राजस्थान के अजमेर स्थित दरगाह शरीफ में सर्वे करने की अनुमति के संबंध में एक महत्वपूर्ण निर्णय सामने आया है। निचली अदालत ने हिंदू पक्ष की उस याचिका को स्वीकार कर लिया है, जिसमें दरगाह को एक हिंदू मंदिर बताया गया है। यह याचिका हिंदू सेना के अध्यक्ष विष्णु गुप्ता ने दायर की थी, और अब सर्वे का रास्ता खुल गया है।
याचिका में क्या था दावा?
हिंदू पक्ष ने अपनी याचिका के साथ कई महत्वपूर्ण प्रमाण प्रस्तुत किए हैं। इसमें यह दावा किया गया कि दरगाह स्थल पर पहले एक हिंदू मंदिर हुआ करता था, जहां पूजा और जलाभिषेक की प्रक्रिया होती थी। इसके अलावा, याचिका में पुरातात्विक सर्वे की मांग भी की गई है, ताकि इस स्थान के इतिहास और सांस्कृतिक महत्व का सही आकलन किया जा सके।
अदालत में पेश की गई विशेष पुस्तक
मंगलवार को इस मामले में एक और सुनवाई हुई, जिसमें एक महत्वपूर्ण किताब को सबूत के तौर पर पेश किया गया। इस पुस्तक में यह दावा किया गया कि अजमेर दरगाह के स्थान पर पहले एक हिंदू मंदिर था। पुस्तक का संदर्भ अजमेर के निवासी हर विलास शारदा द्वारा 1911 में लिखी गई थी, जिसमें मंदिर का उल्लेख किया गया है।
हिंदू पक्ष के महत्वपूर्ण प्रमाण
हिंदू पक्ष के द्वारा पेश किए गए कुछ प्रमुख बिंदुओं में शामिल हैं:
- दरगाह के स्थान पर पहले भगवान शिव का मंदिर था।
- मंदिर में पूजा और जलाभिषेक की प्रक्रिया नियमित रूप से होती थी।
- 75 फीट लंबे बुलंद दरवाजे में मंदिर के मलबे के अवशेष पाए गए हैं।
- तहखाने में गर्भगृह होने के संकेत मिले हैं, जो मंदिर के अस्तित्व को दर्शाते हैं।
याचिका पर न्यायालय की कार्यवाही
शुरुआत में हिंदू सेना की याचिका को मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया गया था, लेकिन न्यायाधीश प्रीतम सिंह ने यह कहते हुए मामले की सुनवाई से इनकार कर दिया था कि यह उनके क्षेत्राधिकार के बाहर है। इसके बाद, यह याचिका जिला अदालत में प्रस्तुत की गई, जहां निचली अदालत ने अब इसे स्वीकार किया है।
इस निर्णय के बाद अब अजमेर दरगाह में सर्वे की प्रक्रिया आरंभ हो सकती है, जिससे इस स्थल के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पहलुओं पर अधिक प्रकाश डाला जा सकेगा।