भारतीय सेना के प्रमुख जनरल उपेन्द्र द्विवेदी ने आज मंहव में आयोजित 26वें डॉक्ट्रिन और रणनीति सेमिनार (DSS) में भाग लिया। इस दो दिवसीय सेमिनार का विषय था "हालिया संघर्षों और युद्ध में प्रौद्योगिकी के प्रवेश के मद्देनजर भारतीय सेना के लिए अनुकूल डॉक्ट्रिन और संचालनात्मक दर्शन की आवश्यकता"। यह सेमिनार 27-28 नवम्बर 2024 को सेना युद्ध कॉलेज में आयोजित किया गया था।
इस सेमिनार का मुख्य उद्देश्य भारतीय सेना के स्थापित डॉक्ट्रिन, संचालनात्मक रणनीतियों, और तकनीकों (TTPs) की वैधता की गहरी समीक्षा करना था, खासकर हालिया संघर्षों और नई प्रौद्योगिकियों के संदर्भ में। सेमिनार में विशेषज्ञों ने भारतीय सेना की युद्ध संचालन की रणनीतियों, सामरिक तैयारी और नवाचार पर अपने विचार व्यक्त किए।
तीन प्रमुख विषयों पर आधारित सेमिनार
1. वैश्विक परिदृश्य - युद्ध में नवीनतम प्रवृत्तियाँ और प्रौद्योगिकी का प्रवेश:** पहले सत्र में वैश्विक परिदृश्य पर चर्चा की गई, जिसमें विशेष तकनीकी क्षेत्रों में नवीनतम युद्ध प्रवृत्तियों का विश्लेषण किया गया। यह भी बताया गया कि कैसे राष्ट्रों ने अपने युद्ध संचालन दृष्टिकोण में बदलाव किया है और भारतीय सेना को इसके अनुरूप अपनी रणनीतियों को अनुकूलित करना होगा।
2. युद्ध संचालन रणनीति - युद्ध संचालन पर प्रभाव: दूसरे सत्र में मौजूदा युद्ध रणनीतियों और संचालन को विशेष तकनीकियों के साथ समीक्षात्मक रूप से परखा गया। इसमें पर्वतीय क्षेत्रों, उच्च ऊंचाई वाले क्षेत्रों और रेगिस्तान में युद्ध संचालन की वैधता की समीक्षा की गई और नई तकनीकियों को लागू करने के लिए आवश्यक बदलावों पर विचार किया गया।
3. प्रौद्योगिकी एक समर्थक के रूप में – मानव संसाधन और लॉजिस्टिक पहलू:** इस सत्र में युद्ध संचालन में नई तकनीकों के प्रवेश से मानव संसाधन और लॉजिस्टिक संचालन पर होने वाले प्रभाव पर चर्चा की गई। भारतीय सेना के संचालनात्मक लॉजिस्टिक ढांचे को पुनः संरचित करने की आवश्यकता को रेखांकित किया गया।
युद्ध के नये रूप और 5th जनरेशन युद्ध की विशेषताएँ
अपने संबोधन में COAS ने युद्ध के आधुनिक रूपों और 5वीं पीढ़ी के युद्ध की विशेषताओं को उजागर किया। उन्होंने कहा कि समकालीन युद्ध अब केवल सैन्य संघर्ष नहीं, बल्कि राजनीतिक उद्देश्यों को हासिल करने के लिए गैर-सैन्य उपायों को भी शामिल करते हैं। जनरल द्विवेदी ने युद्ध में सूचना युद्ध, साइबर हमलों, और कृत्रिम बुद्धिमत्ता के प्रयोग की बढ़ती भूमिका को महत्वपूर्ण बताया।
रूस-यूक्रेन युद्ध से मिली सीख
जनरल द्विवेदी ने रूस-यूक्रेन युद्ध से मिली महत्वपूर्ण शिक्षाओं का भी उल्लेख किया, जिसमें संयुक्त हथियार संचालन, विषम रणनीतियों का उपयोग और नागरिक-सैन्य एकीकरण की आवश्यकता को प्रमुख रूप से रेखांकित किया गया। यह युद्ध इस बात का उदाहरण है कि कैसे मिलिट्री नेतृत्व को डीआईएमईटी (DIME T) ढांचे के भीतर प्रभावी तरीके से काम करना होता है।
राष्ट्रीय सुरक्षा चुनौतियों पर चर्चा
COAS ने राष्ट्रीय सुरक्षा की चुनौतियों पर भी विस्तार से चर्चा की, विशेष रूप से ग्रे जोन संचालन, दो-आगे युद्ध की चुनौतियाँ और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में भारत के हितों की रक्षा के लिए भूमि, समुद्र और वायु संचालन के बीच समन्वय की आवश्यकता पर जोर दिया।
सैन्य नेतृत्व और प्रौद्योगिकी का महत्व
जनरल द्विवेदी ने सैन्य नेतृत्व की भूमिका को बेहद महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि मजबूत और अनुकूलित नेतृत्व ही सैन्य रणनीतियों और प्रौद्योगिकी में बदलाव की दिशा निर्धारित करेगा। उन्होंने कहा कि सैन्य नेताओं को तकनीकी चुनौतियों का सामना करते हुए जल्दी निर्णय लेने की क्षमता विकसित करनी होगी।
सारांश: अनुकूल डॉक्ट्रिन और रणनीतियाँ
COAS ने अंत में यह आह्वान किया कि भारतीय सेना को अनुकूल और गतिशील डॉक्ट्रिन विकसित करनी चाहिए जो लगातार बदलते खतरे के परिप्रेक्ष्य में त्वरित रूप से प्रतिक्रियाएँ कर सके। इन डॉक्ट्रिनों में प्रौद्योगिकी का समावेश, व्यावहारिक प्रशिक्षण, और युद्ध खेल का आयोजन किया जाना चाहिए, ताकि सैन्य बल भविष्य के युद्धों के लिए पूरी तरह तैयार हो सकें।