5 सितंबर 1987 को मुम्बई से न्यूयॉर्क के लिए रवाना PAN AM Flight जब कराची में रुकी तब नीरजा भनोट जो विमान की फ्लाइट अटेंडेंट थीं, भनोट ने स्वंय को चार सशस्त्र आतंकवादियों से घिरा पाया.
नीरजा ने तत्काल आतंकवादियों की मौजूदगी की सूचना इंटरकॉम द्वारा कॉकपिट में दी, जिसके फलस्वरूप सभी पायलट तुरंत जहाज से बाहर निकल गए और पीछे रह गए करीब 400 यात्री एवं 13 लोगों का फ्लाइट क्रू जिनका जीवन उन चार खफा आतंवादियों पर आश्रित था.
पायलटों के जाते ही नीरजा अब सबसे वरिष्ठ क्रू मेंबर थीं और उन्होंने चार्ज अपने हाथ में लिया. आतंकवादी जो अबु निदाल संगठन से थे उनके आदेश पर नीरजा ने सभी यात्रियों के पासपोर्ट इकठ्ठा किये परंतु बड़ी सफाई से 4 अमरिकियों के पासपोर्ट को छुपा दिया जिससे हाईजैकर्स उन्हें पहचान कर मार ना पाएं !!
आतंकवादी फिलिस्तीनी थे और बाद की जांच में सामने आया की विमान को किसी इजराइली विशेष स्थान पर गिराये जाने का प्लान था. करीब सत्रह घंटे बंधक बनाये रहने के बाद भी जब आतंवादियों की प्लेन उड़ाने के लिए पायलटों की मांग नही मानी गयी तो उन्होंने यात्रियों की हत्या और विमान में विस्फोटक लगाना शुरू किया.
तब नीरजा ने चतुराई से प्लेन का इमरजेंसी exit द्वार खोल दिया और यात्रियों को बाहर निकलने का रास्ता दिखाया. फायरिंग के बीच सबसे पहले प्लेन से बाहर निकल सकने के अवसर के बावजूद नीरजा ने कर्मठता का परिचय देते हुए यात्रियों की मदद की और अंत में तीन बच्चों को गोली से बचाने के प्रयास में उन्हें खुद के शरीर से ढक लिया और वीरगति को प्राप्त हुईं.
इस वीरता और साहस के लिए नीरजा को मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च शान्तिकालीन वीरता पुरस्कार “अशोक चक्र” से सम्मानित किया गया.बाद में अमेरिका ने उन्हें “जस्टिस फॉर क्राइम” अवार्ड दिया.
आज 7 सितम्बर को उस बलिदान की मूर्ति को उनके जन्मदिवस पर भारत माँ की वीरांगना को सुदर्शन न्यूज़ बारम्बार नमन करता हैं जिसने अपनी सूझबूझ, बहादुरी और चतुराई से सैकड़ों लोगों के प्राणों की रक्षा की और विश्व पटल पर भारत का मान बढाया.