शारदीय नवरात्र के अलग-अलग दिन मां दुर्गा के 9 रूपों को समर्पित है। शारदीय नवरात्र के पांचवें दिन स्कंदमाता की पूजा-अर्चना करने का विधान है। मां स्कंदमाता का व्रत हिन्दू धर्म में विशेष महत्व रखता है। यह व्रत देवी दुर्गा के पंचमी स्वरूप की उपासना के लिए किया जाता है। भक्त श्रद्धा पूर्वक मां की पूजा अर्चना करते हैं और विशेष रूप से उनकी कथा सुनते हैं, जिससे सभी कष्ट दूर होते हैं।
कथा का महत्व
मां स्कंदमाता का स्वरूप अद्भुत और दिव्य है। कहा जाता है कि जो भक्त इस दिन सच्चे मन से मां की आराधना करते हैं, उनके सभी दुख-दर्द समाप्त हो जाते हैं। मां स्कंदमाता की उपासना से जीवन में सुख-समृद्धि और शांति का वास होता है।
कथा का सार
कथा के अनुसार, एक बार एक राजा और रानी ने बहुत प्रयास किया, लेकिन उनके घर में संतान का कोई सुख नहीं था। उन्होंने कई साधुओं और ऋषियों से सहायता मांगी, परंतु कोई उपाय नहीं निकला। अंत में, राजा ने एक सिद्ध पुरुष से संपर्क किया। उन्होंने राजा को सलाह दी कि वे मां स्कंदमाता की आराधना करें।
राजा और रानी ने निस्वार्थ भाव से मां की पूजा शुरू की। उन्होंने व्रत रखा और दिन-रात मां का ध्यान किया। अंततः मां ने उन पर कृपा की और उन्हें एक पुत्र का आशीर्वाद दिया। राजा और रानी ने अपने पुत्र का नाम "कार्तिकेय" रखा, जो बाद में भगवान युद्ध के देवता बने।
पूजा विधि
मां स्कंदमाता की पूजा करते समय भक्तों को कुछ विशेष बातों का ध्यान रखना चाहिए। इस दिन व्रति को उपवास रखना चाहिए और मां की विधिपूर्वक पूजा करनी चाहिए। भक्तों को मां को फूल, फल और मिठाई अर्पित करनी चाहिए। इसके अलावा, मां के 108 नामों का जप करने से विशेष फल प्राप्त होता है।
भक्ति का फल
मां स्कंदमाता की पूजा करने से न केवल संतान सुख की प्राप्ति होती है, बल्कि परिवार में सुख, शांति और समृद्धि का वास होता है। इस व्रत को करने से मानसिक तनाव और समस्याएं भी समाप्त होती हैं। कई भक्तों ने इस व्रत के माध्यम से अपने जीवन में सकारात्मक बदलाव महसूस किया है।