महा कुंभ में मराठों की भूमिका: रक्षा, पुनर्स्थापना और सनातन धर्म का गौरव
महा कुंभ लेखमाला – लेख क्रमांक 37
लेखक:
डॉ. सुरेश चव्हाणके (चेयरमैन एवं मुख्य संपादक, सुदर्शन न्यूज़ चैनल)
प्रस्तावना: मराठों का हिंदू धर्म और कुंभ मेले की रक्षा में योगदान
महा कुंभ मेला केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि सनातन धर्म, अखाड़ा परंपरा और हिंदू संस्कृति की निरंतरता का प्रतीक है।
मुगलों और अंग्रेजों ने इस परंपरा को समाप्त करने का हर संभव प्रयास किया, लेकिन मराठा साम्राज्य ने कुंभ मेले को न केवल बचाया, बल्कि उसे पुनर्जीवित किया और उसकी भव्यता को बढ़ाया।
छत्रपति शिवाजी महाराज से लेकर पेशवा, शिंदे, होल्कर, पवार और गायकवाड़ वंश के शासकों ने कुंभ मेले की रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
👉 अगर मराठा शासकों ने कुंभ मेले को संरक्षण न दिया होता, तो यह परंपरा मुगलों और अंग्रेजों के अत्याचार के कारण समाप्त हो सकती थी।
इस लेख में हम देखेंगे कि कैसे मराठों ने कुंभ मेले की रक्षा, पुनर्स्थापना और विस्तार किया।
1. मुगलों और अंग्रेजों का कुंभ पर आक्रमण: हिंदू धर्म को मिटाने की साजिश
कुंभ मेला हमेशा से हिंदू समाज की एकता और धार्मिक शक्ति का केंद्र रहा है।
👉 मुगलों ने इसे हिंदू शक्ति का संगम मानकर बार-बार इसे नष्ट करने का प्रयास किया।
👉 अंग्रेजों ने इसे कर प्रणाली के जाल में फंसाकर इसकी परंपरा को तोड़ने की कोशिश की।
📌 मुगलों के अत्याचार:
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मुगल शासकों ने कुंभ यात्रियों और साधु-संतों पर हमले करवाए।
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प्रयागराज और हरिद्वार कुंभ मेलों में तीर्थयात्रियों पर कर लगाया गया।
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हिंदू धर्म को दबाने के लिए मंदिरों को तोड़ा गया और संतों को प्रताड़ित किया गया।
📌 अंग्रेजों की साजिश:
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कुंभ मेले में कर लगाकर इसे आम हिंदुओं की पहुँच से बाहर करने का षड्यंत्र।
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साधु-संतों को आपस में लड़वाकर अखाड़ों की शक्ति को कमजोर करना।
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नागा साधुओं के सशस्त्र दलों को कुंभ से बाहर करने की योजना।
👉 यही वह समय था जब मराठों ने कुंभ की रक्षा का संकल्प लिया और इसे भव्य रूप दिया।
2. छत्रपति शिवाजी महाराज (1674-1680): कुंभ रक्षा की नींव रखी
छत्रपति शिवाजी महाराज ने हिंदू धर्म और तीर्थों की रक्षा को अपने जीवन का लक्ष्य बनाया।
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उन्होंने हरिद्वार, नासिक और उज्जैन में कुंभ मेले की सुरक्षा के लिए अपने सैनिक भेजे।
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मुगलों और अन्य इस्लामी आक्रमणकारियों द्वारा तीर्थयात्रियों पर होने वाले अत्याचारों को रोकने के लिए सैन्य शक्ति का उपयोग किया।
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साधु-संतों और नागा अखाड़ों को संगठित किया, जिससे वे आत्मरक्षा कर सकें।
👉 उनकी यह नींव आने वाले मराठा शासकों के लिए मार्गदर्शन बनी।
3. पेशवा बाजीराव प्रथम (1720-1740): पेशवाई शोभायात्रा की पुनर्स्थापना
बाजीराव प्रथम ने कुंभ मेले को मराठा संरक्षण में लिया और इसे भव्य बनाया।
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1735 में हरिद्वार कुंभ में पेशवाई शोभायात्रा की पुनर्स्थापना की।
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नासिक और उज्जैन कुंभ मेलों में साधु-संतों के लिए सैन्य सुरक्षा का प्रबंध किया।
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पेशवाई शोभायात्रा को अखाड़ों की प्रमुख परंपरा के रूप में स्थापित किया।
👉 आज भी यह परंपरा जारी है और कुंभ की सबसे भव्य घटना मानी जाती है।
4. पवार राजवंश (धार, देवास और इंदौर): उज्जैन कुंभ में योगदान
पवार राजवंश ने उज्जैन कुंभ की सेवा में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
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धर्मशालाओं और अन्नक्षेत्रों का निर्माण कराया, जिससे दूर-दूर से आने वाले तीर्थयात्रियों को भोजन और ठहरने की सुविधा मिले।
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महाकालेश्वर मंदिर के पुनर्निर्माण में सहायता की और साधुओं के लिए स्थायी आश्रम बनवाए।
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उज्जैन कुंभ मेले के दौरान तीर्थयात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित की।
👉 अगर पवार राजवंश का योगदान न होता, तो उज्जैन कुंभ मेला इतनी व्यवस्थित परंपरा में नहीं ढल पाता।
5. अहिल्याबाई होल्कर (1767-1795): कुंभ स्थलों का पुनर्निर्माण
अहिल्याबाई होल्कर का योगदान सबसे महत्वपूर्ण था।
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प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन में घाटों, मंदिरों और धर्मशालाओं का निर्माण कराया।
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हरिद्वार में हर की पैड़ी का पुनर्निर्माण करवाया।
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महाकालेश्वर मंदिर का जीर्णोद्धार किया और कुंभ की परंपरा को संरक्षित किया।
👉 उनके द्वारा किए गए निर्माण कार्य आज भी हिंदू धर्म की धरोहर हैं।
6. गायकवाड़ राजवंश (बड़ौदा): तीर्थ स्थलों का संरक्षण
बड़ौदा के गायकवाड़ शासकों ने कुंभ मेले की परंपरा को बनाए रखने के लिए योगदान दिया।
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प्रयागराज, हरिद्वार और नासिक में घाटों, मंदिरों और धर्मशालाओं का निर्माण करवाया।
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तीर्थयात्रियों के लिए अन्नक्षेत्र और धर्मशालाओं की व्यवस्था की।
निष्कर्ष: मराठा शासकों का कुंभ मेले पर अमिट प्रभाव
अगर मराठा शासकों ने कुंभ मेले की रक्षा न की होती, तो यह परंपरा मुगलों और अंग्रेजों के षड्यंत्र में समाप्त हो जाती।
मराठों ने न केवल कुंभ मेले की रक्षा की, बल्कि इसे भव्य स्वरूप दिया और इसे एक संगठित परंपरा के रूप में स्थापित किया।
🚩 मराठा वीरों का योगदान आज भी कुंभ में ‘पेशवाई शोभायात्रा’ और हिंदू तीर्थ स्थलों के रूप में जीवित है।
🚩 उन्होंने यह सिद्ध कर दिया कि जब तक सनातन धर्म के रक्षक जीवित हैं, तब तक कोई भी शक्ति हमारी परंपराओं को मिटा नहीं सकती।