ये वो इतिहास है जिसे आज तक आप को कभी बताया नहीं गया था. उस कलम का दोष है ये जिसने नीलाम मन से और बिकी स्याही से अंग्रेज अफसरों के नामों के आगे आज तक सर लगाया है और देश के क्रांतिकारियों को अपराधी तक लिखा स्वतंत्र भारत में.. इतना ही नहीं उन्होंने देश को ये जानने ही नहीं दिया की उनके लिए सच्चा बलिदान किसने दिया और कब दिया है. यह देश को अनंत काल तक पीड़ा पहुंचाने वाला धोखा है.
जिस वीर ने अल्पायु में हिंदू धर्म की खातिर अपने दादा का शीश बलिदान होते हुए देखा, फिर जंगलों में छुपकर अस्त्र-शस्त्र का प्रशिक्षण लिया और औरंगजेब के खिलाफ युद्ध लड़ा. ऐसे महान योद्धा साहिबजादा अजीत सिंह जी को उनके बलिदान दिवस पर बारम्बार नमन करते हुए उनका गौरवगान सदा सदा के लिए अमर रखने का संकल्प सुदर्शन परिवार लेता है.
महान योद्धा साहिबजादा अजीत सिंह जी का जन्म 11 फरवरी 1687 को पोंटा साहिब में माता सुंदरी जी और गुरु गोबिंद सिंह जी के यहां हुआ था. उनका पालन-पोषण आनंदपुर में हुआ , जहां उनकी शिक्षा में धार्मिक ग्रंथ, इतिहास और दर्शन शामिल थे. उन्होंने जीवन सिंह (भाई जैता) से घुड़सवारी और तलवारबाजी और तीरंदाजी की मार्शल आर्ट का प्रशिक्षण प्राप्त किया था.
बता दें कि मात्र 12 साल की उम्र में उन्हें पहली सैन्य नियुक्ति दी गई थी. एक मुस्लिम, पैगंबर नोह के रंगहारों ने उत्तर पश्चिम पंजाब के पोथोहर क्षेत्र से आने वाली एक सिख संगत पर हमला किया था और उसे लूट लिया था. गुरु गोबिंद सिंह जी ने अजीत सिंह को 100 लोगों की कमान में गांव भेजा जो सतलुज नदी के पार आनंदपुर से थोड़ी दूरी पर था. बता दें कि 23 मई 1699 को अजीत सिंह जी गांव पहुंचे लूटी गई संपत्ति बरामद की और अपराधियों को दंडित किया था.
साहिबजादा अजीत सिंह जी श्री गुरु गोबिंद सिंह जी के सबसे बड़े पुत्र थे. गुरु जी द्वारा नियुक्त किए गए पांच प्यारों ने अजीत सिंह जी को समझाने की कोशिश की कि वे युद्ध में न जाएं. लेकिन पुत्र की वीरता को देखते हुए गुरु जी ने अजीत सिंह जी को स्वयं अपने हाथों से शस्त्र भेंट कर लड़ने भेजा. कई इतिहासकारों ने लिखा है कि रणभूमि में जाते ही अजीत सिंह जी ने ऐसी वीरता दिखाई कि मुगल सैनिक प्राण बचाने के लिए इधर-उधर भागने लगे.
वे कुछ यूं युद्ध कर रहे थे मानो कोई बुराई पर कहर बरपा रहा हो. बता दें कि जब अजीत सिंह जी के तीर खत्म होने लगे तो दुश्मनों ने उन्हें घेर लिया. इसके बाद अजीत सिंह जी ने तलवार निकाली और अकेले ही मुगल फौज पर टूट पड़े. उन्होंने एक-एक करके मुगल सैनिकों का संहार किया, लेकिन तभी लड़ते-लड़ते उनकी तलवार टूट गई.
साहिबजादा अजीत सिंह जी मात्र 19 वर्ष की आयु में आखिरी सांस तक चमकौर युद्ध में मुगलों से लड़ते हुए 21 दिसंबर,1705 को बलिदान हुए थे. ऐसे महान योद्धा साहिबजादा अजीत सिंह जी को उनके बलिदान दिवस पर बारम्बार नमन करते हुए उनका गौरवगान सदा सदा के लिए अमर रखने का संकल्प सुदर्शन परिवार लेता है.