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11 अक्टूबर: 12 वर्ष की आयु में जलाई थी स्वतंत्रता की मशाल, घुटने टेकने के बजाय खाई सीने पर गोली...बाजी राउत जी को बलिदान दिवस पर कोटि-कोटि नमन

आज स्वतंत्रता के उस महानायक को उनके बलिदान दिवस पर बारम्बार नमन करते हुए उनके यशगान को सदा-सदा के लिए अमर रखने का संकल्प सुदर्शन परिवार दोहराता है

Sumant Kashyap
  • Oct 11 2024 10:49AM

स्वतंत्रता संग्राम में कई क्रांतिकारी ऐसे थे, जिनका नाम इतिहास के पन्नों में कहीं गुम हो गया. ऐसा ही एक नाम था वीर सपूत बाजी राउत जी. जिन्होंने महज 12 वर्ष की आयु में अंग्रेजों का प्रतिकार किया. जिनके बुलंद हौसलों को अंग्रेजों की गोलियां भी डिगा न सकीं. भारतीय इतिहास में उनका नाम सबसे कम उम्र के बलिदान के रूप में स्वर्णाक्षरों में अंकित है. आज स्वतंत्रता के उस महानायक को उनके बलिदान दिवस पर बारम्बार नमन करते हुए उनके यशगान को सदा-सदा के लिए अमर रखने का संकल्प सुदर्शन परिवार दोहराता है. 

भारतीय इतिहास में कभी भी न भूलने वाली तिथि 11 अक्टूबर है. बता दें कि 11 अक्टूबर 1938 को फिरंगी सैनिकों ने ढेंकानाल जिले में कहर बरसाया था, जिसमें नीलकंठपुर गांव के 12 साल के एक किशोर बाजी राउत जी की गोली मारकर हत्या कर दी गयी थी. भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के इतिहास में बाजी राउत जी को देश का कम उम्र के बलिदान में एक बताया गया है. भारतीय इतिहास में सबसे कम उमर के बलिदान हैं साहिबज़ादे बाबा फतेह सिंघ 6 वर्ष व बाबा जोरावर सिंघ 9 वर्ष. दरअसल, भारत को हिला देने वाली इस घटना ने स्वतंत्रता आंदोलन की चिंगारी को ज्वाला में तब्दील कर दिया था.

जानकारी के लिए बता दें कि 10 अक्टूबर 1938 को ब्रिटिश पुलिस कुछ लोगों को गिरफ्तार कर भुवनेश्वर थाना ले आई थी. इनकी रिहाई की मांग जोर पकड़ने लगी. पुलिस ने प्रदर्शन कर रहे लोगों पर गोलियां चलाई, जिसमें दो लोगों की मृत्यु हो गई. वहीं, लोगों के बढ़ते आक्रोश को देख पुलिस ने ब्राह्मणी नदी के नीलकंठ घाट होते हुए ढेंकानाल की ओर भागने की कोशिश की. ये लोग 11 अक्टूबर को बारिश में भीगते हुए नदी किनारे पहुंचे.

दरअसल, बाजी राउत जी नदी तट पर नाव के साथ थे. उन्हें पार कराने का हुक्म दिया गया. बाजी राउत जी ने सेना के जुल्मों की कहानी सुन रखी थी. उन्होंने सेना को पार उतारने से साफ इंकार कर दिया. अंग्रेजी सैनिकों ने उन्हें मारने की धमकी दी. अंग्रेजी हुकूमत न मानने पर एक सैनिक ने बंदूक की बट से उनके सिर पर प्रहार किया, वह लहूलुहान होकर गिर पड़े और फिर उठ खड़े हुए और अंग्रेजों को पार उतारने से मना कर दिया. बता दें कि 12 साल का बाजी राउत जी न तो उनसे डरा और न ही भागा, बल्कि दृढ़ता से उनका मुकाबला किया.

वहीं, अंग्रेज सिपाही उसकी वीरता और देशभक्ति का आकलन नहीं कर पा रहे थे. बाजी राउत जी के मन में देशभक्ति की भावना कूट कूटकर भरी थी जिसका परिणाम यह निकला कि उसने बलिदान देना स्वीकार किया पर अंग्रेजों के आगे झुकना स्वीकार नहीं किया. गुस्साए ब्रिटिश सैनिकों ने बाजी राउत जी को गोलियों से छलनी कर दिया. इस दौरान बाजी राउत जी के साथ गांव के लक्ष्मण मलिक, फागू साहू, हर्षी प्रधान और नाता मलिक भी मारे गए.  इन बच्चों के बलिदान की चर्चा पूरे देश में फैल गई.आंदोलनकारी आक्रोशित हो उठे. यहीं से स्वतंत्रता आंदोलन की क्रांतिकारी मशाल शुरू हो गई. कटक के खाननगर के श्मशान में इस वीर बालक को मुखाग्नि दी गई. तब ढेंकानाल, कटक जिले में आता था.

जानकारी के लिए बता दें कि आज भी नीलकंठपुर के लोग 11 अक्टूबर को  बाजी राउत जी की याद में एक सभा करके उसके बलिदान को याद करते हैं.  बाजी राउत के भाई नट राउत जी के चार बेटे हैं. नट और उनकी पत्नी का स्वर्गवास हो चुका है.  बाजी राउत जी के परिवार के लोग मजदूरी कर अपने परिवार का पालन-पोषण करते हैं. यहां विकास के नाम पर अभी भी अंधियारा है. वहीं, आज स्वतंत्रता के उस महानायक को उनके बलिदान दिवस पर बारम्बार नमन करते हुए उनके यशगान को सदा-सदा के लिए अमर रखने का संकल्प सुदर्शन परिवार दोहराता है. 


 

 

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