ये भारत की तथाकथित सेकुलर राजनीति भले ही कुछ करवाये अन्यथा वीर वीरांगनाओं ने अपना कर्तव्य निभा ही दिया था.नारियों के लिए जिस देश मे आदर्श बना कर टेरेसा को प्रस्तुत किया जाता रहा उसमें वीरांगना रानी अवंतीबाई लोधी जी का नाम भी शामिल हो सकता था लेकिन चाटुकार इतिहासकार व नकली कलमकारों ने जो कुछ किया उसकी क्षमा शायद ही समय के पास हो.
वीरांगना रानी अवंतीबाई लोधी जी का जन्म 16 अगस्त 1831 को मध्य प्रदेश के सिवनी जिला ग्राम मनकेहड़ी जमींदार राव जुझार सिंह जी के घर में हुआ था. उनका विवाह रामगढ़ (वर्तमान डिंडोरी) के राजा लक्ष्मण सिंह जी के पुत्र राजकुमार विक्रमादित्य सिंह लोधी जी से हुआ था. उनके दो बच्चे थे, कुंवर अमन सिंह जी और कुंवर शेर सिंह जी था. 1850 में राजा लक्ष्मण सिंह जी की मृत्यु हो गई और राजा विक्रमादित्य जी ने राजगद्दी संभाली था.
जब राजा बीमार हुए तो उनके दोनों बेटे अभी नाबालिग थे. एक रानी के रूप में उन्होंने राज्य मामलों का कुशलतापूर्वक संचालन किया. समाचार सुनकर अंग्रेजों ने नाबालिग पुत्रों के संरक्षक के रूप में रामगढ़ राज्य में "कोर्ट ऑफ वार्ड्स" की कार्रवाई की और राज्य के प्रशासन के लिए शेख सरबराहकर को नियुक्त किया. उन्हें मोहम्मद अब्दुल्ला के साथ रामगढ़ भेज दिया गया.
बता दें कि रानी ने इसे अपना अपमान समझकर सरबराहकारों को रामगढ़ से निष्कासित कर दिया. इसी बीच राजा की मृत्यु हो गई और सारी जिम्मेदारी रानी पर आ गई. उन्होंने राज्य के किसानों को अंग्रेजों के निर्देशों का पालन न करने का आदेश दिया. इस सुधार कार्य से रानी की लोकप्रियता में वृद्धि हुई.
दरअसल, गोंड राजा शंकर शाह की अध्यक्षता में आयोजित विशाल सम्मेलन के आयोजन के लिए प्रचार-प्रसार की जिम्मेदारी रानी अवंतीबाई जी को मिली. रानी ने अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करते हुए पड़ोसी राज्यों के राजाओं और जमींदारों को पत्र के साथ कांच की चूड़ियां भेजीं और पत्र में लिखाया तो मातृभूमि की रक्षा के लिए कमर कस लो या कांच की चूड़ियां पहनकर घर बैठ जाओ, तुम्हें अपने धर्म की शपथ पूरी करनी चाहिए.
जिसने भी यह संदेश पढ़ा वह देश के लिए अपना सब कुछ निछावर करने को तैयार हो गया. रानी की पुकार की गूंज दूर-दूर तक गूंज उठी और योजना के अनुसार, आसपास के सभी राजा अंग्रेजों के विरुद्ध एकजुट हो गए. जब 1857 का विद्रोह हुआ, तो रानी अवंतीबाई जी ने 4000 की सेना खड़ी की और उसका नेतृत्व किया.
अंग्रेजों के साथ उनकी पहली लड़ाई मंडला के पास खैरी गांव में हुई , जहां वह और उनकी सेना ब्रिटिश डिप्टी कमिश्नर वाडिंगटन को हराने में सफल रहीं. और उसकी सेना ऐसी कि उन्हें मंडला से भागना पड़ा. हालांकि, हार से आहत अंग्रेज़ रीवा के राजा की मदद से प्रतिशोध की भावना से वापस आए और रामगढ़ पर हमला कर दिया. रानी अवंतीबाई जी सुरक्षा के लिए देवहरिगढ़ की पहाड़ियों में चली गई. ब्रिटिश सेना ने रामगढ़ में आग लगा दी और रानी पर हमला करने के लिए देवहारगढ़ की ओर रुख किया.
रानी अवंतीबाई जी ने ब्रिटिश सेना से बचने के लिए गुरिल्ला युद्ध का सहारा लिया.हालांकि, जब युद्ध में लगभग निश्चित हार का सामना करना पड़ा, तो उन्होंने 20 मार्च 1858 को अपनी तलवार से खुद को छेदकर मातृभूमि की रक्षा के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया. रानी बालापुर और के बीच सुखी-तलैया नामक स्थान पर वीरगति को प्राप्त हुई. वहीं, आज शौर्य की उस महान प्रतीक वीरांगना रानी अवंतीबाई लोधी जी के बलिदान दिवस पर सुदर्शन परिवार उनको बारंबार नमन करता है और उनकी यशगाथा को सदा सदा के लिए अमर रखने का संकल्प भी दोहराता है.