ये वो इतिहास है जिसे आज तक आप को कभी बताया नहीं गया था. उस कलम का दोष है ये जिसने नीलाम मन से और बिकी स्याही से अंग्रेज अफसरों के नामों के आगे आज तक सर लगाया है. और देश के क्रांतिकारियों को अपराधी तक लिखा स्वतंत्र भारत में.. इतना ही नहीं उन्होंने देश को ये जानने ही नही दिया की उनके लिए सच्चा बलिदान किस ने दिया और कब दिया है. यह देश को अनंत काल तक पीड़ा पहुंचाने वाला धोखा है. उन्हीं क्रांतिकारियों में से एक थे आजाद हिन्द फौज के जांबाज सैनिक ज्ञानसिंह बिष्ट जी. आज महान क्रांतिकारी ज्ञानसिंह बिष्ट जी को उनके बलिदान दिवस पर बारम्बार नमन करते हुए उनके गौरवगान को सदा सदा के लिए अमर रखने का संकल्प सुदर्शन परिवार लेता है.
ज्ञान सिंह बिष्ट जी का जन्म सन् 1914 में चमोली जनपद के बंडपट्टी के खंडूडी गांव में हुआ था. उनके पिता का नाम दयाल सिंह था. वह 12 सितम्बर, 1932 को रायल गढ़वाल रेजीमेंट में भर्ती हुए थे. जब मलाया में भारतीय फौज के सैनिकों को मिलाकर आजाद हिन्द फौज की स्थापना की गई, तो नेताजी ने इन्हें सेकेण्ड लेफ्टिनेंट का पद दिया था. बता दें कि सुभाष चन्द्र बोस जी ने उन्हें नेहरू ब्रिगेड टुकड़ी का कमाण्डर बनाया था.
नेहरू ब्रिगेड को इरावदी के मोर्चे पर लगाया गया था. वहीं 16 मार्च, 1945 को इस टुकड़ी ने ‘सादे पहाड़ी के युद्ध’ में अंग्रेजों को पराजित किया था. जिसके बाद अगले दिन 17 मार्च को अंग्रेजों ने ज्ञान सिंह जी की टुकड़ी पर हमला किया. ज्ञान सिंह जी की टुकड़ी में मात्र 98 व्यक्ति थे. साथ ही उनके पास कोई भारी अथवा आधुनिक मशीनगनें भी नहीं थी. केवल राइफल्स के सहारे इस टुकड़ी ने यह युद्ध लड़ा था. शत्रु दल की ओर से लगातार इन लोगों पर मशीन गन और गोला बारूद से हमला किया जा रहा था.
बता दें कि ज्ञान सिंह जी ने अपने सैनिकों के साथ अंग्रेजों पर हमला कर दिया. लेफ्टिनेंट बिष्ट जी के पास अपने मुख्यालय पर संदेश भेजने का कोई संचार साधन भी नहीं था. लेफ्टिनेंट बिष्ट जी ने अपने सैनिकों से कहा कि वो शत्रुओं को मारते हुए ही मृत्यु का वरण करें. लेफ्टिनेंट बिष्ट जी सबसे आगे और टुकड़ी उनका अनुसरण करते हुए उनके पीछे थी. ‘भारत माता की जय’ और ‘नेता जी अमर रहें’ के उद्घोष के साथ वे सभी शत्रुओं पर कुद पड़े. उन सभी ने शत्रु दल की सेना पर हमला बोल दिया.
यह युद्ध दो घंटों तक चला था और इसमें 40 भारतीय जवानों ने अपने प्राणों की आहुति दी थी. लेकिन देश के वीरों ने चौगुने शत्रुओं को मार गिराया था. लेफ्टिनेंट बिष्ट जी और उनकी बची हुई टुकड़ी के आगे शत्रु टिक नहीं पा रहे थे. लेकिन इसी बीच शत्रु पक्ष की ओर से एक गोली चलाई गई जो कि लेफ्टिनेंट बिष्ट जी के माथे में लगी. जयहिंद का नारा लगाते हुए वे वहीं जमीन पर गिर गए. उन्होंने वहीं अपने प्राण त्याग दिए.
लेफ्टिनेंट बिष्ट जी ने बलिदान देते हुए उस महत्वपूर्ण सामरिक केन्द्र की रक्षा की. आज महान क्रांतिकारी ज्ञान सिंह बिष्ट जी को उनके बलिदान दिवस पर बारम्बार नमन करते हुए उनके गौरवगान को सदा सदा के लिए अमर रखने का संकल्प सुदर्शन परिवार लेता है.