इनपुट- श्वेता सिंह, लखनऊ, twitter-@shwetamedia207
बात जब राम मंदिर को आती है तो सबके दिल दिमाग में पुरुष कारसेवकों की एक लंबी सूची छा जाती है लेकिन इस धर्म युद्ध में कई ऐसी महिला कारसेवक भी हैं जिनका यदि नाम न लिया जाए तो शायद ये उनके साथ अन्याय होगा।
कहते हैं पुरुषों के साथ स्त्रियां कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी रहती हैं और 1990 के काले अध्याय के दौरान भी महिलाएं युद्ध के मैदान में किसी से भी पीछे नहीं रहीं। आज हम आपको उस वीरांगना महिला कारसेवक के बारे में बताएंगे जो अपने नवजात शिशु को दाई को थमाकर अपनी छोटी बहन के साथ बाबरी की तरफ दौड़ पड़ी थी। बाद में ये महिला अयोध्या को गली-गली में मशहूर हो गई और उन्हें लक्ष्मीबाई तक कहा जाने लगा।
चलिए आपको बताते हैं इन महिला कारसेवकों का क्या काम होता था? महिला कारसेवक अयोध्या की गलियों से छिपते-छुपाते बाहर से आए कारसेवकों को एक से दूसरी जगह ले जाती थी। इन्हीं में से एक बिंदु दीदी भी थीं। छह दिसंबर को जब सभी ढांचे की तरफ बढ़ रहे थे। पूरा मानस भवन कारसेवकों और मीडियावालों से पटा हुआ था। कारसेवकों की भीड़ इतनी ज्यादा थी जिसे रोकना मुश्किल हो रहा था। बिंदु दीदी जिन्होंने 20 दिन पहले ही एक बेटे को जन्म दिया था; हलचल बढ़ती देखकर उन्होंने अपने बेटे को मानस भवन में मौजूद एक दाई को पकड़ा दिया और कहा, थोड़ी देर में आती हूं। वो अपनी छोटी बहन के साथ बाबरी की ओर दौड़ पड़ी।
हालांकि उनके चाचा ने उन लोगों को वहां आने से मना किया था लेकिन राम काज के लिये आतुर बहनें वहां पहुंच गई। उनकी बहन तो ढांचे पर चढ़ भी गई। आपाधापी-छीनाझपटी में उसके कपड़े फट गए, लेकिन वह रुकी नहीं। बाद में कई वर्षों तक इंटेलिजेंस की टीम उस फटे कपड़े वाली लड़की को ढूंढती रही। बेटे को जन्म देने के बाद बिंदु दीदी के शरीर में इतनी ताकत नहीं बाकी थी, कि वह ढांचे पर चढ़ जातीं। उन्होंने कोशिश बहुत की थी। फिर जैसे ही वह लोग पलटे, उनकी आंखों के सामने ढांचा ढह गया। तब पूरे दिन उन्होंने पानी नहीं पीया था। बिंदु दीदी अयोध्या की गलियों में आज भी मशहूर हैं। लोग उन्हें लक्ष्मीबाई कहते हैं। अब बिंदु दीदी 22 तारीख का इन्तजार कर रही हैं।