महा कुंभ मेला और सामाजिक समरसता
महा कुंभ लेखमाला – लेख क्रमांक 39
लेखक:
डॉ. सुरेश चव्हाणके (चेयरमैन एवं मुख्य संपादक, सुदर्शन न्यूज़ चैनल)
प्रस्तावना: कुंभ मेला – सामाजिक एकता का प्रतीक
महा कुंभ मेला सिर्फ आस्था और अध्यात्म का पर्व नहीं, बल्कि समाज के सभी वर्गों को जोड़ने वाला सबसे बड़ा मंच भी है।
जाति, भाषा, क्षेत्र, संप्रदाय और पंथ से ऊपर उठकर करोड़ों लोग एक साथ स्नान करते हैं, पूजन करते हैं और साधु-संतों का आशीर्वाद ग्रहण करते हैं।
यह पर्व भारतीय समाज की सहिष्णुता, समानता और एकजुटता का सबसे बड़ा उदाहरण है।
आज जब समाज में कई प्रकार के भेदभाव और वैचारिक मतभेद देखे जाते हैं, तब कुंभ मेला हमें सामाजिक समरसता का सबसे उत्तम आदर्श प्रस्तुत करता है।
1. कुंभ मेला: सभी के लिए समान अवसर – धर्मशास्त्रों में प्रमाण
वेदों और उपनिषदों में स्पष्ट कहा गया है कि संपूर्ण मानवता एक ही मूल से उत्पन्न हुई है।
ऋग्वेद (10.191.2) कहता है:
“संगच्छध्वं संवदध्वं सं वो मनांसि जानताम्।”
“साथ चलो, साथ बोलो और तुम्हारे विचार भी एक समान हों।”
भगवद गीता (5.18) में श्रीकृष्ण कहते हैं:
“विद्याविनयसम्पन्ने ब्राह्मणे गवि हस्तिनि। शुनि चैव श्वपाके च पण्डिताः समदर्शिनः॥”
“विद्वान व्यक्ति ब्राह्मण, गाय, हाथी, कुत्ते और चांडाल को समान दृष्टि से देखता है।”
महर्षि वेदव्यास ने महाभारत में कहा:
“न जात्या ब्राह्मणो प्रोक्तो न जात्या शूद्र उच्यते। कर्मणा ब्राह्मणो ज्ञेयः शूद्रश्च कर्मणा भवेत्॥”
“कोई जन्म से ब्राह्मण या शूद्र नहीं होता, बल्कि उसके कर्म ही उसे श्रेष्ठ या निम्न बनाते हैं।”
इन शास्त्रीय प्रमाणों से स्पष्ट होता है कि सनातन धर्म में जाति से अधिक कर्म को महत्व दिया गया है। कुंभ मेला इसी भावना को मूर्त रूप में प्रस्तुत करता है।
2. हर जाति, हर समुदाय के लिए समान स्थान
ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र – सभी एक ही घाट पर स्नान करते हैं और समान रूप से पूजा-अर्चना करते हैं।
इस आयोजन में कोई छोटा-बड़ा नहीं होता, सभी को आध्यात्मिक लाभ लेने का समान अवसर मिलता है।
यह आयोजन धर्म और जाति से परे, समस्त मानवता को जोड़ने का कार्य करता है।
कुंभ मेला इस सत्य को स्थापित करता है कि सनातन धर्म में सभी जीव समान हैं।
3. जाति भेद का दुष्प्रचार: वामपंथी और विदेशी षड्यंत्र
विदेशी आक्रांताओं और मिशनरियों ने भारत में जातिवाद को बढ़ाने के लिए झूठा प्रचार किया।
ब्रिटिश इतिहासकारों ने भारतीय समाज को विभाजित करने के लिए मनुस्मृति और अन्य ग्रंथों की गलत व्याख्या की।
वामपंथी विचारधारा ने भारतीय समाज की अखंडता को तोड़ने के लिए सनातन धर्म को गलत तरीके से प्रस्तुत किया।
आज भी हिंदू समाज को बांटने के लिए जातिवाद को हथियार बनाया जाता है, जबकि वास्तविक सनातन परंपरा सबको समान मानने की शिक्षा देती है।
कुंभ मेला इस षड्यंत्र का जवाब देता है, जहाँ हर वर्ग, जाति और पंथ के लोग एक साथ स्नान करते हैं और सनातन धर्म की एकता को सिद्ध करते हैं।
4. संतों और महापुरुषों के विचार: सामाजिक समरसता का संदेश
महर्षि दयानंद सरस्वती – “वेदों में जात-पात का कोई भेदभाव नहीं, सभी मानव एक समान हैं।”
स्वामी विवेकानंद – “धर्म की सही पहचान प्रेम और करुणा में है, न कि जातिवाद में।”
डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर – “हिंदू धर्म में समानता का बीज हमेशा से था, इसे पुनः स्थापित करना ही समाधान है।”
सभी महापुरुषोंने बोला है– “कुंभ मेला सामाजिक भेदभाव को समाप्त करने का सबसे बड़ा माध्यम है।”
यह महापुरुष हमें बताते हैं कि जाति के नाम पर विभाजन कृत्रिम है, और कुंभ मेला इसे मिटाने का सबसे बड़ा अवसर है।
5. वैश्विक स्तर पर सामाजिक समरसता का संदेश
विश्व के कई देशों में अब भी रंगभेद, नस्लभेद और सांप्रदायिक संघर्ष होते हैं।
लेकिन कुंभ मेला दुनिया को यह संदेश देता है कि धर्म और समाज का आधार विभाजन नहीं, बल्कि एकता और सहिष्णुता होना चाहिए।
अमेरिका और यूरोप के कई विश्वविद्यालय कुंभ मेले पर शोध कर रहे हैं, क्योंकि यह आयोजन सामाजिक और आध्यात्मिक सद्भाव का सबसे बड़ा उदाहरण है।
आज जब विश्व में असहिष्णुता और सामाजिक असमानता की समस्या बढ़ रही है, तब कुंभ मेले का आदर्श और अधिक प्रासंगिक हो जाता है।
6. 2025 कुंभ मेला: सामाजिक समरसता का अद्वितीय उदाहरण
50 करोड़ से अधिक लोगों की सहभागिता – सभी वर्गों और संप्रदायों का संगम।
साधु-संतों, मठों और अखाड़ों का एक ही मंच पर समागम।
हर जाति, संप्रदाय, क्षेत्र और भाषा के लोग एक साथ स्नान, पूजन और प्रवचन में भाग लेते हैं।
सामाजिक भेदभाव को खत्म करने का सबसे बड़ा माध्यम।
विश्व के लिए सहिष्णुता, सद्भाव और समानता का सन्देश।
कुंभ मेला केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सामाजिक क्रांति का मंच भी है।
निष्कर्ष: कुंभ मेला – सामाजिक समरसता की धरोहर
कुंभ मेला समाज को यह सिखाता है कि सभी समान हैं।
यह आयोजन धर्म, जाति, वर्ग और भाषा की सीमाओं को तोड़ता है।
यह दिखाता है कि भारतीय संस्कृति में एकता और सहिष्णुता की गहरी जड़ें हैं।
अगर भारत को जातिवाद, संप्रदायवाद और भेदभाव से मुक्त बनाना है, तो कुंभ मेले का संदेश अपनाना होगा।
महा कुंभ मेला केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि सामाजिक समरसता की जीवंत धरोहर है।