के लिए किया जाता है।

 

(घ) सुवर्ण-दान (सोने का दान)

यह राजाओं और बड़े व्यापारियों के लिए विशेष रूप से पुण्यकारी दान माना जाता है।

इस दान से सौ जन्मों तक पुण्य फल की प्राप्ति होती है।

 

(ङ) जल और अर्घ्य दान

गंगा जल, कुआं, तालाब और बावड़ी बनवाना सर्वोत्तम दान कहा गया है।

कुंभ में जल दान करने से संतान प्राप्ति, स्वास्थ्य और लंबी आयु का आशीर्वाद मिलता है।

 

4. कुंभ में दान के ऐतिहासिक उदाहरण

 

कई भारतीय राजाओं और संतों ने कुंभ के दौरान दान किए, जो इतिहास में अमर हो गए।

 

1. हर्यक वंश के बिंबसार राजा – कुंभ के दौरान सैकड़ों गौशालाएँ बनवाईं।

2. सम्राट हर्षवर्धन – प्रयागराज कुंभ में अपना पूरा खजाना दान कर दिया।

3. पेशवा बाजीराव – उज्जैन कुंभ के दौरान संतों को विशाल भूमि दान की।

4. मराठा राजवंश – सैकड़ों तीर्थ यात्रियों के लिए भोजन और धर्मशालाओं का निर्माण करवाया।

 

आज भी कुंभ में लाखों श्रद्धालु दान करके पुण्य कमाते हैं।

 

5. कुंभ में दान और आधुनिक समय

 

आज भी कुंभ में दान देने की परंपरा उतनी ही जीवंत है।

बड़े उद्योगपति और व्यापारी साधु-संतों और निर्धनों के लिए भोजन, वस्त्र और चिकित्सा सेवा दान करते हैं।

कई धार्मिक संगठन लाखों यात्रियों के लिए लंगर और भंडारे का आयोजन करते हैं।

सरकारें भी कुंभ मेले में मुफ्त चिकित्सा सेवा और आश्रय केंद्रों की व्यवस्था करती हैं।

 

👉 इसलिए कुंभ में किया गया दान केवल व्यक्तिगत मुक्ति के लिए नहीं, बल्कि संपूर्ण समाज और सनातन धर्म की सेवा का भी माध्यम है।

 

6. अन्य धर्मों में दान और कुंभ का अंतर

 

सनातन धर्म में दान का महत्व किसी एक ग्रंथ या एक पैगंबर की आज्ञा पर आधारित नहीं, बल्कि यह एक नैसर्गिक धर्म (सनातन कर्तव्य) माना गया है।

 

ईसाई धर्म – चर्च को दान देना मुख्य रूप से धार्मिक अनुष्ठान है, लेकिन यह सामाजिक सेवा के रूप में अधिक प्रचलित नहीं रहा।

इस्लाम – जकात और खैरात केवल मुसलमानों के बीच ही सीमित रहता है, जबकि हिंदू धर्म में दान सभी जीवों के प्रति पुण्य कर्म माना जाता है।

 

👉 सनातन धर्म में दान केवल “कर्तव्य” नहीं, बल्कि आत्म-उत्थान और धर्म रक्षा का माध्यम है।

 

निष्कर्ष: महा कुंभ और दान – आत्मा का उत्थान और धर्म की सेवा

 

कुंभ केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि यह दान, सेवा और आत्मशुद्धि का अवसर भी है।

यहाँ दान करने से न केवल व्यक्ति को पुण्य मिलता है, बल्कि समाज का उत्थान भी होता है।

गाय, अन्न, जल, वस्त्र और स्वर्ण दान करने से कर्मों का शुद्धिकरण और मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है।

यह परंपरा सनातन धर्म की सबसे महान विशेषताओं में से एक है।

 

दान करना केवल पुण्य अर्जित करना नहीं, बल्कि सनातन संस्कृति और मानवता की सेवा करना है।

 
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