सुदर्शन के राष्ट्रवादी पत्रकारिता को सहयोग करे

Donation

27 अक्टूबर : जन्मजयंती वीर बंदा बैरागी जी... जिनके बेटे को मारकर कलेजा मुंह में ठूस दिया, फिर हाथी से कुचलवा डाला, लेकिन नहीं बने “मुसलमान”

आज उस वीर बलिदानी के जन्मदिवस पर सुदर्शन परिवार उन्हें कोटि-कोटि नमन करता है और उनकी शौर्य गाथा को समय-समय पर जनमानस के आगे लाते रहने का संकल्प भी दोहराता है.

Sumant Kashyap
  • Oct 27 2024 8:00AM

इनकी चर्चा करते तो खतरे में पड़ जाते उनके स्वघोषित धर्मनिरपेक्षता के नकली सिद्धांत. इनके बारे में बताते तो उनके आका हो जाते नाराज जिनकी चाटुकारिता के उन्हें पैसे मिलते थे. इनका सच दिखाते तो इतिहास काली स्याही का नहीं बल्कि स्वर्णिम रंग में होता. इनका जिक्र करते तो समाज मे न तो लव जिहाद होता और न ही धर्मांतरण और ये सब न होता तो उनकी दुकानदारी न चलती. 

भारत के इतिहास को विकृत करने वाले चाटुकार इतिहासकारो द्वारा किए गए पाप का नतीजा है कि धर्म के लिए सर्वोच्च बलिदान देने वाले बाबा बन्दा सिंह बैरागी जी का आज जन्मजयंती है, लेकिन इस वीर बलिदानी को भारतीय में बहुत कम लोग जानते हैं. आज उस वीर बलिदानी के जन्मदिवस पर सुदर्शन परिवार उन्हें कोटि-कोटि नमन करता है और उनकी शौर्य गाथा को समय पर जनमानस के आगे लाते रहने का संकल्प भी दोहराता है.

जानकारी के लिए बता दें कि बन्दा बैरागी का जन्म 27 अक्टूबर, 1670 को ग्राम तच्छल किला, पुंछ में श्री रामदेव जी के घर में हुआ. उनका बचपन का नाम लक्ष्मणदास जी था. युवावस्था में शिकार खेलते समय उन्होंने एक गर्भवती हिरणी पर तीर चला दिया. इससे उसके पेट से एक शिशु निकला और तड़पकर वहीं मर गया. यह देखकर उनका मन खिन्न हो गया. उन्होंने अपना नाम माधोदास रख लिया और घर छोड़कर तीर्थयात्रा पर चल दिये. अनेक साधुओं से योग साधना सीखी और फिर नान्देड़ में कुटिया बनाकर रहने लगे. 

बता दें कि गुरु गोविन्दसिंह जी माधोदास जी की कुटिया में आये. उनके चारों पुत्र बलिदान हो चुके थे. उन्होंने इस कठिन समय में माधोदास जी से वैराग्य छोड़कर देश में व्याप्त इस्लामिक आतंक से जूझने को कहा. इस भेंट से माधोदास का जीवन बदल गया. गुरुजी ने उसे बन्दा बहादुर नाम दिया. फिर पांच तीर, एक निशान साहिब, एक नगाड़ा और एक हुक्मनामा देकर दोनों छोटे पुत्रों को दीवार में चिनवाने वाले सरहिन्द के नवाब से बदला लेने को कहा. 

बाबा बन्दा सिंह बैरागी जी हजारों सिख सैनिकों को साथ लेकर पंजाब की ओर चल दिये. उन्होंने सबसे पहले श्री गुरु तेगबहादुर जी का शीश काटने वाले जल्लाद जलालुद्दीन का सिर काटा. फिर सरहिन्द के नवाब वजीरखान का वध किया. जिन हिन्दू राजाओं ने मुगलों का साथ दिया था, बन्दा बहादुर जी ने उन्हें भी नहीं छोड़ा. इससे चारों ओर उनके नाम की धूम मच गयी. उनके पराक्रम से भयभीत मुगलों ने दस लाख फौज लेकर उन पर हमला किया और विश्वासघात से 17 दिसम्बर, 1715 को उन्हें पकड़ लिया. उन्हें लोहे के एक पिंजड़े में बन्दकर, हाथी पर लादकर सड़क मार्ग से दिल्ली लाया गया.

उनके साथ हजारों सिख सैनिक भी कैद किये गये थे. इनमें बाबा बन्दा सिंह बैरागी के वे 740 साथी भी थे, जो प्रारम्भ से ही उनके साथ थे. युद्ध में वीरगति पाए सिखों के सिर काटकर उन्हें भाले की नोक पर टाँगकर दिल्ली लाया गया. रास्ते भर गर्म चिमटों से बन्दा बैरागी जी का माँस नोचा जाता रहा. काजियों ने बाबा बन्दा सिंह बैरागी जी और उनके साथियों को मुसलमान बनने को कहा; पर सबने यह प्रस्ताव ठुकरा दिया. दिल्ली में आज जहां हार्डिंग लाइब्रेरी है, वहाँ 7 मार्च, 1716 से प्रतिदिन सौ वीरों की हत्या की जाने लगी. 

वहीं, एक दरबारी मुहम्मद अमीन ने पूछा – तुमने ऐसे बुरे काम क्यों किये, जिससे तुम्हारी यह दुर्दशा हो रही है ? बाबा बन्दा सिंह बैरागी जी ने सीना फुलाकर सगर्व उत्तर दिया – मैं तो प्रजा के पीड़ितों को दण्ड देने के लिए परमपिता परमेश्वर के हाथ का शस्त्र था. क्या तुमने सुना नहीं कि जब संसार में दुष्टों की संख्या बढ़ जाती है, तो वह मेरे जैसे किसी सेवक को धरती पर भेजता है. बाबा बन्दा सिंह बैरागी जी से पूछा गया कि वे कैसी मौत मरना चाहते हैं ? बाबा बन्दा सिंह बैरागी जी ने उत्तर दिया, मैं अब मौत से नहीं डरता; क्योंकि यह शरीर ही दुःख का मूल है. यह सुनकर सब ओर सन्नाटा छा गया. भयभीत करने के लिए उनके पांच वर्षीय पुत्र अजय सिंह जी को उनकी गोद में लेटाकर बाबा बन्दा सिंह बैरागी जी के हाथ में छुरा देकर उसको मारने को कहा गया.

बता दें कि बाबा बन्दा सिंह बैरागी जी ने इससे इन्कार कर दिया. इस पर जल्लाद ने उस बच्चे के दो टुकड़ेकर उसके दिल का मांस बाबा बन्दा सिंह बैरागी जी के मुँह में ठूंस दिया. पर वे तो इन सबसे ऊपर उठ चुके थे. गरम चिमटों से माँस नोचे जाने के कारण उनके शरीर में केवल हड्डियाँ शेष थी. इतनी यातना देने के बाद  8 जून, 1716 को उस वीर को हाथी से कुचलवा दिया गया. इस प्रकार बन्दा वीर बैरागी जी अपने नाम के तीनों शब्दों को सार्थक कर बलिपथ पर चल दिये. वहीं, आज उस वीर बलिदानी के जन्मदिवस पर सुदर्शन परिवार उन्हें कोटि-कोटि नमन करता है और उनकी शौर्य गाथा को समय पर जनमानस के आगे लाते रहने का संकल्प भी दोहराता है.


सहयोग करें

हम देशहित के मुद्दों को आप लोगों के सामने मजबूती से रखते हैं। जिसके कारण विरोधी और देश द्रोही ताकत हमें और हमारे संस्थान को आर्थिक हानी पहुँचाने में लगे रहते हैं। देश विरोधी ताकतों से लड़ने के लिए हमारे हाथ को मजबूत करें। ज्यादा से ज्यादा आर्थिक सहयोग करें।
Pay

ताज़ा खबरों की अपडेट अपने मोबाइल पर पाने के लिए डाउनलोड करे सुदर्शन न्यूज़ का मोबाइल एप्प

Comments

संबंधि‍त ख़बरें

ताजा समाचार