भगत सिंह के साथी क्रांतिकारी व मजदूरों के मसीहा अजय कुमार घोष जी जिनका जन्म 20 फ़रवरी 1909 को मिहजम में हुआ. जहां अजय नाम की एक नदी है. उनके बाबा ने उस नदी के नाम पर ही उनका नाम अजय रख दिया था. अजय घोष के पिता का नाम शचीन्द्र नाथ घोष पेशे से डाक्टर थे और माँ का नाम सुधान्शु बाला था. अजय चार भाई और दो बहन थे. इन्होंने इलाहाबाद से बीएससी पास किया था. वह अभी स्कूल में ही पढ़ रहे थे, उनकी मुलाकात भगत सिंह से हुई. उन्होंने अंग्रेजी सरकार को सशस्त्र क्रान्ति के जरीए उखाड़ फेंकने के लिए हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन बनाई.
अजय कुमार घोष जी हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकलन एसोसिएशन के सक्रिय सदस्य रहे तथा 1928 ई. में सरदार भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु एवं बटुकेश्वर दत्त के साथ कारावास गए एवं लाहौर काण्ड में इन्हें भी अभियुक्त के रूप में सज़ा दी गई. 1933 ई. में इन्होंने कम्युनिस्ट पार्टी से स्वयं को जोड़ लिया तथा 1951 ई. में इन्हें इसका महासचिव निर्वाचित किया गया. 1934, ई. में इन्हें सीपीआई का केन्द्रीय कमेटी सदस्य और 1936 में पोलितब्यूरो सदस्य निर्वाचित किया गया. 1951 ई. में इन्हें इसका महासचिव निर्वाचित किया गया.
अजय घोष विचाराधीन कैदी के रूप में जेल में रहने के कारण कम्युनिस्ट विचारों के सम्पर्क में आए. 1931 की कराची कांग्रेस में उनका सुभाषचंद्र बोस से भी परिचय हुआ. फिर भी उनके ऊपर सबसे अधिक प्रभाव कम्युनिष्ट नेता श्रीनिवास सर देसाई का पड़ा और वे भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी में सम्मिलित हो गये. 1936 में अजय घोष कम्युनिष्ट पार्टी की पोलितब्यूरो के सदस्य बने और 1951 से 1952 तक पार्टी जनरल सेक्रेटरी रहे. वे पार्टी के प्रमुख पत्र 'दि नेस्शनल फ्रंट' के संपादकीय मंडल में भी थे और उन्होंने कई पुस्तिकाएं भी लिखीं.
अजय कुमार घोष सन् 1951 में कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव बनाए गए और 13 जनवरी 1962 तक मृत्यु पर्यंत उसी पद पर रहे कम उस पार्टी के सिद्धांतों का प्रचार करने के निमित्त पार्टी के “न्यू एज” मासिक के संपादक भी रहे और पार्टी के अंदर संकटों के अवसरों पर अनेक बार “चिकित्सा के लिए” सोवियत रूस की यात्रा भी की थी .