फाल्गुन शुक्ल पक्ष की एकादशी को काशी में 'रंगभरी एकादशी' के नाम से मनाया जाता है। इस दिन बाबा विश्वनाथ का विशेष श्रृंगार होता है और काशी में होली के पर्व का आगाज होता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, रंगभरी एकादशी के दिन भगवान शिव माता पार्वती से विवाह के बाद पहली बार अपनी प्रिय काशी नगरी आए थे। इस दिन शिव जी के गण और जनता पर रंग, अबीर, और गुलाल उड़ाते हुए खुशी का माहौल बनाते हैं। इसे आमलकी एकादशी भी कहा जाता है।
वाराणसी में होली की शुरुआत
रंगभरी एकादशी से ही वाराणसी में होली खेलने का सिलसिला शुरू हो जाता है, जो लगातार 6 दिन तक चलता है। जबकि ब्रज में होली का पर्व होलाष्टक से शुरू होता है, वहीं वाराणसी में यह रंगभरी एकादशी से प्रारंभ होता है। इस वर्ष रंगभरी एकादशी 10 मार्च, सोमवार को मनाई जाएगी।
रंगभरी एकादशी के विशेष उपाय
रंगभरी एकादशी के दिन कुछ विशेष उपाय किए जाते हैं, जो जीवन में सुख, समृद्धि और सफलता लाने में मददगार होते हैं।
सफलता प्राप्ति के लिए
रंगभरी एकादशी के दिन 1 या 21 ताजे पीले फूलों की माला बनाकर श्री हरि विष्णु को अर्पित करें। इसके साथ ही भगवान को खीर में तुलसी डालकर भोग लगाएं। ऐसा करने से जीवन के हर क्षेत्र में सफलता मिलती है।
सुख-समृद्धि के लिए
अगर आप जीवन में सुख और समृद्धि प्राप्त करना चाहते हैं तो इस दिन पवित्र नदी में स्नान करके भगवान विष्णु की विधिपूर्वक पूजा करें। पूजा के बाद भगवान विष्णु को आंवला अर्पित करें।
कार्यक्षेत्र में तरक्की के लिए
अगर आप कार्यक्षेत्र में तरक्की चाहते हैं या आपकी स्थिति विपरीत हो, तो इस दिन आंवले के पेड़ में जल चढ़ाएं और आंवले की जड़ की थोड़ी-सी मिट्टी माथे पर तिलक के रूप में लगाएं।
रंगभरी एकादशी पूजन विधि
रंगभरी एकादशी के दिन सुबह उठकर भगवान विष्णु का ध्यान कर व्रत का संकल्प करें। स्नान आदि से निवृत्त होकर भगवान विष्णु की पूजा करें। पूजा के दौरान आंवले का फल भगवान विष्णु को प्रसाद के रूप में अर्पित करें और आंवले के वृक्ष की पूजा करें। इसके बाद किसी गरीब या ब्राह्मण को भोजन कराएं।
अगले दिन स्नान करके भगवान विष्णु की पूजा करें और ब्राह्मण को कलश, वस्त्र और आंवला दान करें। इसके बाद भोजन ग्रहण करके व्रत खोलें। कुछ लोग इस दिन रंगभरी एकादशी को शिवजी के पूजन के रूप में मनाते हैं, ऐसे में इस दिन शिवलिंग पर लाल गुलाल अर्पित करें और माता पार्वती को सोलह श्रृंगार की सामग्री अर्पित करें। शिवजी और विष्णु जी के मंत्रों का जाप भी करें।