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'आतंकी के साथ महान राणा का नाम नहीं होगा बर्दाश्त': तहव्वुर को जिहादी ही कहने की सलाह...धर्मयोद्धा डॉ सुरेश चव्हाणके जी की मुहिम को राष्ट्रव्यापी समर्थन

आतंकी के नाम से नहीं चलेगा राष्ट्रवाद – 'राणा' टाइटिल हटाने की उठी मांग

Rahul Panday
  • Apr 14 2025 7:35PM

भारत जैसे विविधताओं से भरे देश में, नाम सिर्फ व्यक्तिगत पहचान नहीं होता — यह सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक परंपराओं का प्रतिनिधि भी होता है। लेकिन जब एक मुस्लिम नाम और हिंदू जाति आधारित उपनाम एक साथ प्रयोग किया जाए, जैसे "तहव्वुर राणा", तो कई सवाल खड़े होते हैं। यह केवल एक नाम का मामला नहीं, बल्कि पहचान की राजनीति और सांप्रदायिक संवेदनशीलता का विषय बन जाता है।

"राणा" एक ऐतिहासिक उपाधि है, जो प्राचीन काल से क्षत्रिय और राजपूत समुदाय में गौरवपूर्ण स्थान रखती है। यह केवल एक नाम नहीं, बल्कि वीरता, राष्ट्रवाद और हिंदू परंपरा का प्रतीक माना जाता है। महाराणा प्रताप जैसे महापुरुषों ने इस उपनाम को ऐतिहासिक ऊँचाई दी, जिसे आज भी हिंदू राष्ट्रवादी भावना के साथ जोड़ा जाता है। ऐसे में जब कोई व्यक्ति मुस्लिम नाम "तहव्वुर" के साथ "राणा" उपनाम जोड़ता है, तो स्वाभाविक रूप से यह शंका और असंतोष को जन्म देता है — क्या यह केवल संयोग है? या फिर एक सोची-समझी रणनीति?

भारत में धर्म और जाति की पहचान गहराई से जुड़ी होती है। जब कोई मुस्लिम व्यक्ति एक ऐसी जाति आधारित हिंदू पहचान अपनाता है, जो सदियों से विशेष सामाजिक और सांस्कृतिक संदर्भ रखती है, तो इससे न केवल सामाजिक विश्वास पर असर पड़ता है, बल्कि सांप्रदायिक सद्भाव भी प्रभावित होता है। राणा उपनाम से जुड़ा राष्ट्रवादी वर्ग यह मानता है कि यह उनकी सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान का हिस्सा है। जब इसी उपनाम को एक ऐसे नाम से जोड़ा जाता है जो मुस्लिम और संभवतः कट्टर इस्लामी पृष्ठभूमि से आता हो, तो यह असहमति और विरोध का कारण बनता है।

सुदर्शन न्यूज के प्रधान संपादक धर्मयोद्धा डॉ सुरेश चव्हाणके जी कहते हैं कि यदि कोई व्यक्ति, जिसका नाम "तहव्वुर" है, किसी आतंकी मानसिकता या कट्टरपंथी संगठन से जुड़ा पाया जाए, तो "राणा" उपनाम के साथ उसका नाम और भी अधिक संवेदनशील बन जाता है। इससे यह संदेश जाता है कि वह व्यक्ति न केवल अपनी धार्मिक पहचान को छिपा रहा है, बल्कि हिंदू राष्ट्रवादी प्रतीकों का दुरुपयोग कर रहा है। 

 

"राणा हटाओ" का सीधा संबंध केवल नाम से नहीं, बल्कि उससे जुड़ी हुई अस्मिता और विचारधारा से है। यह माँग तब सामने आती है जब कोई नाम झूठे पहचान, धार्मिक छल, या सांप्रदायिक भ्रम  फैलाने का माध्यम बनता है। यह एक प्रकार की चेतावनी भी है कि हिंदू प्रतीकों और उपनामों का राजनीतिक और वैचारिक दुरुपयोग अब बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

"तहव्वुर राणा" जैसे नाम को लेकर विरोध इसलिए भी है क्योंकि इससे लगता है कि एक मुस्लिम व्यक्ति हिंदू पहचान का मुखौटा पहनकर सामाजिक या राजनीतिक लाभ उठाना चाहता है — या फिर कुछ अधिक घातक उद्देश्यों के लिए ऐसा कर रहा है। भारत का संविधान हर नागरिक को धर्म, नाम, उपनाम और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देता है। लेकिन यह स्वतंत्रता असीमित नहीं है। यदि कोई व्यक्ति किसी धार्मिक या जातिगत पहचान को जानबूझकर भ्रामक तरीके से प्रयोग करता है, और इससे समाज में तनाव फैलता है, तो यह संविधान के दायरे से बाहर आता है। इसलिए, "तहव्वुर राणा" जैसे नाम पर आपत्ति केवल सांस्कृतिक या भावनात्मक नहीं, संवैधानिक तर्क के आधार पर भी दी जा सकती है।

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