आज वो दिन है जब भारत के ही एक गद्दार ने भारत की संसद पर हमले का ताना बाना बुना था और देश को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर वो हानि देने की कोशिश की थी कि उस से उबरने की सोची भी नही जा सकती थी.. राष्ट्र के तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग ने इस हमले को विफल करने वाले जवानों को विस्मृत कर दिया, लेकिन वहीं उन्हीं में से कुछ ने बना ली संसद पर हमला करने वाले आतंकी अफजल के याद में एक गैंग जो उस निर्दयी दुर्दांत आतंकी के लिए शर्मिंदा भी रहने लगी और उसकी बरसी आदि पर कॉलेजों में उसको याद करने लगी..
उस अफ़ज़ल गैंग के ही चलते कश्मीर में अफ़ज़ल की बरसी मनाई जाने लगी और बाज़ार तक बन्द रखें जाने लगे. हैरानी की बात ये रही कि उस अफ़ज़ल गैंग का समर्थन करने वाले सेकुलर कहलाये गए और उसका विरोध करने वालों को सांप्रदायिक कहा जाने लगा..
कई ऐसे राजनेताओं ने तो उस अफ़ज़ल गैंग के साथ मंच भी साझा किया जो खुद को प्रधानमंत्री जैसे बड़े पद का दावेदार मानते हैं . 13 दिसंबर 2001 को संसद पर हुए आतंकी हमले में संसद भवन के गार्ड, दिल्ली पुलिस के जवान समेत कुल 9 लोग बलिदान हुए थे.
15 साल पहले आज ही के दिन संसद पर आतंकी हमला हुआ था. उस दिन एक सफेद एंबेसडर कार में आए पांच आतंकवादियों ने 45 मिनट में लोकतंत्र के सबसे बड़े मंदिर को गोलियों से छलनी करके पूरे हिंदुस्तान को झकझोर दिया था.
हमेशा की तरह लोकसभा परिसर के अंदर मीडिया का भी पूरा जमावड़ा मौजूद था तब तक बहुत से सांसद और मंत्री भी सदन के अंदर से बाहर निकल आए थे और गुनगुनी धूप का मजा ले रहे थे आने वाले खतरे से बेखबर हो कर.. उनको नही पता था कि बहुत कुछ बदलने वाला है.
इस्लामिक आतंकी समूह जैश ए मोहम्मद के पांच आतंकियों ने वारदात को अंजाम दिया था और वे सभी सेना की वर्दी में संसद भवन परिसर में दाखिल हुए थे। आतंकियों ने संसद भवन को निशाना बनाते हुए अंधाधुंध गोलियां बरसाई थी। हालांकि सुरक्षाबलों ने 30-45 मिनट के भीतर हमले को नाकाम कर दिया और अपनी जान पर खेलकर सभी पांचों आतंकियों को मार गिराया था.
दिल्ली की पोटा अदालत ने 16 दिसंबर, 2002 को चारों आतंकी मोहम्मद अफजल, शौकत हसैन, अफसान और सैयद रहमान गिलानी को दोषी करार दिया था। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर सैयद अब्दुल रहमान गिलानी और नवजोत संधू को बरी कर दिया.
लेकिन मोहम्मद अफजल की मौत की सजा को बरकरार रखी था और शौकत हुसैन की मौत की सजा को घटाकर 10 साल कर दिया था। इसके बाद 9 फरवरी, 2013 को अफजल गुरु को दिल्ली की तिहाड़ जेल में सुबह 8 बजे फांसी दे दी गई।
हमले में दिल्ली पुलिस के पांच जवान, सीआरपीएफ की एक महिला कांस्टेबल, संसद के दो गार्ड, संसद में काम कर रहा एक माली और एक पत्रकार बलिदान हो गए थे। जबकि हर कोई यह जानता है कि अफजल गुरु जेल में किस ठाट से रहकर बयानबाजी करता रहा.
जे.पी. यादव, 2.घनश्याम, 3.ओम प्रकाश, 4.नानक चंद, 5.राम पाल, 6.बिजेंद्र सिंह, 7.कमलेश कुमारी, 8.देशराज और 9.मताबर सिंह, ये उन वीरों का नाम हैं जिन्हें शायद ही कोई तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग याद कर के श्रद्धासुमन अर्पित करता हो जबकि अफ़ज़ल की फांसी बचाने के लिए बाकायदा पत्र लिखे गए जिन्हें पूरा देश जानता है.
आज 13 दिसम्बर को भारत की आन मान व शान बचाने वाले उन सभी दिवंगत वीर बलिदानियों को सुदर्शन परिवार बारम्बार नमन करते हुए उनकी यशगाथा को सदा सदा के लिए अमर रखने का संकल्प लेता है.