तिरुमला तिरुपति मंदिर, जो दुनिया के सबसे पवित्र हिंदू तीर्थस्थलों में से एक है, हर साल लाखों भक्तों को आकर्षित करता है. ये भक्त मंदिर का प्रसादम ग्रहण करते हैं, जिससे भगवान वेंकटेश्वर की दिव्य आशीर्वाद स्वरूप माना जाता है. हाल ही में खुलासा हुआ है कि तिरुपति देवस्थानम ट्रस्ट के पूर्व प्रबंधन के कार्यकाल के दौरान, इस पवित्र प्रसाद की तैयारी में गाय की चर्बी, सूअर की चर्बी और मछली के तेल का उपयोग किया गया था.
जानकारी के लिए बता दें कि यह धार्मिक पवित्रता का गंभीर उल्लंघन है जिसने लाखों हिंदू भक्तों की भावनाओं को आहत किया है. तिरुमला का प्रसादम शुद्ध, शाकाहारी और हमारे धार्मिक रिवाजों के अनुसार होना चाहिए, इस को लेकर सुदर्शन न्यूज के प्रधान संपादक और धर्म योद्धा डॉक्टर सुरेश चव्हाणके जी ने कहा, जो दशकों से हिंदू परंपराओं और मूल्यों की रक्षा के लिए संघर्ष कर रहे हैं. आगे करते रहेंगे...
सीबीआई या एसआईटी जांच की मांग
इस उल्लंघन के जवाब में धर्म योद्धा डॉक्टर सुरेश चव्हाणके जी ने औपचारिक रूप से माननीय सुप्रीम कोर्ट से तिरुमला तिरुपति देवस्था नम ट्रस्ट में कुप्रबंधन की जांच के लिए सीबीआई या विशेष जांच दल (एसआईटी ) से जांच का आदेश देने का अनुरोध किया है. बता दें कि इस प्रेस नोट में निम्नलिखित मांगों को
रेखांकित किया गया है.
1. पवित्र प्रसादम की तैयारी में गाय की चर्बी, सूअर की चर्बी और मछली के तेल के उपयोग की विस्तृत जांच की जाए.
2. जिन व्यक्तियों ने धार्मिक परंराओं का उल्लंघन किया है और लाखों भक्तों के विश्वास को ठेस पहुंचाई है, उन्हें उत्तरदायी ठहराया जाए.
3. तिरुमला तिरुपति बालाजी मंदिर में सख्त धार्मिक प्रोटोकॉल लागू किए जाएं ताकि मंदिर और उसके प्रसाद की पवित्रता बनी रहे.
उन्होंने आगे कहा कि भक्तों का विश्वास टूट गया है, और ऐसा कुप्रबंधन बिना सजा के नहीं रह सकता. अगर इसे ठीक से संबोधित नहीं किया गया तो यह अन्य धार्मिक संस्थानों के लिए एक खतरनाक मिसाल बनेगा," चव्हाणके जी ने कहा कि मुझे भरोसा है कि सुप्रीम कोर्ट जल्द कार्रवाई करेगा और इस मामले की पूरी जांच करेगा ताकि दोषियों को न्याय के कटघरे में खड़ा किया जा सके.
संवैधानिक अधिकारों पर असर
प्रेस नोट में इस बात पर जोर दिया गया है कि यह उल्लंघन केवल खान-पान की पसंद का मामला नहीं है, बल्कि यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 पर प्रहार करता है, जो धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान करता है, जिसमें धार्मिक अनुष्ठानों और परंराओं का पालन भी शामिल है. पवित्र प्रसादम की तैयारी में गाय की चर्बी, सूअर की चर्बी और मछली के तेल का उपयोग इस मौलिक अधिकार का उल्लंघन है.
चव्हाणके जी ने आगे कहा कि हिंदू धार्मिक परंपराओं का अभिन्न हिस्सा प्रसादम है और यह हमारी आस्था की आध्यात्मिक परंपरंराओं में गहराई से निहित है. इस पवित्र प्रसाद को गैर-शाकाहारी तत्वों से दूषिदूषित करना हमारे संवैधानिक और धार्मिक अधिकारों का उल्लंघन है.
धार्मिक पवित्रता और आस्था की पुनर्स्थापना
श्री सुरेश चव्हाणके जी, जो दो दशकों से अधिक समय से हिंदू अधिकारों और सांस्कृतिक संरक्षण के लिए एक मजबूत आवाज बने हुए हैं, फ्री टेम्पल मूवमेंट के अग्रणी रहे हैं, जो मंदिरों के प्रशासन और प्रबंधन को राज्य सरकार के बजाय भक्तों को सौंपने की मांग करता है. उनका यह आंदोलन धार्मिक संस्थानों की पवित्रता को बनाए रखने के लिए भक्तों द्वारा संचालित प्रबंधन की आवश्यकता को रेखांकित करता है.
उन्होंने आगे कहा कि यह सभी धार्मिक संस्थानों के प्रबंधन के लिए एक चेतावनी है. हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हमारे पवित्र मंदिरों का प्रबंधन करने वाले लोग भक्तों के विश्वासों और परंपराओं का सम्मान करें. सिर्फ तभी, जब भक्त सीधे मंदिर के प्रशासन में शामिल होंगे, हम अपने पवित्र स्थलों की पवित्रता की सही मायने में रक्षा कर सकते हैं.
न्याय की मांग
श्री सुरेश चव्हाणके जी का प्रेस नोट त्वरित न्याय और सुप्रीम कोर्ट से तत्काल हस्तक्षेप की मजबूत मांग के साथ समाप्त होता है, ताकि इस मुद्दे को लाखों हिंदू भक्तों की आस्था की रक्षा के लिए संबोधित किया जा सके, जो तिरुमला मंदिर को भारत के सबसे पवित्र स्थलों में से एक मानते हैं. प्रेस नोट यह भी रेखांकित करता है कि सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप भारत में धार्मिक परंपराओं की सुरक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण मिसाल कायम करेगा और सुनिश्चित करेगा कि भविष्य में ऐसे उल्लंघन फिर से न हों.