हाल ही में संसद से पारित और राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद अस्तित्व में आए वक्फ कानून को लेकर देशभर में बहस और विरोध थमने का नाम नहीं ले रहा है। पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में इस कानून के खिलाफ जारी प्रदर्शन ने हिंसक रूप ले लिया है, जबकि सर्वोच्च न्यायालय में इसके खिलाफ 70 से अधिक याचिकाएं दाखिल हो चुकी हैं।
बुधवार (16 अप्रैल 2025) को चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अनुपस्थिति में चीफ जस्टिस संजीव खन्ना की अध्यक्षता में जस्टिस पीवी संजय कुमार और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच ने लगभग दो घंटे तक इस मामले की गहन सुनवाई की।
दिल्ली हाईकोर्ट भी वक्फ ज़मीन पर?
CJI संजीव खन्ना ने एक अहम टिप्पणी करते हुए वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी से पूछा – “क्या वाकई दिल्ली हाईकोर्ट वक्फ की ज़मीन पर बना है? हम यह नहीं कह रहे कि हर 'वक्फ बाय यूजर' दावा गलत है, लेकिन यह एक गंभीर मुद्दा है।”
"इतिहास को फिर से नहीं लिखा जा सकता"
जस्टिस खन्ना ने कानून के क्रियान्वयन पर सवाल उठाते हुए कहा, “अगर किसी ट्रस्ट को 100 या 200 साल पहले वक्फ घोषित कर दिया गया, और अब अचानक वक्फ बोर्ड कहे कि यह ज़मीन उनकी है, तो यह इतिहास को पलटना है – क्या ऐसा संभव है?”
"धार्मिक आधार पर सदस्यता का विवाद"
पीठ ने बोर्ड की संरचना पर भी सवाल उठाए। उन्होंने पूछा कि जब वक्फ बोर्ड में 8 मुस्लिम और 2 गैर-मुस्लिम सदस्य हो सकते हैं, तो क्या इसी तर्ज पर मुसलमानों को भी हिंदू धार्मिक ट्रस्टों में स्थान दिया जाएगा? इस पर जब सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कटाक्ष करते हुए कहा कि फिर तो यह पीठ (न्यायालय) भी इस याचिका की सुनवाई के योग्य नहीं है, तो CJI ने स्पष्ट किया – “न्याय के मंदिर में हम धर्म नहीं देखते। हमारी कुर्सी किसी मज़हब की प्रतिनिधि नहीं है।”
कानून कैसे बना, केंद्र ने बताया पूरा प्रोसेस
केंद्र की ओर से पैरवी कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बताया कि यह कोई जल्दबाज़ी में लाया गया कानून नहीं है। इसके लिए संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) का गठन हुआ था, जिसने 38 बैठकों के बाद देशभर का दौरा किया और 98 लाख से अधिक ज्ञापनों की जांच की। इसके बाद ही यह विधेयक संसद में पेश किया गया और पारित हुआ।
अब अगली सुनवाई का इंतज़ार
गंभीर सवालों और तर्कों से भरी इस सुनवाई के बाद अब पूरे देश की निगाहें सुप्रीम कोर्ट की अगली सुनवाई पर टिकी हैं। यह मामला केवल धार्मिक या कानूनी नहीं, बल्कि संवैधानिक अधिकारों की व्याख्या और देश की धर्मनिरपेक्ष व्यवस्था से जुड़ा हुआ है।
SC में 70 से अधिक याचिकाओं पर सुनवाई
देश के सर्वोच्च न्यायालय में वक्फ कानून को चुनौती देने वाली दर्जनों याचिकाओं पर अहम सुनवाई के दौरान न्यायाधीशों ने बहुचर्चित वक्फ एक्ट से जुड़े विवादों पर गहन मंथन किया। सुनवाई के दौरान अदालत में संविधान विशेषज्ञ कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी जैसे वरिष्ठ वकील याचिकाकर्ताओं की तरफ से प्रस्तुत हुए, वहीं केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सरकार की तरफ से पक्ष रखा।
कपिल सिब्बल ने तर्क दिया कि वक्फ बोर्ड के गठन में केवल मुस्लिम सदस्यों की अनिवार्यता संविधान के अनुच्छेद 26 का उल्लंघन है। उन्होंने कहा कि अब गैर-मुस्लिमों को भी इसमें शामिल किया जा सकता है, जो धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का सीधा उल्लंघन है।
पुरानी मस्जिदों पर SC की टिप्पणी
जजों ने विशेष रूप से 14वीं और 16वीं सदी की मस्जिदों का जिक्र करते हुए कहा कि इतने पुराने धार्मिक स्थलों के पास रजिस्ट्रेशन या सेल डीड जैसी आधुनिक संपत्ति प्रमाणपत्र नहीं हो सकते। ऐसे में उन्हें 'वक्फ बाई यूजर' के तहत मान्यता देना तर्कसंगत है। सीजेआई खन्ना ने स्पष्ट किया कि पुराने कानूनों का दुरुपयोग हुआ होगा, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि सही तरीके से चली आ रही वक्फ संपत्तियों की कानूनी मान्यता ही खत्म कर दी जाए।
सरकार ने दी सफाई- वक्फ का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जवाब में कहा कि वक्फ का रजिस्ट्रेशन पहले भी अनिवार्य था और आज भी है। उन्होंने कहा कि किसी वक्फ मुतवल्ली को जेल तभी भेजा जाएगा जब जानबूझकर पंजीकरण से बचा जाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि कानून में स्पष्ट है कि वक्फ बनाने वाले व्यक्ति को पिछले पांच वर्षों से इस्लाम धर्म का पालन करने वाला होना चाहिए—इसमें किसी की धार्मिक पहचान की मनमानी जांच नहीं की जा रही है।
ने मामले की गहराई को देखते हुए अगली सुनवाई गुरुवार दोपहर 2 बजे तय की है। अदालत ने संकेत दिए हैं कि वह इस जटिल मुद्दे पर व्यापक संवैधानिक दृष्टिकोण से विचार करेगी।
SC ने मामले की गहराई को देखते हुए अगली सुनवाई गुरुवार दोपहर 2 बजे तय की है। अदालत ने संकेत दिए हैं कि वह इस जटिल मुद्दे पर व्यापक संवैधानिक दृष्टिकोण से विचार करेगी।