हमारे देश में ऐसे अनेकों महापुरुषों ने जन्म लिया है, जिनका नाम इतिहास के पन्नों में कहीं गुम हो गया है. हमारे देश में रह कर भी कई ऐसे लोग थे जिन्होंने भारत के इतिहास से इन लोगों को मिटाने की कई कोशिशें की. इन लोगों ने उन सभी क्रांतिकारियों और महापुरुषों के नाम को छिपाने और सदा के लिए मिटाने की कोशिश की. उन लाखों महान क्रांतिकारियों में से एक थे महात्मा ज्योति गोविंदराव फुले जी.
भारत के इतिहास को विकृत करने वाले लोग अगर ज्योतिबा फुले जी के बारे में नई पीढ़ी को बताते तो आज भारत का इतिहास और भी स्वर्णिम रंग में होता. आज ज्योतिबा फुले जी की पुण्यतिथि पर सुदर्शन परिवार उन्हें कोटि-कोटि नमन करते हुए, उनकी गाथा को समय-समय पर जनमानस के आगे लाते रहने का संकल्प दोहराता है.
ज्योतिबा फुले जी का जन्म 11 अप्रैल, 1827 को महाराष्ट्र में हुआ था. वे 19वीं सदी के दौरान एक प्रमुख समाज सुधारक, विचारक और कार्यकर्ता थे. उन्होंने अपना जीवन दमनकारी जाति व्यवस्था को चुनौती देने और उसे खत्म करने तथा हाशिए पर पड़े समुदायों, खास तौर पर दलितों और महिलाओं के अधिकारों की वकालत करने के लिए समर्पित कर दिया.
फुले जी ने 1873 में सत्यशोधक समाज (सत्य के साधकों का समाज) की स्थापना की, जिसका उद्देश्य शोषितों का उत्थान करना और उन्हें शिक्षा और सामाजिक सशक्तीकरण प्रदान करना था. उन्होंने महिलाओं की शिक्षा की पुरजोर वकालत की और 1848 में भारत में लड़कियों के लिए पहला स्कूल खोलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. फुले के प्रगतिशील विचारों और अथक प्रयासों ने भारत में सामाजिक समानता और न्याय की नींव रखी है.
ज्योतिबा फुले जी ने सावित्रीबाई फुले जी से विवाह किया, जो स्वयं एक क्रांतिकारी महिला थीं और जिन्होंने उनके सामाजिक सुधार कार्यों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. सावित्रीबाई फुले जी भारत की पहली महिला शिक्षिका थीं और महिलाओं के अधिकारों और शिक्षा की प्रबल समर्थक थीं. उन्होंने पुणे में लड़कियों के लिए पहला स्कूल खोला, सामाजिक मानदंडों को तोड़ते हुए महिला सशक्तिकरण का मार्ग प्रशस्त किया.
बचपन और शिक्षा
ज्योतिबा फुले जी का जन्म ऐसे समय में हुआ जब समाज में जाति व्यवस्था और अन्याय की गहरी जड़ें थीं. एक साल की उम्र में ही उनकी माता का देहांत हो गया, जिसके बाद उनकी परवरिश एक बाई ने की. प्रारंभिक शिक्षा उन्होंने मराठी में प्राप्त की, लेकिन आर्थिक कठिनाइयों के कारण पढ़ाई बीच में रुक गई. 21 वर्ष की आयु में उन्होंने अंग्रेजी में सातवीं कक्षा तक की पढ़ाई पूरी की. शिक्षा के प्रति उनकी गहरी रुचि ने उन्हें आगे चलकर समाज सुधार की ओर प्रेरित किया.
महिलाओं और दलित वर्ग के लिए शिक्षा का प्रयास
ज्योतिबा और उनकी पत्नी सावित्रीबाई फुले जी ने महिलाओं और दलित वर्ग की शिक्षा को प्राथमिकता दी. 1848 में, उन्होंने लड़कियों के लिए पहला स्कूल खोला. शिक्षकों की कमी के कारण सावित्रीबाई फुले जी ने खुद शिक्षिका की भूमिका निभाई. हालांकि समाज के उच्च वर्ग के लोगों को उनका यह कार्य पसंद नहीं आया, जिसके चलते उनके पिता ने उन्हें घर से निकाल दिया. लेकिन इससे उनके प्रयासों में कमी नहीं आई, और उन्होंने अन्य स्थानों पर स्कूल का संचालन.आज ज्योतिबा फुले जी की पुण्यतिथि पर सुदर्शन परिवार उन्हें कोटि-कोटि नमन करते हुए, उनकी गाथा को समय-समय पर जनमानस के आगे लाते रहने का संकल्प दोहराता है.