ये वो इतिहास है जिसे आज तक आप को कभी बताया नहीं गया था. उस कलम का दोष है ये जिसने नीलाम मन से और बिकी स्याही से अंग्रेज अफसरों के नामों के आगे आज तक सर लगाया है. और देश के क्रांतिकारियों को अपराधी तक लिखा स्वतंत्र भारत में .. इतना ही नहीं उन्होंने देश को ये जानने ही नही दिया की उनके लिए सच्चा बलिदान किस ने दिया और कब दिया है.
यह देश को अनंत काल तक पीड़ा पहुंचाने वाला धोखा है. आज महान क्रांतिकारी अनाभेरी प्रभाकर राव जी को उनके बलिदान दिवस पर बारम्बार नमन करते हुए उनका गौरवगान को सदा सदा के लिए अमर रखने का संकल्प सुदर्शन परिवार लेता है.
अनाभेरी प्रभाकर राव जी का जन्म 15 अगस्त 1910 को भाग्यनगर जो वर्तमान में हैदराबाद करीमनगर जिले के थिम्मापुर मंडल के पोलमपल्ली गांव के एक देशमुख परिवार में वेंकटेश्वर राव जी और राधाबाई जी के घर हुआ था. बता दें कि एक हिंदू येल्लापु परिवार में जन्मी, जो पहले हैदराबाद के निज़ाम के खिलाफ क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल थी, अनाभेरी जी ने किशोरावस्था में क्रांतिकारी आंदोलनों का अध्ययन किया और अराजकतावाद और साम्यवाद की ओर आकर्षित हुईं.
वह निज़ाम के खिलाफ कई क्रांतिकारी संगठनों में शामिल हो गए. निज़ाम के तहत तेलुगु भाषी लोगों के लिए समान अधिकारों की मांग करते समय अनाभेरी जी को समर्थन मिला. उनकी विरासत ने तेलंगाना में युवाओं को तेलंगाना की आजादी के लिए लड़ना शुरू करने के लिए प्रेरित किया और तेलंगाना में समाजवाद के उदय को भी बढ़ाया. निज़ाम कॉलेज में पढ़ते समय, वह गांधी , भगत सिंह जी, सुभाष चंद्र बोस जी, सरदार वल्लभभाई पटेल जी के आदर्शों से प्रेरित हुए और एक छात्र के रूप में निज़ाम विरोधी आंदोलन में प्रवेश किया.
बता दें कि अनाभेरी प्रभाकर राव जी ने चौथे आंध्र महासभा सम्मेलन के आयोजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उन्हें करीमनगर के बोईवाड़ा में आंध्र महासभा के कार्यालय के जिला सचिव के रूप में चुना गया था और बद्दाम येला रेड्डी को जिला अध्यक्ष के रूप में चुना गया था. उन्होंने निज़ाम और रजाकारों के खिलाफ लड़ाई लड़ी. सितंबर 1947 में बद्दाम येल्ला रेड्डी के आह्वान पर कई लोग इस संघर्ष में शामिल हुए. अनाभेरी प्रभाकर राव जी के नेतृत्व में एक दलम या दस्ते का गठन किया गया. दस्ते के सदस्यों ने जनवरी 1948 में लगभग चालीस गांवों में पटेलों और पटवारियों के अभिलेख जला दिए.
वह एक क्षेत्रीय नायक थे जिन्होंने तेलंगाना में क्रांतिकारी आंदोलन को एक नई लहर दी. उनके जीवन का एकमात्र लक्ष्य तेलंगाना को निज़ाम से मुक्त कराना था. उन्हें करीमनगर जिला और तेलंगाना भगत सिंह जी के नाम से जाना जाता था. अनाभेरी जी की युद्ध में 37 वर्ष की आयु में बलिदान हो गई. निज़ाम के करीबी सलाहकार ख़ासिम रजवी के नेतृत्व में पुलिस और रजाकारों के खिलाफ लड़ाई में, 14 मार्च 1948 को हुस्नाबाद के पास मुहम्मदपुर की पहाड़ियों और पहाड़ियों में पुलिस और कम्युनिस्ट दस्ते के बीच भीषण गोलीबारी हुई. इसी दौरान अनाभेरी प्रभाकर राव जी को बलिदान हो गया था.
वहीं, आज महान क्रांतिकारी अनाभेरी प्रभाकर राव जी को उनके बलिदान दिवस पर बारम्बार नमन करते हुए उनका गौरवगान को सदा सदा के लिए अमर रखने का संकल्प सुदर्शन परिवार लेता है.