मध्यप्रदेश बाल संरक्षण अधिकार आयोग की सदस्य डॉ. निवेदिता रतलाम पहुंचकर खाचरौद रोड़ स्थित दारुल उलूम आयशा सिद्दिका मदरसे का निरिक्षण किया। उन्होंने पाया कि मदरसे में एक ही कमरें में बच्चों को ठूस-ठूस कर रखा था। यह सब देखकर आयोग की सदस्य नाराज हो गई और बच्चियों से बात की। डॉ. निवेदिता ने अनियमितता पाने पर जिम्मेदार लोगों को फटकार लगाई।
मदरसा अध्यक्ष से जब मदरसा बोर्ड की मान्यता के कागजात मागें गए, तो अध्यक्ष या समिति सदस्य कोई जवाब नहीं दे पाए। आयोग सदस्य की नाराजगी के दो दिन बाद डीएम द्वारा मदरसे की जांच के लिए टीम भेजी गई। एडीएम शालिनी श्रीवास्तव, एसडीओपी, शिक्षा अधिकारी, महिला बाल विकास अधिकारी द्वारा मदरसा पहुँचकर जांच की, जिसमे मदरसा बोर्ड की मान्यता नहीं मिली।
बाल संरक्षण आयोग की टीम रतलाम जिला मुख्यालय स्थित अवैध संचालित मदरसे पर पहुंची। यहां पर 5 से लेकर 15 साल तक की बच्चियों को अलग-अलग कमरों में ठूंस-ठूंस कर रखा पाया। इनमें से एक बच्ची को जिसे तेज बुखार भी था, जो नीचे चटाई के बगैर फर्श पर दर्द से कराहती पायी गई। मध्य प्रदेश राज्य बाल संरक्षण आयोग (SCPCR) जब अचानक यहां पहुंचा तो माहौल देखकर दंग रह गया।
SCPCR की सदस्य डॉ. निवेदिता शर्मा जैसे ही बच्चियों से मिलने मदरसा 'दारुल उलूम आयशा सिद्दीका लिलबिनात' के भीतर कक्ष में गईं, तो बच्चियों की हालत देखकर एक तरफ उन्हें जिम्मेदार लोगों पर गुस्सा आया, तो दूसरी तरफ खुद वे भावुक हो गईं। उन्होंने मदरसा संचालकों से पूछा कि, "मेरे एमपी की बेटियों को भेड़-बकरियों की तरह ऐसे कैसे रखा?", जिसका जिम्मेवार लोगों के पास कोई जवाब नहीं था।
अवैध चल रहे मदरसे में कई बच्चियां आधुनिक शिक्षा से पूरी तरह दूर पायी गईं, यह शिक्षा का अधिकार अधिनियम (आरटीई) का सीधा उल्लंघन है। इसमें कानून देश के प्रत्येक 6 वर्ष से 14 वर्ष तक की आयु के बच्चे को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा देने का प्रावधान देता है। इस मदरसे में बच्चियों को इस्लामिक शिक्षा देने के नाम पर आधुनिक शिक्षा से दूर रखा जाता था। कुल 100 बच्चियों में से केवल 40 बच्चियां ही पढ़ाई कर रही हैं।