देश में आज यानी 26 नवंबर को संविधान दिवस मनाया जाता है। भारत का संविधान एक राष्ट्र के रूप में हमें एक सूत्र में पिरोने की शक्ति देता है। यह न केवल हमारी सामूहिक शक्ति का प्रतीक है, बल्कि हर नागरिक को उसके अधिकार और कर्तव्यों का बोध कराता है। आज के समय में इसकी मूल भावना को जन-जन तक पहुंचाने की जरूरत पहले से कहीं अधिक है।
संविधान और डॉ. आंबेडकर का योगदान
भारतीय संविधान का निर्माण डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर की सोच और नेतृत्व के बिना संभव नहीं था। उन्होंने इस बात का विशेष ध्यान रखा कि समाज के अंतिम पायदान पर खड़ा व्यक्ति भी राष्ट्र निर्माण में अपनी भूमिका निभा सके। डॉ. आंबेडकर के अनुसार, भारतीय संविधान ‘गौरव’ और ‘एकता’ के मूल सिद्धांतों को साकार करता है।
संविधान निर्माण: कठिन परिश्रम का उदाहरण
टी.टी. कृष्णाम्माचारी का भाषण
कृष्णाम्माचारी ने सदन का ध्यान आकृष्ट कर कहा, "सदन को शायद यह मालूम हुआ होगा कि आपके चुने हुए 7 सदस्यों में से एक ने इस्तीफा दे दिया, उनकी जगह रिक्त ही रही। एक सदस्य की मृत्यु हो गई, उनकी जगह भी रिक्त ही रही। एक सदस्य अमेरिका चले गए, अतः उनकी भी जगह खाली रही। चौथे सदस्य रियासतदारों संबंधी काम-काज में व्यस्त रहे, इसलिए वे सदस्य होकर भी नहीं के बराबर थे। दो-एक सदस्य दिल्ली से दूरी पर थे। उनका स्वास्थ्य बिगड़ने से वे भी उपस्थित नहीं रह सके।
आखिरकार यह हुआ कि संविधान बनाने का सारा बोझ अकेले डॉ. आंबेडकर पर ही पड़ा। इस स्थिति में उन्होंने जिस पद्धति से यह काम पूरा किया, उसके लिए वे निस्संदेह आदर के पात्र हैं। मैं निश्चय के साथ आपको यह बताना चाहता हूं कि डॉ. आंबेडकर ने अनेक कठिनाइयों के बाद भी मार्ग निकालकर यह कार्य पूरा किया, जिसके लिए हम उनके हमेशा ऋणी रहेंगे।" (संविधान सभा की बहस, खंड-7, पृष्ठ-231)
संविधान निर्माण में आंबेडकर के योगदान का वर्णन संविधान सभा के सदस्य टी.टी. कृष्णाम्माचारी ने अपने भाषण में किया। उन्होंने कहा कि संविधान निर्माण का सारा भार डॉ. आंबेडकर के कंधों पर था। इसके बावजूद उन्होंने इस कार्य को कठिनाइयों के बीच पूरा किया। यह उनकी दूरदर्शिता और दृढ़ संकल्प का प्रमाण है।
भारतीयता और संविधान
संविधान केवल कानूनी दस्तावेज नहीं, बल्कि भारतीय समाज के मूल विचारों और मूल्यों का प्रतिबिंब है। इसकी प्रस्तावना हमारे गणराज्य का लक्ष्य निर्धारित करती है: न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व। डॉ. आंबेडकर ने इसे भारतीयता का आधार बताते हुए कहा था कि हमने केवल समानता की बात नहीं की, बल्कि करुणा, आत्मीयता और परस्पर सहयोग को भी महत्व दिया है।
सकारात्मक कार्रवाई: भारतीय संविधान की विशेषता
भारतीय संविधान की एक अनूठी विशेषता यह है कि यह वंचित वर्गों के उत्थान के लिए सकारात्मक प्रयासों का प्रावधान करता है। यह केवल अधिकारों की बात नहीं करता, बल्कि उन वर्गों की मदद करता है जो कमजोर और पिछड़े हुए हैं।
बंधुत्व: राष्ट्रीय एकता की आत्मा
भावनात्मक एकता का महत्व
राष्ट्र केवल भूमि, वंश या संस्कृति से नहीं बनता। यह देशवासियों के बीच भावनात्मक जुड़ाव से बनता है। बंधुत्व की भावना इस जुड़ाव को मजबूत करती है। डॉ. आंबेडकर द्वारा संविधान में दी गई उद्देशिका इसी भावनात्मक एकता को सुनिश्चित करती है।
भारतीय संविधान: लोकतंत्र की आत्मा
संविधान भारतीय लोकतंत्र की आत्मा है। इसके माध्यम से हम नए भारत का निर्माण कर सकते हैं। यह कार्य केवल संविधान के मूल्यों को अपनाकर और इन्हें जीवन में उतारकर ही संभव है।
आपातकाल: संविधान पर सबसे बड़ा हमला
भारत के लोकतंत्र में संविधान पर सबसे बड़ा आघात 25 जून, 1975 को आपातकाल लागू होने के साथ हुआ। इस दौरान निजी स्वार्थों के लिए संविधान में कई बदलाव किए गए। 42वें संशोधन ने इसे "इंदिरा का संविधान" का रूप दे दिया।
संविधान के अधिकारों पर अंकुश
आपातकाल के दौरान, न्यायपालिका से आपातकाल की समीक्षा का अधिकार छीन लिया गया। 39वें संशोधन ने प्रधानमंत्री के चुनाव को न्यायालय की जांच से बाहर कर दिया। इन संशोधनों ने संविधान की आत्मा को क्षति पहुंचाई।
भारतीय संविधान केवल एक दस्तावेज नहीं, बल्कि राष्ट्र की आत्मा है। यह हमारे लोकतंत्र और राष्ट्रीय एकता का आधार है। इसे संरक्षित रखना और इसकी भावना को अपनाना हमारा सामूहिक कर्तव्य है।