वो समय कईयो को याद है. तड़ताडती गोलियां, स्त्रियों की चीखें, उजड़ता सिंदूर, गिरती लाशें, बच्चो की चीत्कार, श्मशान में जलती लाशें, पुलिस के सायरन. ये तरफ की बाते हैं जो कभी पूर्वांचल में हिंदुत्व की अलख जगाते कृष्णानंद राय जी के घर पर चल रही थीं. दिन आज ही का था अर्थात 29 नवंबर 2005,लेकिन दूसरी तरफ का माहौल कुछ अलग था. वहां लगते ठहाके, खुलती शराब की बोतलें, मसखरी व चेहरे पर विजयी मुस्कान थी.
ये खेमा था पूर्वांचल में हत्या, हत्या के प्रयास आदि के लिए कुख्यात मुख्तार अंसारी का जिसको किसी भी हाल में ये गंवारा नही था कि उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल क्षेत्र में कोई भी हिंदू जरा सा भी आंख उठा कर उसकी आंख में आंख मिलाए. उसके इस बनाये खौफ के चलते कई हिंदू जिसमे अफसर और राजनेता शामिल थे, उन्होंने मुख्तार की गुलामी स्वीकार कर ली और बन बैठे उसके दरबारी बनी गए, लेकिन स्वाभिमानी कृष्णानन्द राय जी उनमे से नही थे.
यही बात मुख्तार को रास नही आ रही थी क्योंकि वो उन्हें भी अपने दरबार मे बाकी कईयों की तरह जी हुजूरी करते देखना चाहता था जिसमें से एक अभी हाल में ही मारा गया मुन्ना बजरंगी भी शामिल था. जहां आज के जमाने मे सामान्य व्यक्ति अपने पूरे प्रभाव को लगाते हुए अपने परिजन को चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी भी नही बना पाता वहीं मुख्तार के ही प्रभाव के चलते उसके भाई अफ़ज़ाल तक को राजनीति की वो कुर्सी आसानी से मिल गई थी जिसके लिए कईयो ने अपने पूरे जीवन भर मेहनत की होती है.
उसी मुख्तार की बनाई दहशत को चुनौती दे रहे थे दिवंगत देवलोकवासी कृष्णानन्द राय और बने थे विधायक...उन्हें मिला वोट व विजय हिंदू समाज व मुख्तार से डरे सहमे उन लोगो की आवाज थी जो कृष्णानन्द राय जी में अपना वो सहारा खोज रहे थे. जो उन्हें कम से कम स्वतंत्र भारत मे स्वतंत्रता का एहसास करवा देता, लेकिन कईयो की लाशों की नींव पर बनी ये सल्तनत मुख्तार किसी भी हालत में हिलने नही देना चाहता था, भले ही उस नींव में एक लाश और भरनी पड़ती. पुरानी कहावत है कि " हिंदू कभी नही डरा था, दुश्मन की तलवारों से.. जब भी उस की हार हुई तो, घर के ही गद्दारों से.
लगभग वही कुछ हुआ कृष्नानन्द राय जी के साथ उन्हें नही पता था कि उन्हें मारने के लिए मुख्तार ने पहली पंक्ति में हिंदू ही रखे हैं और वो था मुन्ना बजरंगी. ताबड़तोड़ गोलियां बरसी थी आज ही के दिन अर्थात 29 नवंबर को 2005 के समय और पूर्वांचल में जय श्रीराम, भारत माता की जय व वन्देमातरम के नारे लगाने वाला वो सूर्य अस्त हो गया था.
इसके बाद हौसले मुख्तार के पस्त हुए थे क्योंकि स्वर्गीय राय की कल्याणी पत्नी अलका राय जी ने वहीं से शुरू किया जहां से कृष्नानन्द जी ने प्राण त्यागे थे. वो अटल रही जबकि उन्हें लोभ, डर आदि सब दौर से गुजरना पड़ा. हिंदू समाज मे किसी की जरा सी गलती हो जाने पर जहां राष्ट्रीय स्तर पर धरना प्रदर्शन शुरू हो जाते हैं. बुद्धिजीवी पुरष्कार लौटाने लगते हैं, फ़िल्म जगत ट्विटर सम्भाल लेता है, वामपंथी संसद चलनी बंद करवा देते है तो वहीं कृष्नानन्द राय की हत्या में मुख्तार अंसारी का नाम आते ही बुद्धिजीवी, वामपंथी , फ़िल्म जगत सब खामोश हो गए और एक भी शब्द के मोहताज रहे.
सामाजवाद, सर्वजन हिताय आदि की बात करने वाली पार्टियों में तो ऐसे होड़ मच गई मुख्तार को अपनी पार्टी में शामिल करने की जैसे कृष्नानंद की हत्या कोई ऐसा लाइसेंस रहा हो जो उनकी पार्टी में शामिल होने की पहली शर्त के रूप में प्रयोग होता हो.यहां तक कि श्रीरामजन्मभूमि मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतज़ार करने को बोल रही यही पार्टियां मुख्तार को शामिल करने के लिए सेशन कोर्ट तक के फैसले का इंतज़ार करने तक को तैयार नही हुई ..भले ही आज एक लंबे समय से मुख्तार अंसारी जेल काट रहा हो लेकिन इसका श्रेय किसी कथित न्याय के ठेकेदार को नहीं बल्कि आज दिवंगत हुए देवलोकवासी कृष्णानन्द रायराय जी की वीरांगना पत्नी अलका राय जी व उनके कुछ गिने चुने सहयोगियों को जाता है ..
यद्द्पि इसके बाद भी मीडिया का एक वर्ग कृष्णानन्द राय जी के जीवन के बारे में या उनकी पत्नी अलका राय जी के संघर्ष के बारे में बताने के बजाय जेल में मुख्तार को खांसी आई, जेल में मुख्तार ने पानी पिया या नही आदि बता रहा है जिसका उदाहरण पिछले समय बांदा जेल की घटना रही है. इतना तो तय है कि "न्याय अभी बाकी है".आज 29 नवंबर को पूर्वांचल के उस बलिदानी हिंदू शेर कृष्णानन्द राय को उनके बलिदान दिवस पर बारम्बार नमन व न्याय की लड़ाई में पूर्ण सहयोग का संकल्प भी .