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मणिपुरी बुनाई परंपरा का का पुनरुद्धार, भारतीय सेना द्वारा महिलाओं के सशक्तिकरण और सांस्कृतिक धरोहर के संरक्षण की दिशा में एक नई शुरुआत

Manipuri Weaving Industry: भारतीय सेना और आसिम फाउंडेशन की पहल से मणिपुरी बुनाई उद्योग का पुनरुद्धार संघर्ष से समृद्धि की ओर बड़ा कदम।

Ravi Rohan
  • Jan 28 2025 7:39PM

मणिपुर की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर उसके प्रसिद्ध हस्तनिर्मित वस्त्रों में बसी हुई है। सदियों से, राज्य के कुशल कारीगर पारंपरिक तकनीकों को आधुनिकता के साथ मिलाकर बेहतरीन वस्त्रों का निर्माण करते आए हैं। विशेष रूप से फने, मोइरंगफी और वांगखेई जैसे वस्त्रों के लिए प्रसिद्ध मणिपुरी बुनाई उद्योग न केवल इस क्षेत्र की कारीगरी को प्रदर्शित करता है, बल्कि इसके इतिहास, मिथक और दैनिक जीवन की आत्मा को भी समाहित करता है।

 यह उद्योग हजारों कारीगरों के लिए आजीविका का साधन है और स्थानीय अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान करता है। अपनी अद्वितीय डिज़ाइन, जीवंत रंगों और असाधारण गुणवत्ता के कारण, मणिपुरी वस्त्रों को वैश्विक पहचान मिली है। यह प्राचीन कला, जो पीढ़ियों से चली आ रही है, अब भी फल-फूल रही है, महिलाओं और हाशिए पर रहे समुदायों को सशक्त बना रही है, साथ ही राज्य की सांस्कृतिक धरोहर को बनाए रखने का काम कर रही है।

मणिपुरी बुनाई की परंपरा: 2000 वर्षों का सफर

लगभग 2,000 वर्षों से मणिपुरी बुनाई परंपरा ने सिल्क रूट के माध्यम से विभिन्न संस्कृतियों का प्रभाव प्राप्त किया है। राज्य के कारीगरों ने जटिल पैटर्न, रंग और तकनीकों में महारत हासिल की है, जिससे वे ऐसे वस्त्र तैयार करते हैं जो मनिपुर के समृद्ध इतिहास का प्रतिनिधित्व करते हैं। मेटेई साम्राज्य के भव्य शाही वस्त्रों से लेकर गांवों की साधारण रचनाओं तक, मनिपुरी बुनाई उद्योग ने अपने लोगों की दृढ़ता, रचनात्मकता और आत्मा को दर्शाया है। सदियों पहले, यह उद्योग मणिपुर के मोइरांग साम्राज्य से शुरू हुआ था। "मोइरांग" शब्द, जो मेटेई भाषा का हिस्सा है, का अर्थ है "विशेष पैटर्न", जो मनिपुरी वस्त्रों में उपयोग होता है और यह पैटर्न साड़ी, घूंघट, शॉल आदि में क्रॉस और त्रिकोण के रूप में दिखाई देता है।

संघर्ष और औद्योगिकीकरण के प्रभाव: एक संकट की शुरुआत

1990 के दशक में, जब मणिपुर में उग्रवाद का सिलसिला बढ़ा और औद्योगिकीकरण की प्रक्रिया शुरू हुई, तब बुनाई उद्योग एक संकट से गुजरने लगा। स्थानीय दुकानें अब व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में बदल गई थीं जो मशीन से बने सिंथेटिक धागे बेचने लगी थीं। महिलाएं, जो पहले पारंपरिक लकड़ी के हाथकरघों पर हस्तनिर्मित वस्त्र तैयार करती थीं, अब यह काम नहीं कर रही थीं। और 25 वर्षों बाद, जब मणिपुर उत्तर-पूर्व के संघर्षग्रस्त क्षेत्र में एक चमकते हुए उदाहरण बनने की ओर अग्रसर था, तो मेइतेई और कुकी समुदायों के बीच जातीय संघर्ष ने स्थिति को और जटिल बना दिया। इस संघर्ष में महिलाएं और निर्दोष बच्चे सबसे अधिक प्रभावित हुए।

भारतीय सेना की पहल: बुनाई परंपरा का पुनर्जीवन

संघर्ष के बीच, भारतीय सेना ने एक अनोखी पहल की शुरुआत की, जिसने मणिपुरी बुनाई की खोती परंपरा को पुनर्जीवित किया। सेना के जवानों को स्थानीय गांववासियों के साथ बातचीत करते समय मणिपुरी संस्कृति और बुनाई के महत्व का एहसास हुआ। इस दौरान, जब स्थानीय लोग सम्मान और आभार के प्रतीक के रूप में पारंपरिक हस्तनिर्मित शॉल देते थे, तो यह विचार आया कि कैसे इस भूली-बिसरी धरोहर को फिर से जीवित किया जाए और स्थानीय महिलाओं को सशक्त बनाया जाए। भारतीय सेना ने 'ऑपरेशन सद्भावना' के तहत, स्थानीय महिलाओं के लिए ट्रोंगलाबी यार्न बैंक की स्थापना की।

आसिम फाउंडेशन और यार्न बैंक: महिला सशक्तिकरण की दिशा में एक कदम

भारतीय सेना ने पुणे स्थित आसिम फाउंडेशन के साथ मिलकर इस परियोजना को आकार दिया। यह फाउंडेशन देश के दूरदराज और संघर्षग्रस्त क्षेत्रों में विकास कार्यों में जुटा हुआ है। इस साझेदारी ने यार्न बैंक को एक कौशल विकास परियोजना के रूप में स्थापित किया, जिससे स्थानीय महिलाओं को हैंडलूम वस्त्र बनाने की अपनी विशेषज्ञता को फिर से पुनर्जीवित करने का अवसर मिला। इस परियोजना के तहत महिलाओं को कच्चा माल, मशीनरी, बुनियादी ढांचा और सभी महिलाओं को मासिक भत्ता दिया गया। आसिम फाउंडेशन ने महिलाओं को व्यवसायी मॉडल की शिक्षा भी दी, जिससे वे इस परियोजना को सफलतापूर्वक चला सकें।

नई दिशा: सांस्कृतिक और व्यवसायिक नवाचार

यह परियोजना बुनाई की प्राचीन कला, सांस्कृतिक धरोहर और नवाचार का अद्वितीय संगम है। इससे मणिपुरी कारीगरों को राष्ट्रीय स्तर पर अपनी कृतियों को बेचने का मंच मिलेगा और स्थानीय बुनाई संस्कृति को पुनर्जीवित किया जा सकेगा। कारीगरों द्वारा कमाए गए लाभ से कच्चे माल की खरीदारी और भविष्य के लिए एक आत्मनिर्भर मॉडल तैयार किया जाएगा।

समाज में स्थिरता और सामूहिक एकता का निर्माण

यह पहल भारतीय सेना और स्थानीय गांववासियों के बीच सहयोग का प्रतीक बन चुकी है। बुनाई के कपड़ों में बुने गए जीवंत पैटर्न केवल धैर्य और साहस का ही नहीं, बल्कि समुदाय में एकता के धागे का भी प्रतीक हैं। यह परियोजना यह साबित करती है कि सबसे अप्रत्याशित स्थानों पर भी भारतीय सेना और स्थानीय लोगों के बीच गठबंधन एक उज्जवल भविष्य बना सकता है।


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