जैन शब्द का उद्गम ‘जिन’ शब्द से हुआ है, जिसका अर्थ है - विजेता। सनातन धर्म का यह पंत अनादि काल से अस्तित्व में माना जाता है और विश्व के प्राचीनतम धर्मों में इसकी गणना की जाती है। जैन ग्रंथों के अनुसार, यह एक शाश्वत धर्म है, जो आज भी अपनी परंपराओं और मूल्यों के साथ जीवित है।
जैन समाज का सबसे बड़ा पर्व
हिंदू धर्म में दिवाली, होली जैसी पर्वों की भांति जैन समुदाय में महावीर जयंती को अत्यंत श्रद्धा और उल्लास से मनाया जाता है। यह पर्व जैन धर्म के 24वें और अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस साल, 10 अप्रैल 2025 यानी आज महावीर जयंती मनाई जा रही है। चैत्र शुक्ल त्रयोदशी को मनाए जाने वाले इस पर्व में भव्य शोभा यात्राओं, प्रभात फेरियों और कलशाभिषेक का आयोजन किया जाता है। मंदिरों के शिखरों पर ध्वज फहराए जाते हैं और श्रद्धालु धर्म के प्रति अपनी आस्था व्यक्त करते हैं।
महावीर जयंती: एक आध्यात्मिक उत्सव
महावीर जयंती केवल एक त्यौहार नहीं, बल्कि अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह, ब्रह्मचर्य और अस्तेय जैसे जीवन मूल्यों की पुनः स्मृति का दिन है। यह दिन जैन धर्म के अनुयायियों के लिए आत्म-शुद्धि, ध्यान, पूजा, और दान का प्रतीक है। दुनियाभर में जैन समाज इस पावन अवसर पर विशेष आराधनाएं करता है और मानवता के कल्याण के लिए सामूहिक प्रयास करता है।
महावीर स्वामी का जीवन परिचय
भगवान महावीर का जन्म बिहार के मुजफ्फरपुर के निकट वैशाली जिले के कुंडलपुर गांव में एक राजपरिवार में हुआ था। बचपन में उनका नाम वर्धमान था। उनके पिता राजा सिद्धार्थ और माता रानी त्रिशला थीं। विलासितापूर्ण जीवन को त्यागकर उन्होंने संन्यास ग्रहण किया और आत्मज्ञान की खोज में निकल पड़े। कठिन तपस्या और ध्यान के बाद उन्होंने परम ज्ञान प्राप्त किया और जीवनभर जैन धर्म का प्रचार-प्रसार किया।
कठोर तपस्या से मिली आत्मज्ञान की ज्योति
भगवान महावीर ने 12 वर्षों तक कठोर तपस्या की। इस दौरान उन्होंने मौन साधना अपनाई, इंद्रियों पर नियंत्रण साधा और आत्मज्ञान प्राप्त किया। उनका जीवन त्याग, तपस्या और संयम का उत्कृष्ट उदाहरण है। आज भी उनके उपदेश दुनियाभर में लोगों को संयमित और नैतिक जीवन जीने की प्रेरणा देते हैं।
पंच महाव्रत: जीवन का पथ प्रदर्शक
महावीर स्वामी ने समाज के लिए पांच मुख्य सिद्धांत बताए, जिन्हें 'पंच महाव्रत' कहा जाता है:
अहिंसा (Non-violence)
सत्य (Truthfulness)
अस्तेय (Non-stealing)
ब्रह्मचर्य (Celibacy)
अपरिग्रह (Non-possessiveness)
इन सिद्धांतों पर चलना ही जैन धर्म का मूल आधार है। महावीर स्वामी का संदेश स्पष्ट है – मोक्ष और आत्मकल्याण का मार्ग त्याग, संयम और आत्म-अनुशासन से होकर ही गुजरता है, जिसमें किसी भी जीवात्मा की हिंसा शामिल नहीं है।