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नागा साधु: आध्यात्मिक योद्धाओं की अनोखी विरासत

नई दिल्ली। भारतीय संस्कृति के अनूठे प्रतीक नागा साधुओं की परंपरा आज भी उतनी ही जीवंत है जितनी सदियों पहले थी।

Deepika Gupta
  • Jan 18 2025 1:47PM

नई दिल्ली। भारतीय संस्कृति के अनूठे प्रतीक नागा साधुओं की परंपरा आज भी उतनी ही जीवंत है जितनी सदियों पहले थी। सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता सत्यम सिंह राजपूत ने एक विशेष शोध में बताया कि नागा साधुओं का इतिहास केवल आध्यात्मिक नहीं, बल्कि देश की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष का भी जीवंत दस्तावेज है। 

राजपूत के अनुसार, "नागा साधुओं ने मुगलकाल से लेकर ब्रिटिश शासन तक भारतीय धर्म और संस्कृति की रक्षा में अहम भूमिका निभाई है। विशेषकर औरंगजेब के शासनकाल में जब मंदिरों पर व्यापक स्तर पर आक्रमण हुए, तब इन योद्धा संतों ने अपनी जान की परवाह किए बिना धार्मिक स्थलों की रक्षा की।"
उन्होंने बताया कि 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में नागा साधुओं की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रही। "इन्होंने न केवल क्रांतिकारियों को आश्रय दिया बल्कि अपने अखाड़ों के माध्यम से उन्हें शस्त्र विद्या का प्रशिक्षण भी दिया। 

इनके व्यापक नेटवर्क ने क्रांतिकारियों के बीच संदेश पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।" राजपूत ने यह भी उल्लेख किया कि प्रयागराज कुंभ में नागा साधुओं द्वारा स्थापित सैन्य संगठन स्वतंत्रता आंदोलन का एक प्रमुख केंद्र बन गया था। "इन साधुओं ने धार्मिक स्थलों पर ब्रिटिश नियंत्रण का डटकर विरोध किया और देशभर में क्रांतिकारी गतिविधियों का संचालन किया।"

आज भी कुंभ मेले में नागा साधुओं की उपस्थिति आकर्षण का केंद्र बनी रहती है। विभूति रमाए, त्रिशूलधारी ये संत अपनी प्राचीन परंपराओं को जीवंत रखे हुए हैं। राजपूत के अनुसार, "आधुनिक समय में भी इनकी त्याग और तपस्या की परंपरा युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणास्रोत बनी हुई है।"

शोध में यह भी उजागर किया गया है कि नागा साधुओं के अखाड़े न केवल आध्यात्मिक केंद्र थे बल्कि शस्त्र विद्या के प्रशिक्षण स्थल भी थे। इन अखाड़ों ने भारतीय संस्कृति और धर्म की रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। राजपूत का मानना है कि नागा साधुओं का इतिहास वीरता और आध्यात्मिकता का अनूठा संगम है। "यह हमारी सांस्कृतिक विरासत का एक अमूल्य हिस्सा है, जिसे संरक्षित करना और आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाना हमारा कर्तव्य है। यह शोध भारतीय इतिहास में नागा साधुओं के योगदान को नई दृष्टि से देखने का प्रयास है, जो न केवल उनकी आध्यात्मिक परंपरा बल्कि राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम में उनकी भूमिका को भी रेखांकित करता है। 


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