कोई लाख भले ही बिना खड्ग बिना ढाल के गाने गा ले और कोई कितना भी आज़ादी की ठेकेदारी सड़क से संसद तक ले लेकिन जाएं. इन ठेकेदारों की चीख और नकली दस्तावेज किसी भी हालत में उन वीर बलिदानियों के बलिदान को नहीं मिटा सकते है जो उग्र जवानी में ही भारत माता के नाम अपनी एक एक सांस लिख कर चले गये.
इनका ये बलिदान बिना किसी स्वार्थ और भविष्य की योजना अदि के था. इनके नाम कहीं से भी कोई दोष नहीं है. इन्होंने हमेशा ही भारत माता को अंग्रेजों की जंजीरों से मुक्त करवाने का सपना देखा था, जिसके लिए इन्होंने उन अंग्रेजों को सीधी चुनौती दी जिनके दरबार में अक्सर आज़ादी के कुछ ठेकेदार हाजिरी लगाते दिखते थे. आज उन लाखों सशस्त्र क्रांतिवीरों में से एक क्रांतिकारी राजेन्द्र लाहिड़ी जी की पुण्यतिथि है. वहीं, आज स्वतंत्रता के उस महानायक को उनके बलिदान दिवस पर बारम्बार नमन करते हुए उनके यशगान को सदा-सदा के लिए अमर रखने का संकल्प सुदर्शन परिवार दोहराता है.
बता दें कि राजेन्द्र लाहिड़ी जी का जन्म 29 जून 1901 को बंगाल (आज का बांग्लादेश) में पबना जिले के मड़यां (मोहनपुर) गांव में हुआ था. उनके पिता का नाम क्षिति मोहन लाहिड़ी था और माता का नाम बसन्त कुमारी था. राजेन्द्र लाहिड़ी जी के पिता भी क्रान्तिकारी और समाजसेवक थे. राजेन्द्र लाहिड़ी जी के जन्म के समय उनके पिता व बड़े भाई बंगाल में चल रही अनुशीलन समिति की गुप्त गतिविधियों में योगदान देने के कारण कारावास में कैद थे. राष्ट्र-प्रेम राजेन्द्र लाहिड़ी जी के खून में थी.
अपने राष्ट्र-प्रेम की चिन्गारी अपने दिल में लेकर मात्र नौ वर्ष की आयु में राजेन्द्र लाहिड़ी जी वाराणसी में अपने मामा के घर चले गए. वाराणसी में ही उनकी शिक्षा सम्पन्न हुई थी. इसके बाद वो आगे की शिक्षा के लिए काशी हिन्दू विश्वविद्यालय गए. काकोरी काण्ड के दौरान वो काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में इतिहास विषय में एम० ए० के प्रथम वर्ष की पढ़ाई कर रहे थे. राजेन्द्र लाहिड़ी जी जब काशी में पढाई करने गये थे तो वो क्रान्तिकारी शचींद्रनाथ सान्याल के सम्पर्क में आए.
राजेन्द्र लाहिड़ी जी का देश-प्रेम और स्वतंत्रता के लिए जस्बा देख कर शचीन दा ने उन्हें अपने साथ रखकर बनारस से निकलने वाली पत्रिका बंग वाणी के सम्पादन का दायित्व दिया. इसके साथ ही शचीन दा ने राजेन्द्र लाहिड़ी जी को वाराणसी शाखा के सशस्त्र विभाग का प्रभार भी सौपा था. राजेन्द्र लाहिड़ी जी की कार्य कुशलता और देश प्रेम देखते हुए उन्हें हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन की गुप्त बैठकों में भी आमन्त्रित किया जाने लगा.
राजेन्द्र लाहिड़ी जी के लेख बंगाल के बंगवाणी और शंख आदि पत्रों में छपते थे. राजेन्द्र लाहिड़ी जी ही बनारस के क्रांतिकारियों के हस्तलिखित पत्र अग्रदूत के प्रवर्तक थे. उनका यही प्रयास रहता था कि क्रांतिकारी दल के सभी सदस्य अपने विचारों को लेख के रूप में दर्ज करें. काकोरी काण्ड में गिरफ्तारी के समय राजेन्द्र लाहिड़ी जी काशी हिंदू विश्वविद्यालय की बांग्ला साहित्य परिषद के मंत्री थे.
बता दें कि जब राम प्रसाद 'बिस्मिल' के निवास पर हुई बैठक में सभी क्रान्तिकारियों ने अंग्रेजी सरकार का खजाना लूटने की योजना को अन्तिम रूप दिया था, तो उस बैठक में राजेन्द्र लाहिड़ी जी भी सम्मिलित हुए थे. राजेन्द्र लाहिड़ी जी ने ही इस योजना को अंजाम देने के लिए काकोरी से छूटते ही ट्रेन की जंज़ीर खींच कर उसे रोक लिया था और 9 अगस्त 1925 की शाम सहारनपुर से चलकर लखनऊ पहुंचने वाली आठ डाउन ट्रेन पर क्रान्तिकारी पण्डित राम प्रसाद 'बिस्मिल' ने चन्द्रशेखर आजाद व अन्य सहयोगियों के साथ धावा बोल दिया था. क्रांतिकारियों ने मिलकर ट्रेन से सरकारी खजाना को लूट लिया.
काकोरी काण्ड के बाद राजेन्द्र लाहिड़ी जी को बम बनाने का प्रशिक्षण लेने बंगाल भेजा दिया गया था. राजेन्द्र लाहिड़ी जी के प्रशिक्षित के दौरान ही एक साथी की असावधानी के कारण एक बम फट गया. बम धमाके के कारण वहां पुलिस आ गयी. जिसके बाद राजेन्द्र लाहिड़ी जी के साथ उनके 9 साथियों को गिरफ्तार कर लिया गया. अंग्रेजो ने इन सभी प्रमुख क्रान्तिकारियों के ऊपर काकोरी काण्ड के नाम से भी मुकदमा दायर कर दिया था.
इसके बाद राजेन्द्र लाहिड़ी जी के साथ उनके चार साथियों को फांसी की सजा सुनाई गई. राजेन्द्र लाहिड़ी जी को उनके साथियों से दो दिन पूर्व 17 दिसम्बर को ही फांसी दे दी गयी. राजेन्द्र लाहिड़ी जी ने हंसते हंसते फांसी के फंदे को चूम लिया. राजेन्द्र लाहिड़ी जी ने फांसी पर चढ़ने से पहले वंदे मातरम् की हुंकार के साथ कहा था कि "मैं मर नहीं रहा हूँ, बल्कि स्वतन्त्र भारत में पुनर्जन्म लेने जा रहा हूँ." आज स्वतंत्रता के उस महानायक को उनके बलिदान दिवस पर बारम्बार नमन करते हुए उनके यशगान को सदा-सदा के लिए अमर रखने का संकल्प सुदर्शन परिवार दोहराता है.